बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अडानी ग्रुप द्वारा निर्माण किये जाने वाले पोर्ट प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया है। यह प्रोजेक्ट 25 हजार करोड़ का था। ममता बनर्जी के इस फैसले से कई सवाल उठ रहे हैं। जैसे उन्होंने यह प्रोजेक्ट क्यों रद्द किया, क्या इसकी वजह महुआ मोइत्रा हैं? या राहुल गांधी ? क्या ममता बनर्जी की यह प्रेशर पॉलिटिक्स है ?
राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के दौरान हर रैली में गौतम अडानी को टारगेट किया है। सवाल यह है कि क्या पीएम मोदी की वजह से गौतम अडानी को राहुल गांधी निशाना बना रहे हैं ? अगर ऐसा है तो राहुल गांधी को कांग्रेस शासित राज्यों में गौतम अडानी के निवेश को बैन करना चाहिए। लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया है, बल्कि गौतम अडानी के लिए कांग्रेस शासित राज्य में रेड कारपेट बिछा रखा है। तो क्या यह कांग्रेस का दोगलापन नहीं है। वहीं, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अडानी ग्रुप द्वारा राज्य में बनाये जाने वाले पोर्ट का निर्माण रद्द कर दिया है। इसमें अडानी ग्रुप 25 हजार करोड़ रुपये का निवेश करने वाला था। लेकिन, अब बताया जा रहा कि ममता बनर्जी ने इस पोर्ट के निर्माण के लिए नए सिरे से टेंडर मंगाने की घोषणा की है। बंगाल के ताजपुर बंदरगाह के निर्माण के लिए पिछले साल ममता बनर्जी ने सहमति पत्र भी गौतम अडानी के बेटे को सौंपा था। लेकिन अब उन्होंने अडानी ग्रुप के टेंडर को रद्द कर दिया गया है।
ममता बनर्जी के इस फैसले से कई सवाल खड़े हो गए है। अब इस संबंध में जानकारों का कहना है कि ममता बनर्जी के निर्णय से राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ने वाली है। क्योंकि बार बार राहुल गांधी अडानी ग्रुप पर निशाना साध रहे हैं, लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों में गौतम अडानी द्वारा बड़े स्तर पर निवेश किया जा रहा है। जो राहुल गांधी के विरोध से मेल नहीं खाता है, एक तरफ वे अडानी ग्रुप के बहाने मोदी सरकार हमला कर रहे हैं, जबकि दूसरी ओर अडानी ग्रुप राजस्थान, छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में कई हजार करोड़ रुपये निवेश किया गया है। दरअसल कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी ने “प्रेशर पॉलिटिक्स” कर रही है। जब विपक्ष ने अडानी मामले जेपीसी जांच की मांग की थी तब ममता बनर्जी ने साथ नहीं दिया था।
इतना ही नहीं, जब विपक्ष की बैठक मुंबई में हुई थी तो राहुल गांधी ने बैठक से एक दिन पहले ही अडानी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था। तब ममता बनर्जी ने इस पर नाराजगी जाहिर की थी. अब ममता बनर्जी के इस फैसले से राहुल गांधी पर यह दबाव बनेगा कि जैसे वे घूम घूमकर जाति आधारित जनगणना कराने के वादे कर रहे हैं, वैसे ही उन्हें यह कहना पड़ सकता है कि जब वे सत्ता में आएंगे तो अडानी ग्रुप से जुड़े मामले की जांच कराएँगे और मोदी सरकार द्वारा की गई डील को रद्द करेंगे। इतना ही नहीं,राहुल गांधी पर यह भी दबाव बनेगा की वे कांग्रेस शासित राज्यों में अडानी प्रोजेक्टों को रोके या उन्हें तत्काल रद्द करें। लेकिन राहुल गांधी ऐसा कर पाएंगे, यह नहीं लगता है. क्योंकि हाल ही जब उनसे में इस संबंध में सवाल किया गया था तो उन्होंने इस पर बोलने के बजाय इस सवाल को टाल दिया था।
कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान अडानी ग्रुप ने 65 हजार करोड़ निवेश किया गया है, जबकि छत्तीसगढ़ में केवल 25 हजार करोड़ रुपये कोयला खादानों में लगाए गए हैं। राहुल गांधी अडानी ग्रुप को रोज कोस रहे हैं, लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद यहां के उद्योग मंत्री एमबी पाटिल ने कहा था कि अडानी ग्रुप राज्य में एक लाख करोड़ रुपये निवेश करेगा। इसके अलावा भी अडानी ग्रुप कई राज्यों में निवेश किया है जहां बीजेपी की सरकार है।
सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी ही कारण है। तो कहा जा सकता है कि ऐसा नहीं है, वहीं कुछ लोगों का मानना है कि टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा से जुड़ा विवाद भी इसका कारण हो सकता है। गौरतलब है कि महुआ मोइत्रा पर एक बिजनेसमैन द्वारा पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने का आरोप लग चुका है। इस मामले में जांच भी जारी है। महुआ मोइत्रा का कहना है कि अडानी ग्रुप से जुड़े सवाल पूछने के कारण उनके खिलाफ साजिश रची गई है। हालांकि, मोइत्रा के मामले में टीएमसी ने खुलकर सपोर्ट नहीं किया, लेकिन उन्हें नई जिम्मेदारी सौंपी गई है। उन्हें कृष्णा नगर का अध्यक्ष बनाया गया है। माना जा रहा है कि ममता बनर्जी मोदी सरकार से टकराने के लिए कमर कस चुकी है। मोइत्रा को नई जिम्मेदारी देना इस बात का संकेत है।
वहीं, यह भी कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी इंडिया गठबंधन में अडानी मामले पर दबाव बनाने को लेकर यह कदम उठाया ताकि गठबंधन से जुड़ा कोई नेता डबल स्टैंड न ले। बता दें कि जब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से भारत में बवाल मचा था तब गठबंधन में रहते हुए शरद पवार ने अडानी ग्रुप के मुखिया गौतम अडानी से इसी साल 20 अप्रैल को मुलाक़ात की थी। तब दोनों ने दो घंटे तक बंद कमरे में बैठक की थी। बैठक से पहले शरद पवार ने अडानी ग्रुप का समर्थन किया था और जेपीसी की मांग को नकार दिया था।
बहरहाल, इन तमाम सवाल जवाब के बाद यह मुद्दा है कि जिस तरह से देश में कारोबारियों के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है क्या यह देश हित में है। ममता बनर्जी विदेशी निवेशकों को राज्य में निवेश करने के लिए आमंत्रित कर रही है लेकिन अपने ही देश के उद्योगपति के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कर रही है क्यों ? सप्ताह भर पहले उन्होंने दावा किया था कि 70 हजार से अधिक बिजनेसमैन देश छोड़कर चले गए। ये देश में निवेश कर सकते थे। जिस तरह से राहुल गांधी और ममता बनर्जी ने अडानी और अंबानी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। ऐसे में क्या देश के बिजनेसमैन भारत में निवेश करने के इच्छुक होंगे ? ऐसा नहीं लगता है. ऐसा भी कहा जा सकता है कि विपक्ष देश के उद्योगपतियों के खिलाफ अघोषित बहिष्कार का निर्णय किया है।