कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है जो फिलहाल बुरे दौर से गुजर रही है। 2014 से पहले और बाद में भी कई नेताओं ने पार्टी को छोड़ा और बीजेपी में शामिल हुए या अपनी खुद ही राजनीति पार्टी बना ली। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ के आदिवासी और कांग्रेस के पूर्व नेता अरविंद नेताम का भी शामिल हो गया है। उन्होंने तीन दिन पहले ही कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और अब उन्होंने अपनी पार्टी बनाने का ऐलान किया है। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम भी तय कर लिया है। उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव में उन्नतीस सीटों पर अपने उम्मीदवार भी उतारने की घोषणा की है। तो आज हम अरविंद नेताम पर चर्चा करेंगे। अरविंद नेताम कौन हैं, उनका राजनीति करियर और कांग्रेस के छोड़ने पर पार्टी पर इसका क्या असर पड़ेगा।
दरअसल, अरविंद नेताम छत्तीसगढ़ के आदिवासी नेता है और वे केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं। पार्टी को छोड़ने से पहले उन्होंने कांग्रेस पर कई आरोप भी लगाए हैं। सबसे बड़ी बात यह कि उनकी उम्र लगभग 80 साल के आसपास हो गई है। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि पार्टी उन्हें हाशिये पर ढकेल दिया है। उन्हें कोई तवज्जो नहीं दिया जाता है। कांग्रेस आदिवासी हितों के लिए काम नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि अब वे आदिवासी समाज के लिए काम करेंगे।
गौरतलब है कि कुछ समय से अरविंद नेताम के पार्टी छोड़ने की अटकलें लगाई जा रही थी। जो सही साबित हुई।
वैसे, कांग्रेस के लिए एक बड़ा धक्का हो सकता है। क्योंकि नेताम छत्तीसगढ़ के बड़े आदिवासी नेताओं में शुमार किये जाते हैं। कांग्रेस से नेताम के जाने से आदिवासी क्षेत्रों पर आगामी चुनाव में असर पड़ सकता है। अरविंद नेताम ने 29 साल के ही उम्र में पहला लोकसभा चुनाव बस्तर कांकेर से लड़ा था। 1971 में हुए इस चुनाव में नेताम ने जीत दर्ज की थी और संसद पहुंचे थे। ध्यान रहे इस चुनाव से पहले कांग्रेस टूट गई थी। इसके बाद इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आर) के बैनर चुनाव लड़ा गया था। जिसमें इंदिरा गांधी गुट को 352 सीटें मिली थी। यह बात इसलिए बता रहा हूं कि उसी चुनाव में नेताम जीत दर्ज की थी और इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे। जिनका दलबदल का इतिहास पुराना है।
नेताम को उस समय केंद्र सरकार में समाज कल्याण और संस्कृति विभाग का उप मंत्री बनाया गया था। इसके अलावा नेताम 1993 से लेकर 1996 तक नरसिम्हा राव की सरकार में कृषि राज्य मंत्री भी रहें हैं। बता दें कि तब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश से अलग नहीं हुआ था। 2000 में इसका गठन किया गया। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में 36 गढ़ होने की वजह से इसका नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। बहरहाल, नेताम का नाम 1991 में हुए हवाला कांड से जोड़ा गया था। उसके बाद 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में हवाला कांड में नाम आने की वजह से उनकी पत्नी छबिया नेताम को कांग्रेस ने टिकट दिया था और उन्होंने जीत दर्ज की थी।
नेताम ने अपने राजनीति करियर में दलबदल भी किया है। उन्होंने 1997 में बसपा में शामिल हो गए और उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था। इसके बाद उन्होंने कांकेर लोकसभा सीट से 1998 में लोकसभा चुनाव लड़ा और हार गए। उस समय उनके सामने बीजेपी नेता सोहन पोटाई खड़ा थे। जो 2017 में नेताम के साथ मिलकर “जय छत्तीसगढ़ पार्टी” बनाई। दरअसल, छत्तीसगढ़ राज्य की मांग लंबे समय से आदिवासी समाज कर रहा था। जिसका सपना 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने पूरा किया।
हार के बाद नेताम की एक बार फिर घर वापसी हुई। लेकिन, नेताम ने एक बार फिर 2003 में एनसीपी का दामन थाम लिया। मगर नेताम एनसीपी से चार माह में ही ऊब गए और 2004 में बीजेपी के साथ चले गए। यहां भी उनका मन नहीं लगा तो एक बार फिर कांग्रेस में लौटे और 2007 में कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके बाद फिर 2012 में राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन करने के बजाय उन्होंने पी संगमा का समर्थन किया। तब नेताम ने पी संगमा का समर्थन करने के पीछे की वजह बताई थी की वे आदिवासी राष्ट्रपति के पक्ष में हैं। हालांकि, प्रणब मुखर्जी जीत गए थे। लेकिन कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया। 2018 फिर वे कांग्रेस में शामिल हुए थे। यह रहा नेताम का राजनीति करियर।
अब बात कांग्रेस छोड़ने की। तो कहा जा रहा है कि नेताम के पार्टी छोड़ने से ज्यादा पार्टी बनाने पर असर होने वाला है। क्योंकि नेताम बसपा और लेफ्ट पार्टी के साथ गठबंधन करने का ऐलान किया है। ऐसे में माना जा रहा है कि नेताम कांग्रेस के ही वोट में सेंधमारी करेंगे। नेताम का आदिवासी क्षेत्रों में अच्छी पकड़ है और वे लंबे समय से आदिवासी समाज के लिए काम भी कर रहे है। कांग्रेस ने नेताम के नेतृत्व में 2018 के विधानसभा चुनाव में बस्तर इलाके की 12 सीटों में से 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी। ऐसे में माना जा रहा है कि नेताम कांग्रेस को बस्तर इलाके में बड़ा झटका देने वाले हैं। बीजेपी भी इस मौके को भुनाने की कोशिश में है। बीजेपी में आदिवासी कई नेता हैं। जो अब सक्रिय हो गए हैं।
तो देखना होगा कि नेताम कांग्रेस का किस तरह से खेल बिगड़ेंगे ? कांग्रेस नेताम के खिलाफ किस आदिवासी नेता को आगे करेगी? इस पर सबकी निगाह लगी है। क्योंकि, कांग्रेस अभी हाल ही में राज्य में गुटबाजी रोकने के लिए टीएस सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बनाया है। सिंहदेव ने कहा था कि आगामी चुनाव एकजुट होकर लड़ेंगे। अब देखना होगा कि कांग्रेस नेताम का क्या काट खोजती है। यह वही बात हो गई कि “आसमान से गिरे खजूर पर अटकें।”
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