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Thursday, December 26, 2024
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‘दलाल’ वायरस का शिकार

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भाजपा के जुझारू नगरसेवक सुनील यादव का 1 सितंबर की सुबह निधन हो गया। महज 50 साल की अल्पायु में ही स्वर्ग सिधार गए के अंतिम संस्कार में उमड़ी भीड़ और सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों की पोस्टों का बेशुमार तांता लगा देखते हुए इस युवा नेता के अचानक चले जाने से लोगों के मन में हुई हलचल निश्चित तौर पर समझी जा सकती है।पार्टी के लिए काम करते हुए लगातार व्यापक जनसंपर्क बनाए रहा यह युवक अचानक इतना हताश क्यों हो गया? कई लोग हैं ऐसे, जिन्हें कोरोना हुआ और ठीक भी हो गए। तो फिर सुनील क्यों नहीं हो पाए ठीक? पार्टी को इस बारे में थोड़ा सोचने की जरूरत है। पार्टी में एक तरफ जहां दूसरे दलों से फौज की फौज चली आ रही है, वहीं उनकी वजह से यदि वह वफादार कमजोर हुआ, जो पार्टी के लिए लड़ते हुए उसकी ताकत बना है, तो फिर ऐसे में पार्टी कमजोर हुई या मजबूत ?

यह आधा सच है कि सुनील की मौत कोरोना के बाद बिगड़े स्वास्थ्य के कारण हुई। ‘दलाल’ नामक वायरस भी इसके लिए जिम्मेदार है, जो आजकल भाजपा सहित प्रायः सभी दलों में देखा जा रहा है। वायरस हमेशा दूसरे दल से ही आता है। ये वे लोग हैं, जिनके पास क्षमता हो न हो, पर उपद्रव-क्षमता अपार रहती है। झुकने के मामले में वे स्प्रिंग से भी लचीले होते हैं। नेताओं के साथ तालमेल बिठाने में वे जबर्दस्त माहिर होते हैं। वे नेताओं के पाँव पड़ लेते हैं, उनके जूते उठाते हैं और वक्त पड़ा, तो उनका थूका चाट कर यह भी बयां करने का हुनर रखते हैं कि कितना मधुर है। विकृत चेहरे लिए पार्टी में काम करना मुश्किल होता महसूस होने के बाद वे छवि बनाने की कवायद में लग जाते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्सवो में शामिल होने लगते हैं। कुछ महीने बीते नहीं कि पूरे गणवेश में उत्सवों में आ धमकने लगते हैं।

फिर एक बार पार्टी में स्थिर हुए नहीं कि वे अपने हाथ-पाँव फैलाना शुरू कर देते हैं। पार्टी में निष्ठावंतों की जगह उनका अतिक्रमण होने लगता है। सुनील का करिअर इसी तरह के वायरस से प्रभावित हुआ। पार्टी-दर-पार्टी यह वायरस भाजपा में शामिल हो गया है। कभी नकली कार्ट्रेज बनाने में गोरखधंधे में शामिल रहा और गिरफ्तार भी हो चुका। अंधेरी एमआईडीसी के एसआरए में हाथ-पाँव मारे। हाथ में रुपए-पैसे की कोई कमी नहीं, क्योंकि फर्जी दस्तावेज के आधार पर बड़ी संख्या में फ्लैट जो हड़पे हैं। रुपए-पैसे की खूब खैरात बांटी। राजनीति में आजकल रुपए-पैसे से क्या नहीं खरीदा जा सकता, चाहे जो पद,और तो और गॉडफादर भी।

सुनील बीते कुछ सालों से इसी वायरस से जूझ रहे थे। हम संघ के स्वयंसेवक, पार्टी के वफादार कार्यकर्ता, हमने पार्टी के लिए खुद पर तमाम केस लिए, हम इसके लिए जेल भी गए, अभी अपनी सुध नहीं ली हमने और कल पार्टी में आए नेता को अपने ही सिर पर बिठा दिया गया, इस साजिश से वे बहुत व्यथित थे। सुनील के करीबी कार्यकर्ता और पदाधिकारी धीरे-धीरे उनकी पंक्ति में जाकर खड़े होते जा रहे थे, यह उनके लिए असहनीय हो गया था। वह अकसर इस घुसपैठ को इंगित किया करते थे। वायरस की हरकत उनके वार्ड तक पहुंच गई थी, जिसके वह नगरसेवक थे।

पार्टी में शिकायत किए जाने के बावजूद कोई रिस्पांस नहीं मिलता। उन्हें इसका सदमा था। हमें अपनों से ही लड़ना पड़ रहा है, यही बात उन्हें खाए जा रही थी। बाहर से आए कुछ नेताओं ने जरूर पार्टी की व्यापकता बढ़ाई है। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वसरमा आदि दिग्गज व सम्माननीय नाम हैं। हालांकि ये शख्स महत्वाकांक्षी अवश्य रहे, पर पार्टी की विचारधारा देख उसके प्रति आकर्षित हुए। ऐसे ही कुछ उदाहरण महाराष्ट्र में भी हैं। लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये सम्मानजनक अपवाद हैं। अपवाद नियम को सिद्ध नहीं करते। रामायण में अगर ऐसा कोई विभीषण है, तो महाभारत में भी युयुत्सु है।

भाजपा की ओर बढ़ रहा झुंड सत्ता की लकदक को देख कर आ रहा है। उनमें से कई के पास कोई लक्ष्य या विचार नहीं है। वे येन-केन प्रकारेण इस जरिए सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचना चाहते हैं। कल तक ऐसे लोग कांग्रेस को राजमार्ग समझते थे, आज यही उन्हें भाजपा में दिख रहा है। वे सत्ता की उष्मा के लिए जी रहे हैं। सत्ता दूर जाते दीखते ही मुकुल रॉय बन जाते हैं। यह उन सभी की जिम्मेदारी है, जो मानते हैं कि ऐसा वायरस नहीं फैलना चाहिए। एक सुनील के बनने में कुछ साल लगते हैं। सुनील को इस तरह खोना पार्टी और संगठन के लिए उचित नहीं है।

(न्यूज डंका के मुख्य संपादक दिनेश कानजी का संपादकीय)

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