मुंबई। एफएम चैनलों की भारी भरमार के बीच ऑल इंडिया रेडियो का जादुई आकर्षण आज भी बरकरार है। यही वजह है कि उसका अपना एक अलग श्रोता वर्ग है। आकाशवाणी पर कार्यक्रमों और साक्षात्कारों की विविध गुणवत्ता अब भी कायम है। एक दौर वह भी था,जब सुबह-सवेरे घर-घर रेडियो पर गाने बजाए-सुने जाते थे। वैसे, आज भी कई घरों में यह सिलसिला कायम है। इसीलिए आकाशवाणी पर प्रसारित किसी एक साक्षात्कार से संबद्ध कार्य के प्रति ध्यानाकर्षण होने को उस दिशा में जनता की स्वीकारोक्ति की मान्यता है। ऑल इंडिया रेडियो ने कोरोना संकटकाल के दरमियान कारुलकर प्रतिष्ठान द्वारा उठाए कदम का न सिर्फ संज्ञान लिया, बल्कि अपने ‘अस्मिता चैनल’ पर ‘बलसागर भारत होवो’ कार्यक्रम के अंतर्गत रश्मि म्हांब्रे ने संस्था प्रमुख प्रशांत कारुलकर का इंटरव्यू लेकर लोगों तक उनकी सामाजिक गतिविधियों का अहम संदेश भी पहुँचाया।
कोरोनाकाल के दौरान पिछले करीब डेढ़ साल से कारुलकर प्रतिष्ठान ने बेहद कारगर तरीके से जरूरतमंद लोगों के लिए मदद का हाथ बढ़ाया है। 24 मार्च, 2020 को लॉकडाउन शुरू होने के बाद प्रतिष्ठान के स्वयंसेवकों ने देखा कि हाईवे पर कई परिवार दो दिन से भूखे-प्यासे बैठे थे। सभी स्वयंसेवक फौरन सक्रिय हुए। उन सभी को खाना वितरित करना शुरू किया। दवाएं, एंबुलेंस आदि सुविधाएँ भी मुहैया कराईं। आदिवासी क्षेत्रों में भी पहुँच कर खाद्यान्न उपलब्ध कराया। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मदद की जा रही थी, लेकिन वे हर जगह नहीं पहुंच पा रहे थे, क्योंकि हालात ही इतने भयावह थे। लिहाजा, स्वयंसेवकों को गांवों-जनपदों में जगह-जगह भेजा गया। लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें चार डिवीजनों जिला, तहसील, गांव व मुहल्लों में विभाजित किया गया, जिससे काम सुचारु हो गया।
इस साल जब मार्च में पुनः कोरोना का प्रकोप बढ़ा, तब प्रभावितों को अस्पताल मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती थी। प्रतिष्ठान को रोजाना बड़ी संख्या में काॅल आ रहे थे। उन्हें अस्पताल नहीं मिल रहे थे। कई लोगों को अस्पताल पहुंचने में मुश्किल हो रही थी। ऑक्सीजन का खासा अभाव था, एचआरसीटी का स्कोर 20 या 18 था, जो बहुत गंभीर स्थिति है। राज्य सरकार का जीआर कारोबार शुरू करने का था, लेकिन मजदूरों के सामने सवाल यह था कि उद्योगों तक वे कैसे पहुंचें ? प्रतिष्ठान ने संकट की इस घड़ी में उनके लिए व्यवस्था की। कुछ लोग प्रतिबंधों के कारण यहां-वहां फंस गए थे, उन्हें पास उपलब्ध कराए गए अथवा प्रतिष्ठान के वाहनों द्वारा गंतव्य तक ले पहुंचाया गया। सारा ध्यान लोगों की जरूरतों पर था। काफी लोग विविध बीमारियों से भी पीड़ित थे और उनकी चिकित्सीय जरूरतें कोरोना से भी ज्यादा गंभीर थीं। सो, उन्हें भी आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं प्रदान कराईं।
तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात आदि राज्यों में प्रतिष्ठान का काम आज भी जारी है। 1969 में कमलाबाई कारुलकर ने महाराष्ट्र में प्रतिष्ठान का शुभारंभ किया, जिसके बाद प्रशांत कारुलकर के पिता ने खुद को इस काम में समर्पित कर दिया। आज इस काम को प्रशांत कारुलकर की पीढ़ी आगे बढ़ा रही है, जिसमें आज करीब 1500 लोग शामिल हैं, उन्होंने स्वेच्छा से खुद को इस काम से जोड़ रखा है और अपना निजी कामकाज करते हुए वे कारुलकर प्रतिष्ठान का कार्य संभालते हैं। फाउंडेशन को लगता है कि किसी व्यक्ति को आर्थिक स्तर पर आधार देना एक बड़ी जिम्मेदारी है। इसके लिए संस्था की महत्वाकांक्षा अगले 3 वर्षों में 10,000 नौकरियों के सुअवसर पैदा करने की है।