कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में चल रहे विश्व मुक्केबाज़ी कप में भारत की युवा मुक्केबाज़ साक्षी ने इतिहास रचते हुए देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाया है। रविवार को खेले गए 54 किलोग्राम वर्ग के फाइनल में साक्षी ने अमेरिका की योसलाइन पेरेज को हराकर यह उपलब्धि हासिल की।
भारत ने इस प्रतियोगिता में अब तक कुल 11 पदक पक्के किए हैं, जिनमें से पहला स्वर्ण साक्षी ने दिलाया है। 24 वर्षीय साक्षी दो बार की युवा विश्व चैंपियन रह चुकी हैं और उनके इस प्रदर्शन से भारतीय खेमे में उत्साह की लहर दौड़ गई है। रविवार (6 जुलाई) के पहले सत्र में भारत की ओर से चार मुक्केबाज़ रिंग में उतरे, लेकिन साक्षी ही स्वर्ण जीतने में सफल रहीं।
दूसरी ओर, अन्य फाइनल मुकाबलों में भारतीय मुक्केबाज़ों को रजत पदक से संतोष करना पड़ा। मीनाक्षी को 48 किलोग्राम वर्ग के फाइनल में कजाकिस्तान की स्थानीय मुक्केबाज़ नाजिम काइजाइबे के खिलाफ कड़े मुकाबले में 3:2 के विभाजित निर्णय से हार का सामना करना पड़ा।
पुरुषों के 85 किलोग्राम वर्ग में जुगनू को कजाकिस्तान के बेकजाद नूरदौलेटोव ने 0:5 से हराया, जबकि महिलाओं के 80 किलोग्राम वर्ग में पूजा रानी को ऑस्ट्रेलिया की एसेटा फ्लिंट के खिलाफ भी इसी स्कोर से शिकस्त झेलनी पड़ी। इन तीनों मुक्केबाज़ों ने फाइनल तक पहुंचकर भारत के लिए रजत पदक जरूर सुनिश्चित किए, लेकिन स्वर्ण से चूकने का मलाल भी उनके प्रदर्शन में झलकता रहा।
अब सभी निगाहें शाम के सत्र पर टिकी हैं, जहां भारत के चार मुक्केबाज़ स्वर्ण पदक के लिए मुकाबला करेंगे। इनमें हितेश गुलिया 70 किलोग्राम वर्ग में उतरेंगे; वह ब्राज़ील चरण में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं।
अविनाश जामवाल 65 किलोग्राम वर्ग, जैस्मीन 57 किलोग्राम वर्ग और नूपुर 85+ किलोग्राम वर्ग में चुनौती पेश करेंगी। इन चारों मुक्केबाज़ों ने पहले ही रजत पदक सुनिश्चित कर लिया है, लेकिन अब उनकी कोशिश चांदी को सोने में बदलने की होगी। भारतीय टीम ने ब्राज़ील में हुए पहले चरण में केवल 6 पदक (1 स्वर्ण, 1 रजत) जीते थे, जबकि अस्ताना में यह संख्या 11 तक पहुंच चुकी है। यह प्रदर्शन भारतीय मुक्केबाज़ी की अंतरराष्ट्रीय साख और तैयारियों का संकेत देता है।
साक्षी की ऐतिहासिक जीत ने भारत के लिए विश्व मुक्केबाज़ी कप में स्वर्ण की शुरुआत कर दी है, और अब सबकी निगाहें शाम के मुकाबलों पर टिकी हैं। यदि भारतीय मुक्केबाज़ों ने अपनी लय बरकरार रखी, तो यह प्रतियोगिता भारत के लिए अब तक की सबसे सफल साबित हो सकती है।
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