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Friday, September 20, 2024
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सवर्णों को धिक्कारा, दलितों को पुचकारा 

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अखिलेश यादव ने सपा नेता ऋचा सिंह और रोली तिवारी को पार्टी से निकाला लकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में रामचरित मानस विवाद ने हंगामा खड़ा कर दिया है। इसकी वजह से समाजवादी पार्टी में दरार पड़ गई है। बताया जा रहा है कि सपा की सवर्ण लॉबी अखिलेश यादव से खफा है। देखा जाए तो अखिलेश यादव ने खुद पार्टी को दो हिस्सों में बांटने का प्रयास किया है। उन्होंने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में किसी भी सवर्ण को शामिल नहीं किया है। इसकी वजह से सवर्ण नेता पहले से ही नाराज थे, अब अखिलेश यादव ने सपा नेता ऋचा सिंह और रोली तिवारी को पार्टी से निकालकर एक नई बहस छेड़ दी है। माना जा रहा है कि सपा मुखिया ने इन दोनों महिला नेताओं को पार्टी से निकालकर स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ उठ रहे आवाज को दबाने की कोशिश की है।

गौरतलब है कि सपा मुखिया ने ऋचा सिंह और रोली तिवारी को पार्टी निकाल दिया है। दोनों नेताओं पर पार्टी लाइन से हटकर काम करने का आरोप है। बताया जा रहा है कि रामचरित मानस को लेकर विवादित टिप्पणी करने वाले सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ दोनों महिला नेता आक्रामक रुख अपनाये हुए थीं। ऋचा सिंह और रोली तिवारी लगातार मौर्य के खिलाफ सोशल मीडिया पर लिख रही थीं। जिसकी वजह से पार्टी में कलह पैदा हो गई थी।  इसके बाद अखिलेश यादव ने दोनों महिलाओं पर कार्रवाई करते हुए उन्हें पार्टी से सस्पेंड कर दिया।

कहा जा रहा है कि, मौर्य के खिलाफ सपा में लगातार सवर्ण नेता आवाज उठा रहे थे। सवर्ण नेताओं को पार्टी से किनारे लगाए जाने से वे मुखर हो रहे हैं। यही वजह है कि उनकी आवाज को दबाने के लिए सपा मुखिया ने ऋचा सिंह और रोली तिवारी को पार्टी से निकाल दिया। और संदेश दिया गया कि पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों पर ऐसी ही कार्रवाई होगी।

गौरतलब है कि बिहार से उठे रामचरित मानस विवाद को अखिलेश यादव ने भुनाने की कोशिश में हैं। सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस पर विवादित टिप्पणी की थी। जिसके बाद से मौर्य पार्टी में घिर गए थे। इसके बाद अखिलेश यादव ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बना दिया था। लेकिन यह मामला ठंडा होने के बजाय गरमाता चला गया। मौर्य के खिलाफ ऋचा सिंह और रोली तिवारी ने मोर्चा खोले रखा। कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनाव में दलित और पिछड़ा का कार्ड खेलने वाले है, इसी वजह से वे शूद्र की राजनीति को धार दे रहे हैं।

बता दें कि सपा की चौसठ सदस्यों वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 14 लोगों को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है। इनमें आधा दर्जन ऐसे लोग हैं जो हाल ही में पार्टी में शामिल हुए थे। ये नेता  बसपा से आये थे। उसमें स्वामी प्रसाद मौर्य भी शामिल हैं। जिन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है। अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव को भी राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है। जो स्वामी प्रसाद मौर्य के समक्ष है। कार्यकारिणी में सवर्ण नेताओं को कोई पद नहीं दिया गया है।

