करीब दस साल बाद कांग्रेस को संसद में विपक्ष के नेता का पद संभालने का मौका मिला है| 2014 और 2019 के चुनाव में कांग्रेस के 10 फीसदी से भी कम सांसद चुने गये थे| इसलिए उन्हें नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं मिला| हालाँकि, 2024 के चुनावों में, चूंकि कांग्रेस ने 99 सीटें जीतीं और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, इसलिए विपक्ष के नेता का पद स्वाभाविक रूप से उनके पास आ गया। इतना ही नहीं, चूंकि संसद में विपक्ष की ताकत भी बड़ी है, इसलिए विपक्ष के लिए मोदी सरकार पर काबू पाना आसान होगा, लेकिन उसके लिए ऐसे सक्षम, मजबूत विपक्षी नेता का होना जरूरी है|
कांग्रेस नेता राहुल गांधी को विपक्ष का नेता बनाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी को विपक्षी दल का नेता बने रहने में कोई दिलचस्पी नहीं है| वे सत्ता से बाहर रहना और सत्ता अपने हाथ में रखना पसंद करते हैं, इसलिए वे इतनी बड़ी और महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियां अपने ऊपर नहीं लेंगे। संसद में सरकार को घेरने के बजाय राहुल गांधी का ध्यान सड़कों पर मोदी को घेरने पर है और समझा जाता है कि उनकी प्रचार टीम ने भी उन्हें ऐसा ही करने की सलाह दी है|
बता दें कि संसद में विपक्ष के नेता के पास केंद्रीय मंत्रियों के समान ही शक्तियां और विशेषाधिकार होते हैं। विपक्ष के नेता की मंजूरी के बिना ईडी और सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति नहीं की जा सकती| नेता प्रतिपक्ष की ताकत का बखान करने के लिए ये एक उदाहरण ही काफी है| भले ही कांग्रेस विपक्ष का नेता चुनती हो, लेकिन वह सभी विपक्षी दलों का नेता होता है। वह सभी को एक साथ लाकर संसद चलाना चाहते हैं| सरकार गिराना चाहती है|
सरकार की जनविरोधी नीति का भरपूर विरोध करना है, कोई बिल स्वीकार्य नहीं है तो उसका विरोध करना है और निरस्त करना है। संसद में महत्वपूर्ण चर्चाओं के दौरान सांसदों की उपस्थिति की योजना बनानी होगी। इसका मतलब है कि पद बहुत बड़ा और जिम्मेदारी वाला है| और इसीलिए कहा जा रहा है कि राहुल गांधी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं|
विपक्ष का नेता नियुक्त होने पर राहुल गांधी को सत्र के दौरान हर समय मौजूद रहना होगा| अधिकारियों को हर बात पर बारीकी से ध्यान देना होगा, किस पार्टी को कितनी देर तक बोलना है इसका टाइम मैनेजमेंट करना होगा| क्योंकि राहुल गांधी पूरे समय संसद में नहीं बैठना चाहते| वह केवल महत्वपूर्ण मुद्दों पर ही संसद में जाना चाहते हैं और पिछले 10 वर्षों में उन्होंने कई बार ऐसा दिखाया है।
राहुल गांधी कभी भी किसी महत्वपूर्ण विधेयक पर चर्चा के दौरान पूरे समय संसद में मौजूद नहीं रहे| जब उनका अपना भाषण पूरा हो जाता है तो वे चले जाते हैं। पिछली बार वह भारत जोड़ो यात्रा के चलते सिर्फ एक दिन के लिए संसद आये थे| बताया जाता है कि बाहर रहने और विदेश यात्रा करने की आदत के कारण वह नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं चाहते हैं| साथ ही राहुल गांधी को हाई पावर कमेटी की सभी बैठकों में शामिल होना होगा| विपक्ष के नेता लेखा समिति के अध्यक्ष भी होते हैं।
लेखा समिति केंद्र सरकार के पैसे का हिसाब रखती है और विपक्ष के नेता द्वारा इसकी बारीकी से निगरानी की जाती है। विपक्ष के नेता को लेखा समिति की प्रत्येक बैठक में भाग लेना होता है। इतना ही नहीं उन्हें विपक्ष के नेता के तौर पर ‘इंडिया’ गठबंधन के सभी घटक दलों को एकजुट रखने की बड़ी जिम्मेदारी भी निभानी होगी| और ऐसा करना राहुल गांधी का स्वभाव नहीं है|
बताया जा रहा है कि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, गुजरात और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थिति को और मजबूत करने के लिए काम करना चाहते हैं और इसके लिए राहुल गांधी विपक्ष के नेता का पद ठुकरा रहे हैं, लेकिन ये एक गलती है| राहुल गांधी को जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटना चाहिए और संसद में सत्ता पक्ष के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।’ जल्द ही कांग्रेस सांसदों की बैठक होगी और विपक्ष के नेता के नाम की घोषणा की जाएगी| राहुल गांधी के बाद नेता प्रतिपक्ष पद के लिए असम के गौरव गोगोई और हरियाणा की कुमारी शैलजा के नाम पर विचार किया जा रहा है| कुछ लोग तो शशि थरूर का भी नाम ले रहे हैं|
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