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जवानों की शहादत का बदला लेकर डीजीपी ने कहा, सरेंडर करें या मारें जाएंगे !

सुरक्षा बलों और पुलिस ने आठ कुख्यात नक्सलियों को मार गिराने के बाद डीजीपी की चेतावनी।

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झारखंड में नक्सलवाद के खिलाफ चल रही जंग अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। बोकारो जिले के ललपनिया स्थित लुगू पहाड़ी में सोमवार को हुए मुठभेड़ में सुरक्षा बलों और पुलिस ने आठ कुख्यात नक्सलियों को मार गिराया। इनमें एक करोड़ का इनामी और भाकपा माओवादी की केंद्रीय समिति का सदस्य प्रयाग मांझी उर्फ विवेक, 25 लाख का इनामी अरविंद यादव और 10 लाख का इनामी साहेब राम मांझी भी शामिल हैं। इस बड़ी सफलता के बाद झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता ने सख्त चेतावनी दी है—”सरेंडर करें या मारें जाएंगे!”

पुलिस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए डीजीपी ने साफ कहा कि यह कार्रवाई हाल ही में चाईबासा में शहीद हुए जवान की शहादत का बदला है। उन्होंने दो टूक कहा, “हमारे जवान की कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी। नक्सलियों को चुन-चुनकर खत्म किया जाएगा। अगर बचना है तो आत्मसमर्पण करें, वरना अगली गोली उन्हीं के लिए है।”

सुरक्षा बलों और पुलिस की संयुक्त टीम ने ललपनिया थाना क्षेत्र के लुगू पहाड़ में तड़के चार बजे सर्च ऑपरेशन शुरू किया था। तभी जंगल में छिपे नक्सलियों ने फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में आठ नक्सली ढेर हो गए। घटनास्थल से भारी मात्रा में हथियार बरामद हुए हैं, जिनमें चार इंसास राइफल, एक एसएलआर और एक रिवॉल्वर शामिल हैं।

इस ऑपरेशन की खास बात यह है कि मारा गया टॉप माओवादी प्रयाग मांझी उर्फ विवेक, झारखंड के अलावा छत्तीसगढ़, बिहार और पश्चिम बंगाल में भी सक्रिय था। अकेले झारखंड के चार जिलों—गिरिडीह, बोकारो, चाईबासा और धनबाद—में उसके खिलाफ 60 से ज्यादा मामले दर्ज थे। 2023 में उसे पारसनाथ और झुमरा पहाड़ियों की कमान सौंपी गई थी।

झारखंड पुलिस का दावा है कि 2024 में अब तक 13 नक्सली मारे जा चुके हैं, 244 गिरफ्तार हुए हैं और 24 ने आत्मसमर्पण किया है। आत्मसमर्पण करने वालों में कई शीर्ष स्तर के कमांडर शामिल हैं। यह आँकड़े साफ दर्शाते हैं कि राज्य सरकार और सुरक्षा बल अब नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ने के मूड में हैं।

डीजीपी गुप्ता ने यह भी बताया कि आने वाले समय में चाईबासा को नक्सल मुक्त करने पर फोकस किया जाएगा। उन्होंने दोहराया कि झारखंड बहुत जल्द पूरी तरह नक्सल मुक्त होगा और यह ऑपरेशन उस दिशा में सबसे बड़ा कदम है। अब नक्सलियों को स्पष्ट होना चाहिए कि झारखंड में बंदूक नहीं, संवाद और आत्मसमर्पण ही आगे का रास्ता है। जो नक्सली यह समझने से इनकार करेंगे, उनके लिए सुरक्षा बलों की बंदूकें तैयार हैं।

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