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Tuesday, December 9, 2025
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सुरक्षाबलों की बड़ी कामियाबी, एक करोड़ के इनामी माओवादी समेत 8 नक्सली ढेर!

वर्ष 2024 में जहां 244 नक्सली गिरफ्तार हुए, वहीं 24 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा में लौटने का साहसिक फैसला लिया।

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झारखंड की लुगू पहाड़ियों में सोमवार(21 अप्रैल) सुबह शुरू हुई मुठभेड़ ने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था और नक्सल विरोधी अभियान को एक बार फिर सुर्खियों में ला खड़ा किया है। बोकारो के ललपनिया क्षेत्र में हुई इस भीषण भिड़ंत में अब तक आठ नक्सली मारे जा चुके हैं, जिनमें सबसे बड़ी कामयाबी माओवादी संगठन के कुख्यात सेंट्रल कमेटी सदस्य प्रयाग मांझी की ढेर होने के रूप में मिली है। “केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल ने राज्य पुलिस के साथ संयुक्त अभियान में झारखंड के बोकारो जिले के ललपनिया क्षेत्र की लुगू पहाड़ियों में आज सुबह मुठभेड़ में चार नक्सलियों को ढेर कर दिया,” सीआरपीएफ के बयान में कहा गया, और अब यह संख्या बढ़कर आठ हो चुकी है।

नक्सली हलकों में विवेक दा, फुचना, नागो मांझी और करण दा जैसे नामों से जाना जाने वाला प्रयाग मांझी, नक्सली नेटवर्क में आतंक का पर्याय बन चुका था। गिरिडीह, बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में सौ से अधिक नक्सली घटनाओं में उसकी संलिप्तता थी। धनबाद के टुंडी क्षेत्र का निवासी यह शातिर नक्सली, अकेले गिरिडीह जिले में ही पचास से अधिक मामलों में वांछित था। उस पर राज्य सरकार ने एक करोड़ का इनाम घोषित कर रखा था — और अब वही शख्स लुगू की धरती पर ढेर हो चुका है।

इस अभियान में ‘कोबरा’ की 209 कमांडो बटालियन और झारखंड पुलिस की संयुक्त टीम ने अभूतपूर्व साहस का परिचय दिया। जंगल के घने इलाके में छिपे नक्सलियों ने जब सुरक्षा बलों पर गोलीबारी शुरू की, तो जवानों ने मोर्चा संभालते हुए करारा जवाब दिया। इस कार्रवाई के दौरान एक एसएलआर और एक इंसास राइफल भी बरामद की गई है। राहत की बात यह है कि अभी तक किसी भी जवान के घायल होने की खबर नहीं है, जबकि रुक-रुक कर गोलीबारी जारी है।

झारखंड में इस वर्ष नक्सलवाद के विरुद्ध जारी मुहिम तेज होती दिख रही है। अब तक कुल 13 नक्सली मारे जा चुके हैं, और पुलिस का दावा है कि 2025 झारखंड को नक्सलमुक्त करने की दिशा में निर्णायक साबित होगा। वर्ष 2024 में जहां 244 नक्सली गिरफ्तार हुए, वहीं 24 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा में लौटने का साहसिक फैसला लिया। इनमें उच्च पदस्थ कमांडर भी शामिल हैं।

लुगू की इस मुठभेड़ ने यह साबित कर दिया है कि सरकार और सुरक्षा बल अब सिर्फ जवाबी कार्रवाई नहीं, बल्कि निर्णायक जीत की राह पर हैं। झारखंड के जंगलों में बंदूक की गूंज धीरे-धीरे लोकतंत्र की आवाज़ से दब रही है — और यह उम्मीद की सबसे बड़ी गूंज है।

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