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Friday, September 20, 2024
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राम मंदिर के लिए छोड़ी थी कुर्सी,सजा भी काटी

हिंदुत्व की सियासत को शिखर पर ले जाने वाले भाजपा के दमदार नेता थे कल्याण सिंह

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यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे। कल्याण सिंह वर्ष 1991 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और दूसरी बार 1997 में मुख्यमंत्री बने थे। ये प्रदेश के प्रमुख राजनैतिक चेहरों में एक इसलिए माने जाते हैं, क्‍योंक‍ि उन्होंने राम मंदिर के लिए एक झटके में कुर्सी छोड़ दी थी। कल्याण सिंह, श्रीराम मंदिर आंदोलन के अग्रणी नेतृत्वकर्ताओं में से एक थे। मंदिर के लिए सत्ता छोड़ने में उन्होंने एक क्षण भी नहीं लगाया। राम मंदिर के लिए सत्ता ही नहीं गंवाई, बल्कि इस मामले में सजा पाने वाले वे एकमात्र शख्स हैं।

कल्याण सिंह सिर्फ हिंदुत्व की राजनीति के ही योद्धा नहीं रहे, बल्कि लगातार आदर्श से फिसलती राजनीति के दौर में प्रेरक आदर्शवादी राजनेता भी रहे। सेक्युलर राजनीति और विचार की नजर में वे बाबरी ढांचे के विध्वंस के जिम्मेदार रहे। पर कल्याण को इसका कभी मलाल नहीं रहा। उलटे वे इसके लिए गर्व से भरे रहे। कल्याण सिंह को हिंदू हृदय सम्राट कहा जाता था। अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के अलावा उत्तर प्रदेश में पहली बार बीजेपी को जीत दिलाने वाले नेता के तौर पर भी उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा। राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की बुनियाद रखने वालों में शुमार रहेगा। क्योंकि उनके मुख्यमंत्री रहते हुए 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी। हालांकि कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में बाबरी मस्जिद को बचाने का हलफनामा दिया था, पर उन्होंने कारसेवकों पर गोली नहीं चलाने का आदेश भी दिया। आखिरकार बाबरी मस्जिद भी गिर गई और उत्तर प्रदेश से उनकी सरकार को सत्ता से हटना पड़ा।

जिसके प्रभाव से यूपी में भाजपा का पहली बार बजा डंका 

अयोध्या में भव्य राममंदिर बन रहा है। भाजपा की राजनीति के तीन बड़े मुद्दे रहे हैं, भाजपा आज जिस मुकाम पर है, उसमें राम मंदिर आंदोलन, जम्मू-कश्मीर से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 370 का खात्मा और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों का बड़ा योगदान रहा है। कह सकते हैं कि अयोध्या के भव्य राममंदिर की नींव के मजबूत ईंट कल्याण सिंह रहे। भाजपा में पिछड़े वर्ग की जातियों के साथ ही दलित वर्गों में भारतीय जनता पार्टी की मजबूत पहुंच और पहचान है। इसके लिए भाजपा की ओर से जो सोशल इंजीनियरिंग शुरू हुई थी, कल्याण सिंह उसका प्रमुख चेहरा रहे। उनकी ही अगुआई में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का आधार पिछड़ी और दलित जातियों में बढ़ा। जिसके प्रभाव से उत्तर प्रदेश में भाजपा का पहली बार डंका बजा, जिसने बाबरी ध्वंस के लिए अधिकारियों को नहीं, खुद को जिम्मेदार बताया। जिसने अयोध्या कांड की जांच कर रहे लिब्राहन आयोग से भी स्पष्ट कहा कि सजा देना हो तो उन्हें दे, अधिकारियों को नहीं। राजनीति के इतिहास में ऐसे व्यक्तित्व कम ही मिलते हैं। राममंदिर जल्द ही मूर्त होने वाला है। अभी से ही अयोध्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी है, लेकिन अयोध्या आने वाला हर व्यक्ति कल्याण को जरूर याद करता है।

मेरा शव भाजपा के झंडे में लिपट कर श्मशान भूमि तक जाए

बीजेपी में पिछड़ों और दलितों के पहले नेता के तौर पर कल्याण सिंह को जाना जाता है। वह विधानसभा क्षेत्र अतरौली के 10 बार विधायक रहे। दो बार बुलंदशहर व एटा के सांसद भी रहे। एक बार कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपने बचपन के रिश्तों की याद दिलाई और रो पड़े थे। उन्होंने कहा था, ‘संघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्कार मेरे रक्त की बूंद-बूंद में समाए हुए हैं, इसलिए मेरी इच्छा है कि जीवनभर मैं भाजपा में रहूं और जब जीवन का अंत होने को हो, तब मेरी इच्छा है कि मेरा शव भी भाजपा के झंडे में लिपट कर श्मशान भूमि की तरफ जाए।

बदली थी ब्रिटिश राज की परंपरा
बीजेपी के कद्दावर नेता रहे कल्याण सिंह ने राजस्थान के राज्यपाल रहते 52 साल का रिकॉर्ड तोड़ना भी सुर्खियों में शुमार है। राजस्थान के इतिहास में 52 साल में कोई भी राज्यपाल अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया था, लेकिन कल्याण सिंह ने 2 सितंबर 2019 को ये रिकॉर्ड तोड़ डाला। यही नहीं, यूपी के पूर्व सीएम ने बतौर राज्यपाल न सिर्फ पांच साल का कार्यकाल पूरा किया बल्कि 1967 के बाद ये पहला मौका था, जब किसी राज्यपाल ने अपना कार्यकाल पूरा किया. इससे पहले 1967 में सम्पूर्णानंद ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था। यही नहीं, राजस्थान के राज्यपाल का पद संभालते ही कल्याण ने पहले ही दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस की और राज्यपाल को ‘महामहिम’ की जगह ‘माननीय’ संबोधित करने के आदेश दे दिया था। उन्होंने कहा था कि महामहिम शब्द में औपनिवेशिक बू आती है। हम स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं। ऐसे में राज्यपाल के लिए महामहिम के बजाए माननीय या फिर दूसरा सम्मानजनक शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है।

…तो राम मंदिर आज भी दूर का सपना होता

ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा, ‘कल्याण सिंह ने 6 दिसंबर 1992 में जो हुआ उसकी पूरी जिम्मेदारी ली थी। उनमें 6 दिसंबर को आयोध्या में हुई हर घटना की जिम्मेदारी लेने का साहस था।’ निर्मोही अखाड़ा के प्रमुख महंत धीनेंद्र दास ने कहा, ‘कल्याण सिंह की मौत के साथ राम मंदिर आंदोलन का एक जरूरी अध्याय समाप्त हो गया है। उन्होंने कहा, ‘कल्याम सिंह ने कारसेवकों को बलपूर्वक रोकने के बजाए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पसंद किया। दास 6 दिसंबर 1992 की बात कर रहे थे, जब कारसेवकों ने विवादित बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया था। महंत कमल नयन दास ने कहा, ‘कल्याण सिंह ही थे, जिन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता तैयार किया। कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं होते (6 दिसंबर, 1992) तो राम मंदिर आज भी दूर का सपना होता। कल्याण सिंह मणि राम दास छवि पीठ के काफी करीबी थे। इसी मठ में अयोध्या में राम मंदिर से जुड़े सभी अहम फैसले लिए गए थे। नृत्य गोपाल दास इस मठ के प्रमुख हैं।

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