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Saturday, September 21, 2024
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अजित दादा तोड़फोड़ में माहिर,क्या सुप्रिया NCP की बन पाएंगी “सुपरियर”     

सुप्रिया सुले, एनसीपी का नेतृत्व करने में अभी सक्षम नहीं हैं। आगे क्या करेंगी यह तो भविष्य के गर्भ में है। अजित पवार तोड़फोड़ में माहिर हैं।

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एनसीपी में तमाम उठापटक के बाद यह साफ़ हो गया है कि शरद पवार की विरासत को उनकी बेटी सुप्रिया सुले ही संभालेंगी, अजित पावर नहीं। हालांकि, एनसीपी किसकी है यह अब चुनाव आयोग तय करेगा। मगर, इतना तो तय है कि शिवसेना की तरह ही एनसीपी में भी दो हिस्सों में बंट चुकी है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या सुप्रिया सुले एनसीपी को संभाल पाएंगी? क्या सुले महाराष्ट्र की राजनीति में खुद को फिट कर पाएंगी। यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि, शरद पवार द्वारा उन्हें पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाने के बाद से, वह काफी सक्रिय देखी हैं ,लेकिन अजित पवार की बगावत के बाद सबकुछ बदल गया है। जिसके बाद से शरद पवार और सुप्रिया सुले के सामने पार्टी को बचाये रखने और उसको मजबूत करने की चुनौती है।

शक्ति प्रदर्शन के दिन यानी 5 जुलाई को अजित पवार ने शरद पवार को हर तरह से घेरा। उन्होंने “वंशवाद की राजनीति” पर भी कड़ा प्रहार किया, इसके अलावा शरद पवार द्वारा अध्यक्ष पद छोड़ने के ऐलान के बाद पलट जाने पर भी सवाल खड़ा किया। कहा जा सकता है कि बुधवार को अजित पवार अपने रंग में दिखाई दिए। साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि अजित पवार अपने चाचा शरद पवार से चार कदम आगे दिखे। एक ओर उनके पाले में 32 विधायक देखे गए, तो शरद पवार के साथ मात्र 15 ही विधायक नजर आये। जबकि 6 विधायक गायब थे। बता दें कि, एनसीपी के कुल 53 विधायक हैं। इतना ही नहीं, इस सियासी जंग में अजित पवार ने खुद को एनसीपी का अध्यक्ष घोषित किया है। इस संबंध में अजित पवार की ओर से चुनाव आयोग को एक पत्र और लगभग 40 शपथ पत्र भी दिए गए हैं, जिसमें सांसद, विधायक और एमएलसी शामिल हैं।

अब एनसीपी की लड़ाई कानूनी दावपेंच के साथ शुरू होगी और यह लड़ाई कब तक चलेगी, यह कहना मुश्किल है। दरअसल, एनसीपी में फूट की पटकथा उसी दिन लिखी गई, जिस दिन शरद पवार ने एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का ऐलान किया। यह कहानी 10 जून की है जब शरद पवार ने अध्यक्ष पद छोड़ने की घोषणा की. जिसका उनके समर्थकों ने विरोध किया। जबकि अजित पवार ही एनसीपी के एक मात्र नेता थे, जिन्होंने शरद पवार के फैसले का समर्थन किया था। इतना ही नहीं, जब शरद पवार इस मुद्दे पर अपने समर्थकों से बातचीत कर रहे थे, तब भी अजित पवार ने एनसीपी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे शरद पवार के फैसले को वापस लेने का दबाव न बनाये।

मगर हुआ वही जो शरद पवार चाहते थे। इस घटना के दो-तीन दिन बाद शरद पवार अपने फैसले से पलट गए और उन्होंने इस संबंध में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी घोषणा की। सबसे बड़ी बात यह थी कि इस मौके पर अजित पवार नहीं थे। यह अजित पवार के नराजगी का ही संकेत था। इस घटना के एक सप्ताह बाद ही शरद पवार ने दिल्ली में सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाने का ऐलान किया। जबकि इस दौरान, वहां अजित पवार मौजूद थे और हाथ में पानी की खाली बोतल खेल रहे थे। जो लापरवाही और बगावत का संकेत था। इतना ही नहीं, उस दौरान उन्होंने आंखो पर काला चश्मा भी लगा रखा था। उस समय भी उन्होंने मीडिया से बातचीत नहीं की और चले गए थे।

