भारतीय राजनीति में एक नई सियासत देखने को मिल रही है। कट्टर दल भी मौक़ा को देखते हुएसत्ता दल के करीब हो रहे हैं या उनका समर्थन कर रहे हैं। जी हां! एक ओर महाराष्ट्र में एनसीपी बीजेपी का विरोध करती है। महाराष्ट्र में ही नहीं अन्य राज्यों में भी एनसीपी बीजेपी के खिलाफ रहती है। वर्तमान में एनसीपी महाविकास आघाडी में शामिल है जिसमें उद्धव ठाकरे की शिवसेना और कांग्रेस भी हैं। वहीं, बिहार में बीजेपी के खिलाफ बने महागठबंधन के दल जेडीयू के विधायक ने नागालैंड में बीजेपी समर्थित सरकार को समर्थन दिए हैं। इसी तरह एनसीपी के भी विधायक बीजेपी के साथ गए हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर हर क्यों नागालैंड विधानसभा विपक्षमुक्त हो जाता है।
सवाल खड़े किये जा रहे: बता दें कि नीतीश कुमार ने बीते साल बीजेपी से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हो गए थे। इसके बाद उन्होंने कहा था वे मरते दम तक बीजेपी में वापस नहीं जाएंगे। कुछ दिन पहले ही जब अमित शाह बिहार के दौरे पर गए थे तो उन्होंने भी कहा था कि नीतीश कुमार की पार्टी में वापसी अब कभी भी नहीं होगी। वहीं, अब शरद पवार की पार्टी के विधायकों ने नागालैंड सरकार में शामिल होने का निर्णय लिया है। इसकी मंजूरी शरद पवार ने भी दे दी है। नागालैंड में एनसीपी ने सात सीटों पर जीत दर्ज की है। जिसके बाद एक बैठक कर विधायकों ने सरकार के साथ जाने का निर्णय लिया इसके बाद इस संबंध की मंजूरी के लिए विधायकों ने शरद पवार से बातचीत की। बता दें कि महाराष्ट्र में एनसीपी बीजेपी का विरोध करती है। ऐसे में नागालैंड बीजेपी समर्थित सरकार में एनसीपी के शामिल होने पर कई तरह के सवाल खड़े किये जा रहे हैं।
असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी समर्थित सरकार में शामिल होने पर एनसीपी मुखिया की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के नेता नवाब मलिक को जेल भेजने वालों का शरद पवार ने समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि मै कभी बीजेपी का समर्थन नहीं करूँगा। इसके साथ बता दें कि नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के एक उम्मीदवार ने भी नागालैंड में जीत दर्ज की है। जेडीयू विधायक ने भी नेफ्यू रियो सरकार को समर्थन देने ऐलान किया है। जिसके बाद जेडीयू शीर्ष ने राज्य समिति को भंग कर दिया है। इस संबंध में पार्टी नेता द्वारा कहा गया है कि विधायक ने बिना विचार विमर्श के नागालैंड को समर्थन देने का निर्णय लिया है। जो मनमाना फैसला है। इसकी वजह से नागालैंड की जेडीयू की राज्य समिति को भंग किया जा रहा है।
नेफ्यू रियो पांचवी बार मुख्यमंत्री: सबसे बड़ी बात यह है कि नेफ्यू रियो पांचवी बार मुख्यमंत्री की शपथ ली। वैसे यह पहला मौक़ा नहीं है कि सभी दलों ने नेफ्यू रियों का समर्थन किया है। 2015 से ऐसा होते आ रहा है। 60 सीटों वाले विधानसभा में बहुमत के लिए 31 सीटों की जरूरत होती है। बीजेपी और एनडीपीपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. जिसमें 12 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी जबकि एनडीपीपी 25 सीट पर अपना परचम लहराया था। दोनों पार्टी साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी। 37 सीट जीतकर सत्ता में वापसी किया। सवाल है कि नागालैंड विपक्ष मुक्त क्यों हो जा रहा है। 2015 और 2021 में भी नागालैंड में विपक्ष मुक्त सरकार बनी थी।
2015 में नगा शांति समझौता पर हस्ताक्षर: बताया जा रहा है कि नागालैंड के स्थायी समाधान के लिए सभी दल एक साथ आते हैं। नागालैंड की समस्या का समाधान केंद्र सरकार की ही पहल पर होना है। बीजेपी की केंद्र में सरकार है और एनडीपीपी का उससे गठबंधन है। यही वजह है कि नागालैंड की समस्या के समाधान के लिए सभी दल नेफ्यू सरकार के साथ आकर खड़े हो जाते हैं और अलग थलग होने से बचते हैं। लंबे समय से जारी संघर्ष को खत्म करने के लिए केंन्द्र की मोदी सरकार 2015 में नगा शांति समझौता पर हस्ताक्षर किया।
एकजुटा दिखाते हुए संकल्प लिया था: हालांकि 1997 में केंद्र सरकार और सबसे बड़े विद्रोही गुट नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालिम के बीच समझौता किया गया था। हालांकि यह समझौता आगे नहीं बड़ा था जिसे मोदी सरकार के आने के बाद इसे आगे बढ़ाया गया। नेफ्यू रियो के नेतृत्व में शांति समझौते का एक प्रस्ताव पारित किया गया था। इस प्रस्ताव में जो सबसे अहम मुद्दा है वह लंबित है। वहीं सभी दल इस मुद्दे को राजनीति समाधान के लिए एकजुटा दिखाते हुए इसे निपटाने का संकल्प लिया था। बीते चुनाव में अमित शाह ने सभी शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए सभी दलों को एकजुट होने के लिए कहा था। कहा जा रहा है कि इसके पीछे का मकसद यह था कि जनता उन्हें समस्या के समाधान के लिए गंभीर मानेगी। इसी लिए नगा समस्या हल के लिए एक साथ आये।
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