नई दिल्ली। अफगानिस्तान में उपजे संकट के बीच भारत तालिबान के हर कदम पर नजरे गड़ाए हुए है।भारत चुपचाप अपनी गतिविधियों में लगा हुआ। चाहे आतंकवाद हो या वहां राजनीतिक संकट हर किसी पर पर्दे के पीछे से भारत कूटनीतिक दबाव बनाये हुए है। यहां बनाने वाली नई सरकार के स्वरूप को भी लेकर विभिन्न देशों के संपर्क में है।
सूत्रों का कहना है कि काबुल में हुए आतंकी हमले के बाद दुनिया के तमाम देश सतर्क हो गए हैं। हालांकि, आतंकी हमले की जिम्मेदारी आईएस खुरासान ने ली है। लेकिन तालिबान की स्थिति आतंकी गुटों से गठजोड़ को लेकर संदिग्ध बनी हुई है। भारतीय एजेंसियों के इनपुट से स्पष्ट है कि अफगानिस्तान में सक्रिय तमाम आतंकी गुटों की तालिबान लड़ाकों से सांठगांठ है। इनको संरक्षण और खुराक पाकिस्तान की आईएसआई से मिलती है। सूत्रों के मुताबिक तालिबान दुनिया के सामने उदारवादी चेहरा पेश करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन भारत तालिबान के मूल आचरण को 1996 से ज्यादा अलग नहीं देखता।
भारत सहित अन्य देश तालिबान के एक्शन पर नजर बनाए हुए हैं। वे एक दूसरे के सम्पर्क में भी बने हुए हैं। तालिबान के नए अमीरात की मान्यता के संबंध में फैसले को लेकर भारत का कूटनीतिक दबाव काम आ रहा है। रूस और ईरान जैसे देश भी इस संबंध में भारत से रायशुमारी में जुटे हैं। भारत की अमेरिका के अलावा रूस, ईरान, कतर, तजाकिस्तान, जर्मनी, इटली सहित कई देशों से बातचीत हुई है। ये देश अफगानिस्तान में किसी भी फैसले के लिए आपसी समन्वय पर जोर दे रहे हैं। साथ ही कुछ मुद्दों पर अलग राय के बावजूद आतंक के खिलाफ आम सहमति है।