इसके बाद, शरद पवार ने कहा था कि अजित पवार इस फैसले से नाराज नहीं हैं, उन्होंने ही सुप्रिया सुले का नाम कार्यकारी अध्यक्ष के लिए सुझाया था। क्या यह बात सही है ? मुझे ऐसा नहीं लगता। क्योंकि, शरद पवार ने पांच जुलाई को कहा कि अगर अजित पवार के मन कुछ चल रहा था तो मुझे बताना चाहिए था । सवाल यह है कि क्या शरद पवार ने कभी अजित पवार के मन को टटोला। हमारा यही उत्तर है कि “नहीं”। क्योंकि अगर शरद पवार ने ऐसा किया होता तो आज यह हालात नहीं बनता। कहा जा सकता है कि अजित पवार ने अपनी “उपेक्षा” को ही हथियार बनाकर शरद पवार के साथ दो दो हाथ करने को तैयार हुए है। जिसका नतीजा सबके सामने है।

बहरहाल, मुख्य मुद्दे पर आते हैं, बात सुप्रिया सुले की, कि क्या वे एनसीपी को संभाल पाएंगी। तो शायद ही वे ऐसा कर पाएं। क्योंकि, सुप्रिया सुले महाराष्ट्र की राजनीति से अनजान हैं। उन्होंने अपना राजनीति करियर 2006 में शुरू किया था। जब उन्हें एनसीपी की ओर से राज्यसभा सांसद बनाया गया था। उसके बाद 2009 में सुप्रिया सुले पहली बार बारामती लोकसभा सीट पर जीत दर्ज कर संसद पहुंची थी। सुले यहां से लगातार सांसद चुनी जाती रहीं है। जबकि, अजित पवार यहां से विधायक हैं। पहले यह कहा जाता था कि सुले केंद्र की राजनीति करेंगी।

वहीं अजित पवार महाराष्ट्र में रहेंगे। लेकिन, शरद पवार सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर सारा राजनीति समीकरण ही बदल दिया। ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि शरद पवारने  अजित पवार को अपना उत्तराधिकारी क्यों नहीं बनाया। हालांकि, इसका उत्तर अजित पवार ने कल दिया था। उन्होंने कहा कि ” हम आपके घर पैदा नहीं हुए है, तो इसमें हमारी क्या गलती है।” उन्होंने एक तरह से “वंशवाद” पर सवाल खड़ा किया। मगर, कुछ जानकारों का कहना है कि अजित पवार का विचारधारा से दूर-दूर तक नाता नहीं है। अजित पवार, नीतीश कुमार की तरह है। वे बीजेपी के भी साथ जाकर सरकार बना लेते हैं तो आरजेडी और कांग्रेस के भी साथ चले जाते है। हालांकि, अवसरवादी तो शरद पवार भी है।

वैसे ही अजित पवार को न तो बीजेपी ,न ही शिवसेना और न ही कांग्रेस से परहेज है। अगर सुप्रिया सुले की बात करें तो, वे एनसीपी के विचार को हर जगह रखती हैं। लेकिन शरद पवार का यह कहना कि शिवसेना साम्प्रदायिक और उसके साथ सरकार बनाना दोहरे चरित्र का सबूत है। वहीं वे पूर्ण रूप से जोड़तोड़ की राजनीति से दूर हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि सुप्रिया सुले, एनसीपी का नेतृत्व करने में अभी सक्षम नहीं हैं। आगे क्या करेंगी यह तो भविष्य के गर्भ में है। अगर, अजित पवार की बात करें तो तोड़फोड़ में वे माहिर हैं। उनकी महाराष्ट्र के साथ, एनसीपी संगठन पर भी काफी मजबूती से पकड़ है। यही वजह है कि बुधवार को शक्ति प्रदर्शन में अजित पवार,शरद पवार से मजबूत होकर उभरे।

वहीं, सुप्रिया सुले आम जनता से जुड़ी नहीं है। उनकी लोगों में गुस्सैल की भी छवि है, इसके इतर अजित पवार खरी खरी मुंह पर बोलते हैं। हालांकि अजित पवार जनता के बीच में रहते हैं तो साफ है कि उनका उनसे जुड़ाव भी है। ऐसे कहा जा सकता है कि आने वाले समय में एनसीपी का बिखराव ही होगा? सुप्रिया सुले को एनसीपी नेताओं को संभालना मुश्किल होगा? बहरहाल, आने वाले समय में यह देखना होगा कि सुले एनसीपी को कैसे चलाती है और वे लोगों को पार्टी से कैसे जोड़ती हैं। इन चुनौतियों से  वे कैसे निपटती है यह भी देखना दिलचस्प होगा।

 

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