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Friday, September 20, 2024
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यूपी से पूरी तरह साफ होगा गांधी परिवार?  

आगामी लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार का कोई भी सदस्य न तो अमेठी और न ही रायबरेली से उतरेगा। प्रियंका गांधी को भी यूपी के प्रभार से मुक्त किया गया है।

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कांग्रेस यूपी में अपनी जमीन पूरी तरह से खो चुकी है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में अब कांग्रेस का नाम लेने वालों की तादाद न के बराबर हो गई है। दरअसल, यहां कांग्रेस से मतलब गांधी परिवार से है। बताया जा रहा है कि प्रियंका गांधी अब उत्तर प्रदेश में राजनीति नहीं करेंगी। यानी वे अब यूपी की राजनीति को छोड़कर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में सक्रिय होने वाली है। बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने यूपी की कमान संभाली थी लेकिन कांग्रेस को कोई कामयाबी नहीं मिली थी। यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस प्रियंका गांधी को यूपी तक सीमित नहीं रखना चाह रही है। अब कांग्रेस यूपी में किसी अन्य नेता को यहां का कार्यभार सौंपने की तैयारी में है।

ऐसे में यह जानने की जरूरत है कि आखिर प्रियंका गांधी यूपी को छोड़कर अन्य राज्यों में अपनी सक्रियता क्यों बढ़ा रही हैं। ऐसी कौन सी वजह है कि गांधी परिवार पूरी तरह से उत्तर प्रदेश से बेदखल हो गया। आज हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे कि पहले राहुल गांधी को अमेठी छोड़ना पड़ा, अब प्रियंका गांधी की जब यूपी में राजनीति दाल नहीं गली तो वे यहां से भाग रही हैं। कहा जा रहा है कि उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा। तो क्या अब रायबरेली में भी कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। इस लोकसभा चुनाव में रायबरेली का क्या होगा?

खबर है कि आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को बढ़ी जिम्मेदारी देने का निर्णय लिया है। वे मध्य प्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी संभालेंगी। इतना ही नहीं, कई राज्यों में भी बड़े पैमाने पर बदलाव हो सकता है। लेकिन सवाल यह कि क्या प्रियंका गांधी को बड़ी जिम्मेदारी देने बहाने कांग्रेस अपनी नाकामी छुपा रही है। जो यूपी गांधी केपरिवार का गढ़ था अब दूर कैसे हो गया ?। बताया जा रहा है कि इस साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है जिसको ध्यान में रखकर कांग्रेस यह निर्णय लिया।

जानकारों का कहना है कि भले कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति में बदलाव किया हो। लेकिन गांधी परिवार द्वारा यूपी छोड़ना शुभ संकेत नहीं है। क्योंकि, यहां 80 लोकसभा सीटें हैं और राजनीति में कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से ही होकर गुजरता है। वहीं, बीजेपी ने यूपी में एक सर्वे कंपनी लोकसभा चुनाव तक तीन बार सर्वे करने का ठेका दिया है। इस सर्वे में सांसदों के फीडबैक भी लिए जाएंगे और मुद्दों के बारे में भी जानकारी जुटाई जाएगी। ऐसे में समझा जा सकता है कि यूपी को बीजेपी कितना महत्व देती है। लेकिन कांग्रेस यूपी को नजरअंदाज कर रही है। अगर गांधी परिवार यूपी में बीजेपी को वाकओवर देता है तो जनता में गलत संदेश जाएगा। पहले से ही यूपी की जनता कांग्रेस से कट चुकी है। उसका वोट  बैंक बसपा और सपा में बंट चुका है। अब पूरी तरह कांग्रेस का नामोनिशान मिटने वाला है।

