‘रिसिन’ मॉड्यूल का खुलासा: ज़हर बेचकर अमीर बनने की योजना बना रहा था मुख्य आरोपी डॉ. मोहिउद्दीन

गुजरात ATS द्वारा पकड़े गए

‘रिसिन’ मॉड्यूल का खुलासा: ज़हर बेचकर अमीर बनने की योजना बना रहा था मुख्य आरोपी डॉ. मोहिउद्दीन

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गुजरात ATS द्वारा इस महीने की शुरुआत में उजागर किए गए बायो-टेरर प्लॉट में मुख्य आरोपी डॉ. अहमद मोहिउद्दीन सईद के इरादे सिर्फ आतंकी नहीं, बल्कि आर्थिक भी थे। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि डॉ. मोहिउद्दीन घातक ज़हर रिसिन बेचकर अमीर बनने का सपना देख रहा था। ATS ने उसे उसके दो सहयोगी अज़ाद सुलेमान शेख और मोहम्मद सुहैल मोहम्मद सलीम खान के साथ 8 नवंबर को गुजरात के बनासकांठा से गिरफ्तार किया था।

डॉ. मोहिउद्दीन के भाई फ़ारूकी ने पुलिस को बताया कि जब भी वह फ्लैट में आने वाले पार्सलों के बारे में पूछते, तो मोहिउद्दीन कहता कि वह “ऐसी दवा बना रहा है जिससे पूरा परिवार अमीर हो जाएगा।” हैदराबाद के राजेंद्रनगर स्थित असद मंज़िल अपार्टमेंट में अकेले रहने वाला यह डॉक्टर चीन से MBBS कर चुका था और इंटरनेट पर मुफ्त परामर्श भी देता था।

गुजरात ATS के DIG सुनील जोशी ने पुष्टि की कि मोहिउद्दीन के तार पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI से जुड़े पाए गए।
अन्य दो आरोपी 20 वर्षीय दर्जी अज़ाद सुलेमान और 23 वर्षीय छात्र सुहैल उत्तर प्रदेश के शामली और लखीमपुर खीरी के रहने वाले हैं। ATS ने सुहैल के घर से ISIS साहित्य और झंडे भी बरामद किए। तीनों पर UAPA, शस्त्र अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता के तहत मामला दर्ज किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, जांच में पता चला कि आरोपी जिस मॉड्यूल का हिस्सा थे, वह रिसिन का उपयोग करके बड़े स्तर पर रासायनिक हमला करने की योजना बना रहा था। डॉ. मोहिउद्दीन को उसके विदेशी हैंडलर अबू खदीजा, जो अफगानिस्तान में स्थित इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP) से जुड़ा है, निर्देश दे रहा था। ATS ने कहा कि उसके पास मोहिउद्दीन और हैंडलर के बीच सोशल मीडिया चैट के प्रमाण और ChatGPT पर खतरनाक रसायन बनाने के तरीकों की खोज का रिकॉर्ड मिला है।

पूछताछ में खुलासा हुआ कि अज़ाद सुलेमान और सुहैल ने पाकिस्तान-आधारित हैंडलर के निर्देश पर मोहिउद्दीन को एक हथियारों से भरा बैग दिया था। अज़ाद एक बार जम्मू-कश्मीर के बारामूला भी गया था, जहाँ वह हमला करना चाहता था, लेकिन लक्ष्य न मिलने पर दिल्ली लौट आया। इसके बाद वह हरिद्वार गया और प्रमुख मंदिरों की रेकी की। तीनों ने यह भी बताया कि वे अरंडी के बीजों से रिसिन निकालने की तैयारी में थे, लेकिन इसके इस्तेमाल का तरीका तय नहीं हुआ था।

रिपोर्ट के अनुसार, 1978 से 2025 के बीच 40 वैश्विक साजिशों में रिसिन का उपयोग किया गया है, हालांकि भारत में इसका कोई प्रमाणित मामला नहीं मिला है। लखनऊ के रसायन विशेषज्ञ आनंद अवस्थाना ने बताया कि रिसिन सफेद पाउडर जैसा होता है, और जितना महीन पाउडर होगा, उतना घातक। धूल भरे इलाके में फैलाया जाए तो बड़ी आबादी प्रभावित हो सकती है। इसके प्रभाव 2–3 दिन में दिखते हैं, लेकिन कोई एंटीडोट नहीं होता, यानी इसका असर लगभग निश्चित रूप से घातक है। यह पानी में घुल सकता है और सिरिंज से इंजेक्ट करने पर तुरंत रक्त में मिल जाता है।

रिसिन की खोज 1888 में जर्मन वैज्ञानिक पीटर हरमन स्टिलमार्क ने की थी। इसे साइनाइड से भी अधिक घातक माना जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन सेना ने इसका उपयोग किया था। मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन संस्थान के अनुसार, इसे US CDC ने कैटेगरी-B बायोटेररिज़्म एजेंट के रूप में वर्गीकृत किया है।UN सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के तहत यह रसायन प्रतिबंधित है। भारत के Weapons of Mass Destruction Act, 2005 के तहत इसका उत्पादन व भंडारण कड़ाई से वर्जित है।

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