भारतीय स्टार्टअप जगत में कैपिटल गेन और डिविडेंड नीति को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। भारतपे के पूर्व सह-संस्थापक अशनीर ग्रोवर ने ज़िरोधा के संस्थापक नितिन कामथ के उस बयान पर प्रतिक्रिया दी है जिसमें कामथ ने कहा था कि स्टार्टअप्स और निवेशकों को डिविडेंड की बजाय लंबी अवधि की वैल्यू और कैपिटल गेन पर ध्यान देना चाहिए। ग्रोवर ने सवाल उठाया कि क्या यह मॉडल वास्तव में टिकाऊ है और क्या इससे पूरे स्टार्टअप ईकोसिस्टम को नुकसान नहीं हो रहा है।
अशनीर ग्रोवर ने कर ढांचे का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में डिविडेंड पर कुल प्रभावी टैक्स लगभग 52% के आसपास होता है, जबकि कैपिटल गेन टैक्स लगभग 15% है। उन्होंने कहा कि इस बड़े अंतर की वजह से स्टार्टअप्स को लाभ कमाने और डिविडेंड देने के बजाय, अपनी वैल्यूएशन बढ़ाने और शेयर बेचने को ज़्यादा अहमियत दी जाती है। इस कारण, कंपनियां मुनाफे की बजाय तेज़ी से विस्तार और यूज़र बेस बढ़ाने पर संसाधन खर्च करती हैं।
ग्रोवर ने यह भी कहा कि वेंचर कैपिटल बैक्ड स्टार्टअप्स अक्सर जानबूझकर कम मुनाफा या घाटा दिखाते हैं ताकि उनका ध्यान वैल्यूएशन और कैपिटल गेन पर टिका रहे। उन्होंने चेतावनी दी कि यह मॉडल तब मुश्किल में आता है जब बाज़ार में वित्तीय दबाव बढ़ता है, और ऐसे कई स्टार्टअप्स फिर टिक नहीं पाते।
Bhai – is logic se all investors should invest in a business and wait for returns as dividend only rather than selling and realising capital gain. Would Zerodha / any other broker would still be in business then ?
— Ashneer Grover (@Ashneer_Grover) November 5, 2025
उन्होंने सुझाव दिया कि यदि निवेशक नियमित रिटर्न की उम्मीद में डिविडेंड नीति पर ज़ोर दें, तो कंपनियों को भी स्थायी और लाभदायक मॉडल विकसित करने होंगे। उनके अनुसार, इससे पूरा स्टार्टअप ईकोसिस्टम अधिक मजबूत और संतुलित बन सकता है।
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