चंद्रयान-3 के साथ भारत के मिशन मून की चारों ओर चर्चा हो रही है। 15 साल में यह तीसरा मौक़ा है जब भारत चन्द्रमा के रहस्यों को जानने के लिए जोर शोर से जुटा हुआ है। भारत का पहला चंद्रयान-1, 2 अक्टूबर 2008 में श्रीहरिकोटा अनुसंधान केंद्र से प्रक्षेपण किया गया था। इसके जरिये भारत ने 2009 में इससे मिले डाटा का इस्तेमाल कर चन्द्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र के अंधकार वाले और सबसे ठंडे क्षेत्र वाले भागों में बर्फ के अंश का पता लगाया था।
इस यान में भारत सहित अमेरिका, जर्मनी सहित 11 वैज्ञानिक उपकरण थे। अभियान के सफल होने के बाद इसके कक्षा के दायरा को बढ़ा दिया गया था। बाद में 29 अगस्त 2009 में इस यान से संपर्क टूटने के पर अभियान को रद्द कर दिया गया। इस अभियान के बारे में इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष जी माधवन नायर ने कहा था कि चंद्रयान-1 95 प्रतिशत लक्ष्य हासिल किया था। इसके एक दशक बाद चंद्रयान-2 को लांच किया गया था। चंद्रयान -2 प्रक्षेपण 22 जुलाई 2019 में किया गया था। हालांकि। चांद पर पहुंचने के अंतिम चरण में रोवर के साथ लैंडर दुर्घटना ग्रस्त हो गया था।
बता दें कि चंद्रयान-2 की असफलता के बाद चंद्रयान -3 को लांच किया गया। 14 जुलाई 2023 को श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लांच पैड से प्रक्षेपित किया गया। इस यान को इसरो के एलवीएम-3 रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजा गया। अभी तक चंद्रयान -3 सफलता की नई कहानियां लिख है। लेकिन बताया जा रहा है अंतिम 15 मिनट यान के लिए बड़ा चुनौती पूर्ण है। बावजूद इसके इसरो वैज्ञानिक आत्मविश्वास से लबरेज हैं। उनका कहना है कि चंद्रयान -3 को चन्द्रमा पर आसानी से लैंड करा लिया जाएगा।
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