सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने से जुड़े कानून के क्रियान्वयन में देरी को लेकर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। शुक्रवार (4 जुलाई)को शीर्ष अदालत ने इस मामले में राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और स्पष्ट किया कि यह याचिका अन्य लंबित मामलों के साथ ही सुनी जाएगी। फिलहाल, कोर्ट ने कोई अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया है।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2019 में एक अध्यादेश के ज़रिए ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया था। लेकिन याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि इस कानून के लागू होने के बावजूद राज्य सरकार और एमपी लोक सेवा आयोग (MPPSC) ने कई भर्तियों में इसका पूरी तरह पालन नहीं किया है।
याचिका में दावा किया गया है कि MPPSCने बीते वर्षों में जिन भर्तियों के लिए विज्ञापन निकाले थे, उनमें से लगभग 13% पदों को होल्ड कर रखा गया है। याचिकाकर्ताओं की मांग है कि इन सभी पदों को 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के तहत तत्काल भरा जाए, क्योंकि अदालत ने कानून पर कोई रोक नहीं लगाई है।
अधिवक्ता वरुण ठाकुर, जो इस मामले में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, ने सुप्रीम कोर्ट के बाहर कहा, “मध्य प्रदेश सरकार सार्वजनिक मंचों पर 27% आरक्षण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताती है, लेकिन जब बात अदालत में आती है तो वह खुद अपने ही कानून का विरोध करती दिखती है।” उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की तारीख की मांग कर रहे थे, लेकिन राज्य सरकार की ओर से इसमें असहमति जताई गई। इसे अधिवक्ता ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
याचिकाकर्ताओं में वे उम्मीदवार शामिल हैं जिन्होंने MPPSC की परीक्षाएं दी हैं और जो मानते हैं कि सरकार जानबूझकर आरक्षण कानून के लागू होने में देरी कर रही है। इससे ओबीसी वर्ग के साथ अन्याय हो रहा है और उनके लिए आरक्षित सीटें अधर में लटक रही हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई अन्य संबंधित मामलों के साथ करेगा और तब तक राज्य सरकार से विस्तृत जवाब मांगा गया है। यह नोटिस ऐसे समय आया है जब मध्य प्रदेश में चुनावी माहौल बनने लगा है और ओबीसी आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सरकार की नीति को लेकर सवाल उठ रहे हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में क्या जवाब देती है और क्या वह आरक्षण कानून को पूरी तरह लागू करने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाती है।
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