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Tuesday, December 30, 2025
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तेलंगाना में माओवादियों को फिर बड़ा झटका; आत्मसमपर्ण में एक सप्ताह के भीतर दूसरी बड़ी सफलता !

इस साल 250 नक्सलवादी कर चुके है आत्मसमर्पण...

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प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) को तेलंगाना में एक और करारा झटका देते हुए मुलुगु जिले में शुक्रवार (11 अप्रैल) को 22 माओवादियों ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। यह घटनाक्रम भद्राद्री कोठागुडेम जिले में पिछले सप्ताह 86 माओवादियों के सरेंडर के कुछ ही दिन बाद सामने आया है।

मुलुगु जिला पुलिस मुख्यालय में पुलिस अधीक्षक डॉ. पी. शबरीश के समक्ष माओवादियों ने अपने हथियार डाल दिए। आत्मसमर्पण करने वालों में चार एरिया कमेटी सदस्य (एसीएम), एक पार्टी सदस्य और शेष मिलिशिया सदस्य शामिल हैं।

पुलिस अधीक्षक ने घोषणा की कि समाज की मुख्यधारा में लौटने वाले एसीएम को 4-4 लाख रुपये, पार्टी सदस्य को 1 लाख रुपये और अन्य मिलिशिया सदस्यों को 25-25 हजार रुपये की सहायता राशि दी जाएगी। उन्होंने सभी प्रमुख माओवादी नेताओं से भी अपील की कि वे हथियार छोड़कर लोकतांत्रिक प्रणाली में विश्वास जताएं और राष्ट्रीय विकास की धारा से जुड़ें।

एसपी शबरीश ने कहा, “वामपंथी उग्रवाद की विचारधारा अब प्रासंगिक नहीं रही। माओवादी जंगलों में रहकर कोई भी रचनात्मक उद्देश्य प्राप्त नहीं कर सकते।” उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि जंगलों में आदिवासियों की आवाजाही रोकने और बम लगाए जाने की धमकी देने वाले माओवादियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

उन्होंने स्पष्ट किया कि आदिवासी समुदाय परंपरागत रूप से जंगलों पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर रहे हैं, और मवेशी चराना, वनोपज एकत्र करना उनकी प्राकृतिक गतिविधियों का हिस्सा है। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे माओवादियों की धमकियों से डरें नहीं — “मुलुगु पुलिस उनके साथ है और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हर आवश्यक कदम उठा रही है।”

गौरतलब है कि इस साल अब तक करीब 250 माओवादी उग्रवादी तेलंगाना में आत्मसमर्पण कर चुके हैं। मार्च में ही 64 माओवादियों ने भद्राद्री-कोठागुडेम पुलिस के सामने सरेंडर किया था, जबकि हाल ही में सरेंडर करने वाले 86 माओवादियों में 82 भद्राद्री-कोठागुडेम जिले के और चार मुलुगु जिले के थे। ये सभी छत्तीसगढ़ के बीजापुर जंगलों में सक्रिय थे।

तेलंगाना पुलिस की रणनीति और सरेंडर पॉलिसी माओवाद प्रभावित इलाकों में असरदार साबित हो रही है, जिससे हिंसा के रास्ते पर चल रहे कई युवा अब मुख्यधारा की ओर लौटने लगे हैं।

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