ठाणे। कितने ताज्जुब की बात है कि ठाणे मनपा की असिस्टेंट कमिश्नर कल्पिता पिंपले पर 30 अगस्त को हुए कातिलाना हमले के गंभीर मामले में राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की नींद 4 दिन बाद खुली और आखिरकार शुक्रवार 3 सितंबर को उन्हें कल्पिता का हाल जानने का मौका मिला। इतना ही नहीं, इसमें भी वे राजनीति घुसेड़ने से बाज नहीं आए।
महज घंटे भर का है फासला
हमले में कल्पिता ने अपनी दो और उन्हें बचाने बीच में आए बॉडीगार्ड ने एक उंगली खो दी। वह अस्पताल जहां कल्पिता का इलाज चल रहा है, मुख्यमंत्री के आवास ‘ वर्षा ‘ से महज घंटे भर की दूरी पर मौजूद है, बावजूद इसके मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे हाल जानने के लिए उनसे मिलने नहीं पहुंच सके। वैसे, अपने ड्राइविंग कौशल का प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री सीधे पंढरपुर पहुंचने में सक्षम हैं, पर मुंबई से बिलकुल सटे ठाणे पहुंचना उनके लिए मुश्किल था। लिहाजा, उन्होंने कल्पिता से फोन पर बात की।
क्यों हुई सीएम को शंका
कल्पिता से फोन पर बोलते हुए भी मुख्यमंत्री ने जबर्दस्ती राजनीति घुसेड़ी। उन्होंने कहा, अगर मैं पहले आ कर मिला होता या फोन किया होता, तो इसमें राजनीति होने लगती।’ दरअसल, इस समूचे प्रकरण का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। विभिन्न दलों के राजनीतिक नेताओं ने कल्पिता से मुलाकात कर उनकी कुशलक्षेम जानी, लेकिन कहीं भी ऐसा प्रतीत नहीं हुआ कि किसी ने इस मुद्दे का राजनीतिकरण किया हो। फिर सवाल यह उठता है कि मुख्यमंत्री को इस तरह की शंका क्यों हुई ?
जरूरी है कर्मियों का मनोबल बढ़ाना
इस मुद्दे को लेकर ठाणे भाजपा के उपाध्यक्ष सुजय पत्की ने मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा है.कि मुख्यमंत्री राज्य के मुखिया हैं और यदि किसी प्रशासनाधिकारी पर ऑन ड्यूटी इस तरह का जानलेवा हमला होता है, तो सबसे पहले उनकी जिम्मेदारी बनती है कि हालात की गंभीरता को देखते हुए संबंधित जगह पहुंचें और सरकारी कर्मियों का मनोबल बढ़ाएं। कौन क्या कहता है या कोई क्या कहेगा, यह बहानेबाजी इस पद पर बैठे व्यक्ति की गैर-जिम्मेदाराना मानसिकता को उजागर करती है।