लोकसभा चुनाव से पहले ही मुस्लिमों का ध्रुवीकरण करना शुरू कर दिया गया है। बिहार में रमजान के पहले नीतीश कुमार ने मुस्लिम सरकारी कर्मचारियों के लिए एक आदेश जारी किया है। इस आदेश में कहा गया है कि मुस्लिम कर्मचारी एक घंटे लेट से आ सकते है और एक घंटे पहले जा सकते हैं।
बता दें कि 22 या 23 मार्च से रमजान का रोजा शुरू हो सकता है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि 22 मार्च से शुरू हो रहे चैत्र नवरात्रि पर हिन्दू सरकारी कर्मचारियों को क्यों नहीं इसी तरह की छूट दी जानी चाहिए। आखिर हिन्दुओं को अपना त्यौहार मनाने की क्यों नहीं छूट मिलनी चाहिए। हिन्दुओं से दोयम दर्जे का बर्ताव क्यों ? यह वह सवाल है जो हर बार उठते रहे हैं। आज अपने ही देश में हिन्दुओं के साथ ऐसा व्यवहार क्यों ? क्या भारत में हिन्दू होना गुनाह है ? यह वह सवाल है कि जो नीतीश कुमार के फैसले से हर हिन्दू के मन में उठ रहे हैं।
दरअसल, बिहार की नीतीश सरकार ने रमजान के अवसर पर एक फरमान जारी किया है, जिसमें सभी विभागों को आदेश दिया गया है कि सभी मुस्लिम कर्मचारी और पदाधिकारी एक घंटे लेट और एक घंटे पहले ऑफिस से आ जा सकते हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि यह आदेश स्थायी रूप से हर साल प्रभावी रहेगा। ऐसे पूछा जा रहा है कि नीतीश सरकार इसी तर्ज पर चैत नवरात्र पर क्यों नहीं हिन्दू कर्मचारियों को छूट दी ? क्या उन्हें इसकी जरुरत नहीं है ? या सिर्फ वोट के लिए नीतीश कुमार ने ये आदेश जारी किया है।
क्योंकि नीतीश कुमार के पैरों से राजनीति की जमीन घिसक रही हैं और 2025 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू का पतीला लगना तय है। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने यह आदेश हड़बड़ी में जारी किया गया है। क्योंकि,18 मार्च से असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल में अधिकार पदयात्रा निकाल रहे हैं। यह पदयात्रा 19 मार्च तक जारी रहेगी। वहीं, बीजेपी भी मुस्लिम बहुल इलाकों में “मोदी मित्र” बनाने का प्लान बनाया है। ऐसे में कहा जा रहा है कि यही वजह है कि नीतीश कुमार ने मुस्लिम कार्ड चल कर आगामी चुनावों लाभ लेना चाहते हैं। जानकार 2024 के लोकसभा और 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए उनका बड़ा दांव मान रहे है।
बता दें कि, सीमांचल में 40 से 70 प्रतिशत तक मुस्लिम आबादी है। इसी वजह से ओवैसी सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाकों में पदयात्रा निकाल रहे हैं। जानकारों का कहना है कि ओवैसी 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए यह पदयात्रा निकाल रहे हैं, ओवैसी इस पदयात्रा के जरिये नीतीश को बड़ा झटका देने की तैयारी कर ली है।
2015 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी को कोई बड़ा फ़ायदा नहीं मिला था,लेकिन ओवैसी लगातार बिहार के मुस्लिमों को अपने पाले में करने में कामयाब हो गए। और इसी का नतीजा रहा कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी के पांच उम्मीदवार जीते थे , लेकिन बाद में चार विधायक लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो गए थे।
यहां पहले राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार जीतते थे, क्योंकि यहां मुस्लिम यादव समीकरण हावी था। लेकिन, ओवैसी के आने के बाद आरजेडी समीकरण बिगड़ गया। अब नीतीश कुमार सीमांचल में मुस्लिम, पिछड़ा और अतिपिछड़ा के समीकरण को आजमाना चाहते हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार का सीमांचल में मुस्लिम कार्ड के जरिये अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
गौरतलब है कि बिहार में मुस्लिमों की कुल 16 फीसदी आबादी है। जो 47 विधानसभा सीटों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने इस बात को ध्यान में रखकर यह निर्णय लिया है। क्योंकि अब लोकसभा चुनाव में ज्यादा समय नहीं बचा है और बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं। जबकि विधानसभा की दो सौ तिरालीस सीटें हैं। सीमांचल में लोकसभा की चार सीटें आती है और विधानसभा की 24 सीटें हैं।
वहीं, दूसरी ओर बीजेपी भी 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए मुस्लिम वोटरों को अपने साथ लाने के लिए “मोदी मित्र” की रणनीति बनाई है। जिसके जरिये बीजेपी उन मुस्लिमों तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं जो अभी तक किसी पार्टी से नहीं जुड़े हैं या मोदी सरकार की योजनाओं से प्रभावित हैं। ‘मोदी मित्र’ रणनीति के जरिये देशभर में 65 सीटों की पहचान की गई है।
बीजेपी के अनुसार, हर लोकसभा सीट पर ऐसे मुस्लिम समुदाय मिल जाएंगे जो न तो बीजेपी सेव जुड़े हैं और न ही कांग्रेस से। बीजेपी इन्ही मुस्लिमों को अपना लक्ष्य बनाकर “मोदी मित्र” प्लान बनाया है। बीजेपी का कहना है हर सीट से 5 से 10 हजार ऐसे मुस्लिम समुदाय मिल जाएंगे जिन्हे पार्टी से जोड़ा जाएगा। इसके लिए बीजेपी देशभर के मुस्लिम बहुल इलाकों का आंकड़ा इकट्ठा कर लिया है जहां मुस्लिमों की आबादी 30 प्रतिशत के आसपास है।
कहा जा रहा है कि बीजेपी जिन मुस्लिम समुदाय को जोड़ने का प्लान बनाई है, वे राजनीति से नहीं जुड़े होंगे, बल्कि, वे समाज से जुड़े लोग होंगे। और हर सीट से मोदी मित्र बनाये जाएंगे।इसके बाद उनका कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए नीतीश कुमार ने यह हथकंडा अपनाया है। देखना होगा कि नीतीश कुमार के इस फैसले से कितना फायदा होगा।
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