नई दिल्ली. भारत की वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में इतिहास रच दिया। शनिवार को चानू ने 49 किलो वर्ग में कुल 202 किलो वजन उठाकर सिल्वर मेडल अपने नाम किया, मीराबाई चानू ने स्नैच में 87 किलो और क्लीन एंड जर्क में 115 किलो वजन उठाया, मीराबाई चानू ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली पहली भारतीय वेटलिफ्टर हैं। मीराबाई का फर्श से अर्श तक पहुंचने का सफर किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है, 12 साल की उम्र में मीराबाई ने ट्रेनिंग शुरू कर दी थी लेकिन वो पहले एक आर्चर बनना चाहती थीं, लेकिन एक वीडियो ने उनकी जिंदगी बदल दी और उन्होंने वेटलिफ्टर बनने का फैसला किया, मीराबाई जब 12 साल की थीं तो वो इंफाल में स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) केंद्र पहुंचीं।
मीराबाई तीरंदाजी की ट्रेनिंग लेना चाहती थीं लेकिन उन्हें वहां कोई नहीं मिला, मीराबाई निराश थीं लेकिन फिर उन्होंने कुछ दिन बाद दिग्गज वेटलिफ्टर कुंजारानी देवी के वीडियो क्लिप देखे. बस उसी दिन से मीराबाई ने वेटलिफ्टर बनने का फैसला कर लिया. मीराबाई ने साल 2006 में कोचिंग एकेडमी ज्वाइन की, मीराबाई के लिए एक वेटलिफ्टर बनना कभी आसान नहीं था. उनके पिता सैखोम कृति सिंह सरकारी नौकरी जरूर करते थे लेकिन उनका वेतन बेहद कम था. फिर उनके 6 बच्चे भी थे जिनका पालन-पोषण करना आसान नहीं था, पर अपनी बेटी के टैलेंट को देख मीराबाई के पिता ने उनकी ट्रेनिंग में कोई कमी नहीं आने दी,मीराबाई चानू भले ही स्टार वेटलिफ्टर हैं लेकिन वो अपने देश और गांव से जुड़ी हुई हैं. चानू हर विदेश दौरे पर अपने साथ गांव के चावल ले जाती हैं और चाहे पार्टी हो या कुछ और वो इन्हीं चावलों को खाती हैं. यही नहीं मीराबाई अपने पास एक बैग में भारत की मिट्टी भी रखती हैं।