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शकील बदायुनी के अमर नग़में: वो गीतकार जिनकी कलम आज भी दिलों को छू जाती है!

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भारतीय सिनेमा की कल्पना गीतों के बिना अधूरी मानी जाती है, खासकर जब बात प्रेम गीतों की हो। इन्हीं रूमानी नग़मों को नया आयाम देने वाले शायर और गीतकार थे शकील बदायुनी, जिनके लिखे गीत आज भी दिलों पर वही असर करते हैं, जो दशकों पहले किया करते थे।

3 अगस्त 1916 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मे शकील बदायुनी को हिंदी फिल्मों के सबसे रूमानी गीतकारों में शुमार किया जाता है। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की और वहीं से उनकी शायरी की यात्रा शुरू हुई। मुशायरों में उनके अशआरों ने खूब वाहवाही बटोरी, और जल्द ही वे इस हुनर को परदे पर लाने मुंबई पहुंच गए।

1946 में मुंबई आने के बाद उनकी मुलाकात मशहूर संगीतकार नौशाद से हुई। इस मुलाकात की एक दिलचस्प दास्तान है।  नौशाद साहब ने शकील से उनका हुनर एक लाइन में बताने को कहा। शकील ने जवाब दिया: “हम दर्द का अफसाना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल में मोहब्बत की एक आग लगा देंगे।” बस यही था वो लम्हा, जब शकील को उनकी पहली फिल्म ‘दर्द’ (1947) मिली, और इसी फिल्म का मशहूर गीत ‘अफसाना लिख रही हूं दिल-ए-बेकरार का’ उन्हें शोहरत की बुलंदियों तक ले गया।

इसके बाद नौशाद और शकील की जोड़ी ने 1950 और 60 के दशक में ऐसे गीत दिए जो आज भी हर दिल में बसते हैं ,जैसे ‘प्यार किया तो डरना क्या’ (मुगल-ए-आज़म, 1960), ‘चौदहवीं का चांद हो’ (चौदहवीं का चांद, 1960), और ‘ओ दुनिया के रखवाले’ (बैजू बावरा, 1952) जैसे नग़में।

1962 की फिल्म ‘साहिब बीवी और गुलाम’ में शकील के गीतों ने एक बार फिर जादू बिखेरा। ‘न जाओ सैंया’ में जहां स्त्री का दर्द उभरता है, वहीं ‘पिया ऐसो जिया में समाए’ जैसे गीत में श्रृंगार रस की मधुरता देखने को मिलती है। ये गाने मीना कुमारी और गुरुदत्त के किरदारों की आत्मा बन गए थे।

शकील बदायुनी की खासियत थी कि वे सिर्फ इश्क-मोहब्बत तक सीमित नहीं थे। उन्होंने अध्यात्म में भी अपनी लेखनी का जादू दिखाया। ‘मन तड़पत हरि दर्शन को आज’ ये भजन आज भी हर भक्त के हृदय में गूंजता है। इस गीत में उनकी रूहानी भावनाएं उतनी ही प्रबल हैं जितनी कि प्रेम गीतों में उनका जज़्बा। नौशाद ने इस भजन को संगीतबद्ध किया और मोहम्मद रफी ने इसे अपनी आवाज़ दी, जिससे यह अमर हो गया।

शकील बदायुनी सिर्फ गीतकार नहीं थे, वे एक युग थे। उनके नग़मे आज भी रेडियो से लेकर प्लेलिस्ट तक ज़िंदा हैं, और आने वाली पीढ़ियों तक उनका असर बना रहेगा। हिंदी सिनेमा का रोमांस अगर अमर है, तो उसमें शकील बदायुनी की कलम का जादू ज़रूर शामिल है।

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