31 C
Mumbai
Tuesday, November 26, 2024
होमब्लॉगफासीवादी मुहाने पर है अब महाराष्ट्र

फासीवादी मुहाने पर है अब महाराष्ट्र

Google News Follow

Related

महाराष्ट्र की राजनीति ने कटु मोड़ ले लिया है। केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी के बाद भी भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा जारी रहने के स्पष्ट संकेत हैं। राज्य की ठाकरे सरकार पुलिस बल का प्रयोग कर यात्रा को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही है। 70 साल की उम्र में भी नारायण राणे राज्य सरकार से दो-दो हाथ करने के मूड में हैं। इसी से उनकी साफ-नीयती जाहिर होती है और इस समूचे दौर में भाजपा पूरी तरह उनके संग है।

नारायण राणे को महज इसलिए गिरफ्तार किया गया कि उन्होंने मारे गुस्से के उद्धव ठाकरे को कनपटी पर तमाचा जड़ने की कह दी। बात गुस्सा आने की ही थी एक देशप्रेमी व्यक्ति के लिए। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे जिस व्यक्ति को यह तक नहीं पता कि देश को आजाद हुए कितने साल हो चुके, वह और किस तारीफ का हकदार है भला ! यह बात तो कोई आम आदमी भी बोल सकता है। तो क्या उसे गिरफ्तार कर लेते ? यही तो हुआ नारायण राणे के साथ। हाँ, अगर इसके बावजूद ठाकरे सरकार को यह ‘ अपशब्द ‘ इतना अखरा है और ऐसे मामलों में मुकदमा चलाने की निष्पक्ष की अपनाई जाती है, तो सोशल मीडिया पर ठाकरे सरकार के कई नेताओं और मंत्रियों को आजीवन कारावास की सजा देने के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है।

ठाकरे सरकार ने इस डर से कि राज्य में कोरोना बढ़ेगा, लोगों पर लंबी तालाबंदी कर दी। बावजूद इसके महाराष्ट्र मृत्यु दर के मामले में दुनिया में नंबर वन बना रहा। लॉकडाउन के दौरान मुख्यमंत्री ने उपनगरीय इलाके में भारी भीड़भाड़ के बीच मेट्रो स्टेशन का उद्घाटन किया। मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष भाई जगताप ने गैस की कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ प्रदर्शन किया। राजनीतिक नेताओं के परिवार में शादियों-जन्मदिनों के सेलिब्रेशन की संख्या मायने नहीं रखती। पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे और अन्य मंत्रियों के कार्यक्रम भी इस दौरान जोरों पर रहे। लेकिन, भाजपा ने जब लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन की अनुमति मांगी, तो फौरन कह दिया गया कि इससे राज्य में कोरोना बढ़ेगा। यह सामाजिक-राजनीतिक भेदभाव कर मुख्यमंत्री का निजी गुस्सा जाहिर करना नहीं तो और क्या है ?

राज्य में आम जनता छोटी-मोटी समस्याओं के बोझ तले दबी जा रही है। मुंबई, ठाणे और कल्याण समेत सभी एमएमआर इलाकों में सड़कों पर बने गड्ढे जानलेवा हो गए हैं। कोरोना की तीसरी लहर के साये में लोग वैक्सीन लगवाने के लिए जगह-जगह भटक रहे हैं। लॉकडाउन से पैदा हालात में आम आदमी के जीने की चिंता से उदासीन राज्य सरकार के रवैए से लोग भूखों मर रहे हैं। भूमिपुत्र आगरी-कोलियों के रोजगार पर सरकार हथौड़ा चला रही है। राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति चरमरा गई है। ज्वेलर्स को मर्डर कर खाड़ी में डंप किया जा रहा है, उद्यमियों को पीटा जा रहा है, ऑनलाइन पढ़ाई बाधित होने के बावजूद स्कूल बंद हैं, परीक्षा नहीं हो रही, यदि किसी भी शक्ल में हो भी रही, तो फिर अगली कक्षा में दाखिला नहीं मिल रहा।

शासकों को अच्छी तरह पता हैं सूबे के सारे हालात। लेकिन कमीशनखोरी के अलावा इन ‘ फुटकर बातों ‘ पर सोचने के लिए समय ही कहाँ है ? लिहाजा लोगों के मन में भारी असंतोष सुलग रहा है। एक चिंगारी भी काफी है, जनाक्रोश को भड़कने के लिए। यह भी उन्हें अच्छी तरह मालूम है, तभी तो आंदोलन, राजनीतिक यात्रा आदि वे होने देना नहीं चाहते।जन आशीर्वाद यात्रा किसी राज्य में पहली राजनीतिक आंदोलन रूपी यात्रा नहीं है। महाराष्ट्र की ही बात करें, तो कांग्रेस के शासनकाल में दिवंगत भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे की निकाली संघर्ष यात्रा काफी यादगार रही, देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्रीकाल में आघाड़ी के नेताओं की एसी बस यात्रा, देवेंद्र फडणवीस की जनादेश यात्रा आदि लंबी फेहरिस्त है। लेकिन, ठाकरे सरकार के दौरान जन आशीर्वाद यात्रा के खिलाफ इस तरह की मोर्चाबंदी अब तक किसी यात्रा को नसीब नहीं हुई।