लेकिन इस कार्यकारिणी में राजभर, कुर्मी, जाट, निषाद, मुस्लिम और पासी समुदाय को भी जगह दी है। जो पिछड़े समुदाय से आते हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि अखिलेश यादव ने अपने नई कार्यकारिणी 85 प्रतिशत दलित और पिछड़ों को पद दिया है। जो जाति समीकरण और भविष्य की राजनीति पर केंद्रित है। सपा पहले मुस्लिम और यादव समाज में अपनी पैठ बनाकर राजनीति कर रही थी। लेकिन अब अखिलेश यादव की नजर दलित वोटरों पर है जो मुख्यतः बहुजन समाजवादी पार्टी से जुड़ा हुआ है। अखिलेश यादव के इस प्लान से मायावती को नुकसान हो सकता है।

इस विवाद के बाद मायावती ने भी अखिलेश यादव पर हमला बोला था। उन्होंने अखिलेश यादव के शूद्र वाले बयान पर कहा था कि संविधान में बाबा साहेब आंबेडकर ने दलितों और पिछड़ों को एससी और ओबीसी का नाम दिया है। वैसे भी दलित की राजनीति करने से पहले अखिलेश यादव अपने गिरेबान में झांक ले। उन्होंने इस दौरान यूपी में हुए गेस्ट हाउस कांड का जिक्र किया था। जिसमें मुलायम सरकार से अपना समर्थन वापस लेने पर सपा के लोगों ने मायावती के साथ मारपीट की थी। उनके कपडे तक फाड़ डाले थे। यही वजह रही है कि इसके बाद सपा और बसपा कभी पास नहीं आये। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी को हराने के लिए  मुलायम सिंह और मायावती एक मंच पर दिखे थे।

बहरहाल, दोनों महिलाओं के ऊपर की गई कार्रवाई के बारे में कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव यह दिखाना चाहते हैं कि वे मौर्य के साथ मजबूती से खड़े है। और मौर्य के खिलाफ बोलने वालों को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। हालांकि,सपा इस मामले पर बंटी हुई है। इसलिए  पार्टी में मौर्य के खिलाफ आवाज उठ रही है। खासकर सवर्ण नेता इस बात को पचा नहीं पा रहे हैं कि मौर्य को आये अभी कुछ ही माह हुए लेकिन उन्हें बड़ा पद दे दिया गया। जबकि सपा में कई सवर्ण नेता लंबे अरसे से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं और उन्हें इसका प्रतिफल नहीं मिल रहा है।

सपा के कई विधायक और नेता मौर्य के बयान से सहमत नहीं हैं। कई सवर्ण नेताओं ने मौर्य के बयान का खुलकर विरोध कर चुके हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि सपा में रामचरित मानस पर उपजा कलह आने वाले समय में विस्फोटक हो सकता है। बताया जा रहा है कि 2022 के चुनाव में सवर्ण वोट सपा को नहीं मिले थे। यही वजह है कि इस बार अखिलेश यादव अब दलित और पिछड़ा वर्ग पर दांव रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार 2022 के चुनाव में सवर्ण वर्ग का 85 प्रतिशत वोट बीजेपी को मिला है। जबकि पिछड़ा और मुस्लिम वर्ग सपा को वोट दिया जिसका प्रतिशत 37 प्रतिशत हैं। लेकिन दलितों के वोट बंट गए थे जो बीजेपी और सपा को मिले थे ।

बताया जा रहा है कि 2022 के चुनाव में बीजेपी और सपा के बीच आठ फीसदी वोटों का अंतर् था। जिसको कम करने के लिए अखिलेश यादव एड़ीचोटी का जोर लगा रहे है। कहा तो यह भी जा रहा है कि अखिलेश यादव इस अंतर को कम करने के लिए जातिवाद का कार्ड खेल रहे हैं। अखिलेश चाहते है कि यह अंतर मामूली रह जाए। इसलिए अखिलेश यादव सवर्णो को किनारे लगाकर दलित और पिछड़ा वर्ग को साधने में लगे हैं। तो देखना होगा कि अखिलेश की यह रणनीति कितनी कारगर साबित होती है।

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