लोग कहेंगे कि गांधी परिवार का अब यूपी से मोहभंग हो गया है। जबकि, गांधी परिवार का यूपी से गहरा नाता रहा है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का जन्म प्रयागराज में हुआ था। उन्होंने फूलपुर से चुनाव लड़ा था। इतना ही नहीं गांधी परिवार की यूपी से कई यादें जुडी हैं,  लेकिन समय के साथ गांधी परिवार उत्तर प्रदेश को उपेक्षित करता गया और आज इस परिवार को यूपी की राजनीति छोड़नी पड़ रही है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का समापन कश्मीर में हुआ था। इस दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि ऐसा लग रहा है कि वे अपने घर आ गए। उनका यह बयान अजीब और छलावा था। वहीं, जब पीएम नरेंद्र मोदी वाराणसी पहुंचते हैं तो कहते हैं कि यह हमारा घर है। दोनों नेताओं के बात व्यवहार में जमीन आसमान का अंतर है।

बहरहाल, गांधी परिवार का यूपी से झंडा उखड़ने की वजह इस राज्य के साथ उनका सौतेला व्यवहार है। जवाहरलाल नेहरू जहां यूपी के फूलपुर से सांसद बने थे। वहीं, उनके दामाद फिरोज गांधी ने रायबरेली से सांसद चुने गए थे। उनके निधन के बाद इंदिरा गांधी यहां से चुनाव लड़ती रही और जीती भी। जबकि, उनके बेटे संजय गांधी ने अमेठी से चुनाव लड़ा था। लेकिन आपातकाल के बाद सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव में दोनों जगह से गांधी परिवार हार गया था. बाद में हुए मध्यावधि चुनाव में दोनों सीटों पर यह परिवार फिर काबिज हुआ था जो अब तक जारी है। लेकिन इन क्षेत्रों का विकास नहीं हुआ। यही कारण रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से राहुल गांधी बीजेपी नेता स्मृति ईरानी से हार गए।

बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को लगा कि राहुल गांधी अमेठी का चुनाव हार रहे हैं तो उन्हें केरल के वायानाड और अमेठी दोनों जगह से चुनाव लड़ाया गया था। अंततः अमेठी हारने के बाद राहुल गांधी को यूपी की राजनीति छोड़नी पडी। अब राहुल गांधी वायनाड की भी सांसदी से हाथ धो बैठे हैं। यह गांधी परिवार की नाकामी है कि जिन सीटों को वीआईपी का दर्जा प्राप्त था और कहा जाता है कि वहां के लोग कभी भी विशेष नहीं बन पाए। जिस अमेठी से राहुल गांधी की हार हुई। वहां के खेरौना गांव में संजय गांधी ने श्रमदान के जरिये युवाओं को राजनीति से जोड़ा था और बाद में यहां से चुनाव लड़ा। कहा जाता है कि यह गांव अति पिछड़ा है। लेकिन इस क्षेत्र की तक़दीर को गांधी परिवार नहीं बदल पाया। अगर इस हिसाब से देखें तो नौ सालों में पीएम मोदी ने वाराणसी की किस्मत चमका दी है। एक ओर अमेठी, रायबरेली अपनी बदहाली के लिए जाने जाते हैं। जबकि दूसरी ओर वाराणसी की पहचान केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी बनी है। यहां कई विकास के कार्य हो रहे हैं। तो आप समझ चुके होंगे की गांधी परिवार अपनी नाकामी छुपाने के लिए यूपी से कलटी मार रहा है।

वहीं, मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार का कोई भी सदस्य न तो अमेठी और न ही रायबरेली से उतरेगा। बताया जा रहा है कि सोनिया गांधी ने अभी तक रायबरेली से चुनाव लड़ने का कोई फैसला नहीं किया है। जबकि, अमेठी से भी किसी को नहीं उतारा जाएगा। लोकसभा चुनाव में गठबंधन होने पर सहयोगी पार्टी के लिए ये सीटें छोड़ दी जायेगी। तो क्या यह मान लिया जाए कि अब गांधी परिवार में मॉस अपील नहीं है। जो प्रियंका गांधी को राज्यसभा भेजने की तैयारी है। जिस  प्रियंका गांधी को इंदिरा गांधी  का प्रतिरूप बताया जा रहा था। वह तिलस्म भी अब यूपी की जनता ने तोड़ दिया है। अब यह भी कहा जा सकता है गांधी परिवार घर से बेघर हो गया है। तो किसी ने क्या खूब कहा है बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले।

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