नेताओं की बात छोड़िए, किसानों को भी आंदोलन की अनुमति नहीं है, जो खून-पसीना एक कर मिट्टी में अनाज उगाता है और लोगों का पेट भरता है। बिजली बिलों के भारी बोझ के चलते उसकी अदायगी न कर पाने से तंग खुद को आग लगाने वाले किसान पर सरकार ने मुकदमा दर्ज किया है। उसका जुर्म बस यह था कि बिजली बिल का भुगतान करने के लिए पैसे नहीं थे। किसानों ने मांग की कि बिजली विभाग को बिल राशि के बजाय कृषि उपज स्वीकार करनी चाहिए। लेकिन सरकार गूंगी-बहरी है, सो कुछ सुन या देख नहीं सकती। जब भाजपा सत्ता में थी, तब घूम-घूम कर किसानों को आश्वासन बांटने वाले उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनते ही किसानों का यह हश्र !

सरकार के पास बड़ी ताकत हुआ करती है, काफी फंड है उसके पास, जिसका उपयोग कर कल्याणकारी सरकार देना मुख्यमंत्री के लिए संभव था। अगर उन्होंने ऐसा किया होता, तो शायद जनता शिवसेना द्वारा भाजपा की पीठ में घोंपे खंजर का मंजर भूल जाती और आगामी चुनाव में खुले दिल से मुख्यमंत्री के संग खड़ी हो जाती, क्योंकि आम लोगों के सामने गुजारे की समस्या हिमालय जितनी बड़ी है। राज्य मरीन लोगों को सुरक्षा चाहिए, रोजी-रोटी उपलब्ध कराई जाना चाहिए, हस्तशिल्प-कृषि उत्पादों को वाजिब कीमत मिलनी चाहिए, स्वास्थ्य सेवा चाहिए। बस यही अपेक्षा है। उन्हें खंजर या छुरी से कुछ नहीं लेना-देना। लेकिन ठाकरे सरकार ने बीते दो साल में ऐसा कुछ भी नहीं किया। इन दो वर्षों में ठाकरे सरकार की कुल कमाई रही – मेट्रो, बुलेट ट्रेन, नाणार जैसे कई महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स में अड़ंगेबाजी, जलयुक्त शिवार, वनीकरण आदि योजनाओं को लंबित करना समेत कई यू -टर्न और स्थगन।

अगर अग्रलेख के जरिए विरोधियों पर आग उगलने और केंद्र को सलाह देकर अथवा फेसबुक लाइव करके जनता सुखी हो सकती, तो महाराष्ट्र देश भर में सबसे सुखी राज्य होता। सरकार जनता के भले के काम करना छोड़कर मुख्यमंत्री तक विरोधियों से दो-दो हाथ कर प्रतिशोध लेने में जुटे हुए हैं। किसी दौर में शिवसेना को दो-फाड़ करनेवाले, घृणित शब्दों में कहें तो शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब की अवहेलना करने वाले, उन्हें गिरफ्तार करने वाले छगन भुजबल आज ठाकरे सरकार के सलाहकार बन गए हैं। खुद को ज्वलंत हिंदुत्ववादी कहलाने वाली शिवसेना के राज में कबीर खान नामक कोई ऐरा-गैरा शातिर फिल्म दिग्दर्शक यह कह लेने का साहस जुटा लेता है कि ‘मुगल ही भारत के असली शासक थे। राज्य की जिस शिवसेना की सत्ता में साझेदार कांग्रेस के नेता वीर सावरकर का अपमान का करने का दुस्साहस कर लेते हैं, उस शिवसेना से घबराकर भाजपा पुलिस के डर से मुंह चुरा कर चुप बैठ जाए, उसे ऐसा लगता होगा, तो क्या यह संभव है ?

केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की फिरफ्तारी को लेकर मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री आपस में विचार-विमर्श करते हैं, इसके विशेषज्ञ शरद पवार उन्हें मान्यता प्रदान करते हैं, इसके बाद राणे को गिरफ्तार कर लिया जाता है। फिर इसमें पुलिस की भूमिका क्या बाकी रह जाती है? परिवहन मंत्री अनिल परब रत्नागिरी के एसपी को फोन कर राणे को गिरफ्तार करने के आदेश देते हैं। पुलिस भी शासकों के इतने भीतर तक घुस कर लुत्फ लेने का पर्व आज ठाकरे सरकार की अगुआई में अवश्य मना रही है, पर शासकों को तो यह दूरदर्शिता रखनी चाहिए कि कोई सत्ता की अमर-बेल खाकर नहीं पैदा हुआ, सत्ता आती-जाती रहती है। लेकिन लोकतंत्र के विचार और मूल्य शाश्वत हैं। कल जब तुम्हारी सत्ता नहीं रहेगी, तब यही पुलिस होगी और उसका यही डंडा, इसका अहसास मन में होना बेहतर है !

-दिनेश कानजी- (लेखक न्यूज डंका के मुख्य संपादक हैं)

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

हमें फॉलो करें

98,292फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
198,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें