भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी, अमेरिका के सहयोग से एक ऐसा कम लागत वाला सेंसर विकसित किया है जो मुंह से निकली सांस को आवाज़ी कमांड में बदल सकता है। मात्र ₹3000 की लागत से लैब स्तर पर तैयार यह उपकरण विशेष रूप से उन लोगों के लिए एक क्रांतिकारी संचार समाधान बन सकता है जिनकी आवाज़ क्षतिग्रस्त है या पूरी तरह चली गई है। यह शोध प्रतिष्ठित Advanced Functional Materials पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
IIT गुवाहाटी के रसायन विभाग के प्रोफेसर उत्तम मन्ना के नेतृत्व में इस परियोजना को अंजाम दिया गया, जिसमें उनकी टीम के शोध छात्रा देबास्मिता सरकार, रंजन सिंह, अनिर्बान फुकन और प्रियम मंडल शामिल थे। इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग से प्रो. रॉय पी. पैली ने भी सहयोग किया। ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी से प्रो. शियाओगुआंग वांग और यूफुओमा आई. कारा भी इस शोध में भागीदार रहे।

आज की दुनिया में वॉयस रेकग्निशन तकनीक स्मार्टफोन, घरेलू उपकरणों और डिजिटल असिस्टेंट्स के संचालन में अहम भूमिका निभा रही है, लेकिन आवाज़ की अक्षमता वाले लाखों लोग इस डिजिटल क्रांति से वंचित हैं। शोधकर्ताओं ने इस सामाजिक चुनौती को ध्यान में रखते हुए एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जो बिना आवाज़ के बोले गए शब्दों को भी समझ सकती है।

यह सेंसर पानी पर सांस के हल्के प्रवाह से उत्पन्न तरंगों को पकड़ता है। इसे एक विशेष प्रकार के रासायनिक रूप से सक्रिय और प्रवाहकीय स्पंज से बनाया गया है, जो पानी की सतह पर उत्पन्न कंपन को विद्युत संकेतों में बदलता है। इन संकेतों को Convolutional Neural Networks (CNN) जैसे डीप लर्निंग मॉडल की मदद से डिकोड किया जाता है, जिससे बिना बोले भी स्मार्ट डिवाइस को निर्देश देना संभव हो जाता है।
प्रो. मन्ना ने कहा, “यह एक दुर्लभ डिज़ाइन है जो पानी की सतह पर सांस से उत्पन्न तरंगों के आधार पर आवाज़ की पहचान करता है। यह उन लोगों के लिए एक प्रभावी समाधान बन सकता है जिनकी वोकल कॉर्ड्स आंशिक या पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं।”
शोध दल अब इसके क्लीनिकल परीक्षण की दिशा में अग्रसर है और वे आवाज़ की अक्षमता वाले लोगों से डेटा एकत्र कर मॉडल को और सटीक बनाने की योजना बना रहे हैं। साथ ही, इस डिवाइस को व्यावसायिक उत्पादन के लिए इंडस्ट्री भागीदारों के साथ मिलकर आगे बढ़ाने की तैयारी भी की जा रही है।
इस सेंसर का उपयोग सिर्फ आवाज़ पहचान तक सीमित नहीं है। शोध में यह भी सामने आया कि यह उपकरण एक्सरसाइज ट्रैकिंग, हरकत की पहचान और अंडरवाटर कम्युनिकेशन सिस्टम जैसे क्षेत्रों में भी इस्तेमाल हो सकता है। खास बात यह रही कि लंबे समय तक पानी के भीतर इस्तेमाल के बावजूद इसने अपनी कार्यक्षमता बनाए रखी, जो इसकी टिकाऊ प्रकृति को दर्शाता है।
यह भी पढ़ें:
जबड़ा टूटा, रीढ़ की हड्डी टूटी: स्पाइसजेट कर्मियों पर ‘मर्डरस असॉल्ट’ का लगा आरोप!
“अगर आप सच्चे भारतीय होते तो ऐसी बातें नहीं करते।”: राहुल गांधी पर सर्वोच्च न्यायालय की टिपण्णी !
पाकिस्तान: मूसलाधार बारिश का कहर, 140 बच्चों समेत 299 लोगों की मौत!



