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Friday, September 20, 2024
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अलगाववादी नेता सैयद शाह गिलानी के निधन बाद कश्मीर में इंटरनेट सेवा बंद

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जम्मू / कश्मीर। कश्मीर इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है। यह कदम तब उठाया गया है जब अलगाववादी नेता सैयद शाह गिलानी का निधन हो गया है। इस संबंध की जानकारी कश्मीर जोन के पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार ने दी। पुलिस ने बताया कि कश्मीर में कर्फ्यू लगा दिया गया है और गिलानी के घर के आसपास भारी पुलिस बल तैनात किये गए हैं।

पुलिस अधिकारी के मुताबिक, गिलानी के गृह जिले सोपोर में सख्त पाबंदियां लगाई गई  है।  कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए संवेदनशील जगहों पर सुरक्षाबलों की तैनाती की गई है।  किसी तरह के अफवाहों को रोकने के लिए पुलिस ने एहतियात के रूप में इंटरनेट को भी बंद किया है। गिलानी के निधन के बाद, मस्जिदों से लाउडस्पीकर के जरिए उनके समर्थन में नारे लगाए गए और उनके निधन की खबर की घोषणा की गई। प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के सदस्य और हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी धड़े के अध्यक्ष गिलानी पिछले दो दशक से विभिन्न बीमारियों से पीड़ित थे। वह तीन बार विधायक भी रह चुके थे।
92 साल के गिलानी की पिछले तीन दशकों से भी ज्यादा समय से जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन में मुख्य भूमिका रही।  उनके परिवार के एक सदस्य के मुताबिक, बुधवार रात करीब 10:30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने उनके निधन पर शोक जताया और ट्वीट कर कहा, “गिलानी साहब के निधन की खबर से दुखी हूं। ज्यादातर बातों पर हमारे बीच सहमति नहीं थी, लेकिन मैं उनकी दृढ़ता और अपने विश्वासों के साथ खड़े होने के लिए उनका सम्मान करती हूं। अल्लाह उन्हें जन्नत में जगह दें और उनके परिवार और शुभचिंतकों को सांत्वना दें।
” जानकारी के मुताबिक, गिलानी को हैदरपुरा के एक स्थानीय कब्रिस्तान में दफनाया जाएगा। वे हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के संस्थापक सदस्य थे लेकिन बाद में वे इससे अलग हो गए और 2000 के दशक की शुरुआत में तहरीक-ए-हुर्रियत का गठन किया था। उनके खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग में कई मामले लंबित हैं।  29 सितंबर 1929 को बांदीपोरा जिले के एक गांव में जन्मे गिलानी ने अपनी पढ़ाई लाहौर के ओरिएंटल कॉलेज से की थी।  जमात-ए-इस्लामी में शामिल होने से पहले उन्होंने एक शिक्षक के रूप में कुछ सालों तक काम किया था। उन्होंने सोपोर से 1972, 1977 और 1987 में चुनाव में जीत हासिल की थी। हालांकि 1990 में कश्मीर घाटी में मिलिटेंसी के उभरने के बाद वे चुनावों का विरोध करने वालों में भी आगे थे।

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