दिल्ली/चेन्नई। गृह मंत्रालय की ओर से तमिलनाडु के सांसद को अंग्रेजी की बजाय हिंदी में जवाब दिए जाने का मामला मद्रास हाई कोर्ट पहुंच गया है। उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि सांसद को अंग्रेजी में ही जवाब दिया जाए। केस की सुनवाई कर रहे जस्टिस एन. किरुबाकरन और एम. दुरईस्वामी ने कहा, ‘यदि केंद्र सरकार को कोई पत्र इंग्लिश में मिलता है तो फिर उसका जवाब भी इंग्लिश में ही दिया जाना चाहिए।’ कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को ऑफिशियल लैंग्वेजेस एक्ट, 1963 के नियमों का पालन करना चाहिए। तमिलनाडु की मदुरै लोकसभा सीट से सांसद एस. वेंकटेशन ने इंग्लिश की बजाय हिंदी में होम मिनिस्ट्री से जवाब मिलने पर अदालत का रुख किया था। उनकी मांग थी कि केंद्र सरकार से तमिलनाडु के संवाद में अंग्रेजी का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
तमिलनाडु के सांसदों और लोगों से भी इंग्लिश में ही संवाद होना चाहिए। यह मामला तब उठा, जब वेंकटेशन ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखा था कि सीआरपीएफ के एग्जाम सेंटर्स तमिलनाडु और पुदुचेरी में बनाए जाने चाहिए। उन्होंने यह मांग करने वाला लेटर इंग्लिश में ही लिखा था, लेकिन इसका जवाब उन्हें हिंदी में मिला। इस पर उन्होंने आपत्ति जताई और केंद्र के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंच गए। शायद देश का यह ऐसा पहला ही मामला होगा, जब पत्र लिखने में भाषा के इस्तेमाल का मामला कोर्ट तक पहुंचा हो। गृह मंत्रालय की ओर से हिंदी में जवाब मिलने पर विरोध दर्ज कराते हुए वेंकटेशन ने एक और पत्र लिखा और कहा कि वह हिंदी भाषी राज्य के नहीं हैं और उन्हें हिंदी पढ़नी नहीं आती है। इस पर अदालत में केंद्र सरकार ने कहा कि उनकी ओर से हिंदी में अनजाने में जवाब दिया गया था। ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया है। इस पर अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार को ऑफिशियल लैंग्वेजेस एक्ट के सेक्शन 3 का पालन करते हुए कोई भी संदेश हिंदी और अंग्रेजी दोनों में जारी करना चाहिए।