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Wednesday, February 5, 2025
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राजनीति में आए तो मिशन लेकर आएं, एम्बीशन नहीं: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहला पॉडकास्ट, राजनीति में आने वाले युवाओं को नसीहत...

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झीरोधा के सह-संस्थापक निखिल कामथ की पॉडकास्ट सीरीज़ ‘पीपल बाय डब्ल्यूटीएफ’ में अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस पॉडकास्ट में उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल, भारत की तकनीकी प्रगति, सोशल मीडिया, राजनीति और उद्यमिता के साथ इसके समानताओं जैसे कई विषयों पर बात की है। दो घंटे लंबे इस एपिसोड में प्रधानमंत्री मोदी ने युवा अरबपति के साथ बातचीत की शुरुआत में कहा, “यह मेरा पहला पॉडकास्ट है। यह दुनिया मेरे लिए बिल्कुल नई है।” वहीं निखिल कामथ ने भी पॉडकास्ट की शुरुआत में कहा की उनकी मातृभाषा भी हिंदी नहीं है और वे गलतियाँ कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने हंसते हुए कहा कि वे भी मूल रूप से हिंदी भाषी नहीं हैं।

इसी पॉडकास्ट के निखील कामथ ने पूछा की अगर किसी को राजनेता बनना है तो उसमें किस प्रकार के कौशल्य होने चाहिए जो आप समझते है। इस पर जवाब देते हुए प्रदानमंत्री ने कहा, इसमें दो भाग है, एक राजनेता बनना एक भाग है राजनीती में सफल होना दूसरी चीज है। एक है राजनीती में आना, दूसरा होता है सफल होना। इसके लिए तो आपका एक डेडिकेशन (समर्पण) चाहिए, कमिटमेंट (प्रतिबद्धता) चाहिए, जनता के सुखदुःख के आप साथी होना चाहिए। आप वास्तव में अच्छे टीम प्लेयर होने चाहिए। आप यह नहीं कह सकते के में नेता हूं और सबको चलाऊंगा और दौडाऊंगा, सब मेरा हुकुम मानेंगे तो ऐसा नहीं होगा। हो सकता है उसकी राजनीति चल जाए और वो जीत जाए, लेकिन वो सफल राजनेता बन जाए ये गारंटी नहीं है।

इसी के साथ प्रधानमंत्री ने कहा में जो सोचता हूँ शायद उससे विवाद पैदा हो सकता है, जब आझादी का आंदोलन चला उसमें समाज के सब वर्ग के लोग जुड़े, लेकीन सब राजनीति में नहीं आए। किसी ने अपना जीवन प्रौढ़ शिक्षा को दिया, किसी ने खादी को दिया, किसी ने जनजातियों की भलाई के लिए दिया। सभी रचनात्मक कामों में लग गए। लेकिन वह देशभक्ति से प्रेरित आंदोलन था, भारत को आझाद कराने के लिए सब ने अपने हिस्से का काम किया। आझादी के बाद उसमें से एक गुट राजनीति में आया,इसीलिए शुरू में जितने भी हमारे देश के आझादी के आंदोलन से निकले राजनेता, स्टॉलवॉर्ड्स अलग है, उनकी सोच, उनकी मचुरिटी अलग है, क्योंकि वो आझादी के आंदोलन से आए थे। उनकी बाते और भाव जो सुनने में आतें है वो अलग है। इसीलिए मेरा मानना है की राजनीति में अच्छे लोग आते रहने चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी ने अच्छे लोगों को राजनीति में आते वक्त मिशन लेकर आए, अम्बिशन लेकर न आए ऐसी बात की है। अगर आप मिशन लेकर निकले हो तो आपको कहीं न कही स्थान मिलेगा। आपका मिशन, एम्बिशन से ऊपर होना चाहिए, तब जाकर सफलता मिलेगी।

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साथ ही प्रधानमंत्री ने आजकल राजनेता के चरित्र की धारणाओं पर सवाल लगाते हुए कहा की आज कल राजनेता का एक चरित्र सोचा जाता है, लच्छादार भाषण करने वाला होना चाहिए, ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए, यह कुछ दिन चल जाता है, तालियां बज जाती है, लेकिन अल्टीमेटली जीवन काम करता है। वहीं प्रधानमंत्री ने भाषण कला से बढ़कर कम्युनिकेशन की कला को ज्यादा महत्वपूर्ण बताया है। उन्होंने कहा, महात्मा गाँधी अपने से ऊंचा डंडा लेकर चलते थे, लेकिन अहिंसा के मार्ग पर चलते थे। गांधीजी ने कभी टोपी नहीं पहनी लेकीन लोग गांधी टोपी पहनते थे, ये कम्युनिकेशन की ताकद थी। महात्मा गांधी का राजनीतिक क्षेत्र था, लेकीन राजनीतिक व्यवस्था नहीं थी। वो चुनाव नहीं लड़े, वो सत्ता में नहीं थे लेकीन उनकी मृत्यु के बाद उस जगह का नाम राजघाट पड़ गया।

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