कोरोना संकट के बीच राखी का पर्व आज मनाया जा रहा है। हिन्दू धर्म में इस पर्व को बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। बहनें इस पर्व पर भाई की कलाई पर राखी बांधकर रक्षा का वचन लेती हैं।मुहूर्त की बात करें तो सबसे ज्यादा जो शुभ समय है वो दोपहर 12 से साढ़े 12 का बताया जा रहा है। वैसे आप सुबह 5 बजे से शाम साढ़े 5 बजे के बीच कभी भी राखी बांध सकते हैं।
शास्त्रों में भद्रा रहित काल में ही राखी बांधने की परंपरा है। भद्रा रहित काल में राखी बांधने से सौभाग्य में बढ़ोत्तरी होती है। इस बार रक्षा बंधन पर भद्रा काल नहीं है। हिंदू पंचांग के अनुसार, भद्रा वह अशुभ काल माना जाता है जिसमें कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है। इस साल चूंकि भद्राकाल नहीं है इसलिए आप पूरा दिन कभी भी राखी बांध सकते हैं। सबसे ज्यादा जो शुभ समय है वो दोपहर 12 से साढ़े 12 का बताया जा रहा है। वैसे आप सुबह 5 बजे से शाम साढ़े 5 बजे के बीच कभी भी राखी बांध सकते हैं। राजसूय यज्ञ के समय भगवान कृष्ण को द्रौपदी ने रक्षा सूत्र के रूप में अपने आंचल का टुकड़ा बांधा था।
इसी के बाद से बहनों द्वारा भाई को राखी बांधने की परंपरा शुरू हो गई। ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को राखी बांधकर उनकी मंगलकामना की जाती है। इस दिन वेदपाठी ब्राह्मण यजुर्वेद का पाठ आरंभ करते हैं। इसलिए इस दिन शिक्षा का आरंभ करना अच्छा माना जाता है।थाली में रोली, चंदन, अक्षथ, दही, रक्षासूत्र और दही रखें। घी का एक दीपक भी रखें, जिससे भाई की आरती करें।रक्षा सूत्र और पूजा की थाली सबसे पहले भगवान को समर्पित करें। इसके बाद भाई को उत्तर या पूर्व की तरफ मुंह करवाकर बैठाएं। पहले भाई के तिलक लगाएं, फिर राखी बांधे और आरती करें। इसके बाद मिठाई खिलाकर भाई की मंगल कामना करें।
रक्षाबंधन के दिन काले रंग का धागा नहीं बांधना चाहिए।माना जाता है कि इस रंग से नकारात्मकता का प्रभाव बढ़ता है. इसलिए इस रंग का प्रयोग नहीं करना चाहिए। राखी बांधते समय दिशा का विशेष ध्यान रखें. राखी बांधते समय भाई का मुख दक्षिण दिशा में नहीं होना चाहिए। बल्कि पूर्व या उत्तर दिशा में होना ठीक रहता है। रक्षाबंधन के दिन भाई और बहन एक दूसरे को रुमाल और तैलिया उपहार में न दें। ये शुभ नहीं होता है।इसके अलावा इस खास दिन पर बहनों को धारदार या नुकीली चीजें उपहार में न दें। इस दिन दर्पण और फोटो फ्रेम जैसी गिफ्ट भी देने से बचना चाहिए। भाई को तिलक लगाते समय अक्षत के लिए खड़े चावल का प्रयोग करें। इसमें टूट हुए चावल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अक्षत का अर्थ होता है जिसकी कोई क्षति न हो।