दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 27 साल बाद फीर एक बार सत्ता हासिल की। दिल्ली में 10 साल तक आम आदमी पार्टी, खासकर अरविंद केजरीवाल ने 10 साल तक निरंकुश राज किया इस दौरान आम आदमी पार्टी अपनी छबि को समाजसेवी और ईमानदार पार्टी बनाए रखने में लगी रही। 2015 में AAP को 67 सीटें मिलीं थी, AAP की इसी जीत के कारण दिल्ली में और देश में बड़ा बदलाव आने वाला ऐसा माना जा रहा था। 2020 में AAP को 62 सीटों के साथ बड़ी जीत मिली और 2015 और 2020 के चुनावों में पार्टी को 54 और 53 प्रतिशत मतदान भी मिला था, जबकि भाजपा को 32 और 38 प्रतिशत मतदान मिल रहा था। ऐसे बड़े निर्णयों के साथ भाजपा केजरीवाल को मात देगी ऐसा किसीने सोचा भी नहीं था, खुद आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री के तौर पर भरी विधानसभा में प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देकर कहा था की मोदीजी आपको दिल्ली में आम आदमी पार्टी को हराने के लिए अगला जनम लेना होगा। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था, 2025 के चुनाव में भाजपा ने बाजी पलट दी। वोट शेयर की बात करें तो आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 53 प्रतिशत से गिरकर 43 प्रतिशत पर आया है और भाजपा का वोट शेयर बढ़कर 45 प्रतिशत पहुँच गया है।
मार्केट में ब्रांड अम्बैसेडर एक सीरियस बात होती है…चाहे मार्केट उत्पाद का हो या फिर चुनाव का लोग ब्रांड देखकर ही पीछे पड़ते है। अरविंद केजरीवाल ने अपनी छबि के पीछे आम आदमी पार्टी को छुपा लिया था। यह पार्टी सिर्फ नाम के लिए थी और केजरीवाल इसके सर्वे सर्वा…आज भी आप पंजाब में जाए तो पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान केजरीवाल के पिछे रहते है…और अरविंद केजरीवाल की इमेज को बूस्ट किया जाता है। इतनी भारी भरकम ब्रांड को बनाने के बाद उस पर दाग लगते ही लोगोंका भरोसा उठ जाता है, लोग विकल्प ढूँढना शुरू करते है। और दिल्ली में यही हुआ भी…दिल्ली में जो लीकर स्कैम हुआ उसके तार सीधे उसी नेता से जुड़े जिसे सबसे ईमानदार प्रोजेक्ट किया जा रहा था, जिसे सबसे अधिक लोकप्रिय और निष्कलंक बताया गया था।इन चुनावों में अरविंद केजरीवाल बतौर लीकर स्कैम के अपराधी के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। केजरीवाल वैसे तो इमेज को अच्छे से मेंटेन भी कर रहे थे, आम आदमी जैसे शर्ट्स पहनना, आम आदमी की तरह रेनॉल्ड्स की दस रुपए वाली पेन रखना, आम आदमी की तरह मफलर पहनकर निकलना यही सब केजरीवाल जनता में दिखाते थे, ये लालू यादवजी से थोड़ी एडवांस काइयां हरकत है, पर केजरीवाल ने इस किरदार को बड़े आत्मविश्वास के साथ निभाया, आगे चलकर वहीं केजरीवाल आलिशान महल में अपना डेरा जमाए दिखतें है। वही केजरीवाल घर में 10-10 लाख के जैपनीज़ टॉयलेट्स बनवाते है, और उस आवास को छोड़ने के बाद वो टॉयलेट भी वहां से गायब हो जाते है। लाखो की फ्लोरिंग, लाखों का फर्नीचर, करोड़ों का इंटीरियर, और लाखों के पर्दे यह सब देख कर आम लोगों की बात छोडो दिल्ली के आमिर लोगों को भी कॉम्प्लेक्स होने लगा। भाजपा ने इसे शीशमहल के नाम से फेमस किया, आखिरकर ब्रैंड पर दाग लगा लोगोने भी ब्रांड को टटोलना शुरू किया।
AAP की हार का दूसरा कारण रहा एंटी इंकम्बैंसी…दस साल दिल्ली की कमान संभालने के बावजूद केजरीवाल कुछ नया, कुछ चमकीला, कुछ क्रन्तिकारी लोगों के हित की चीज नहीं ला पाए थे। हां उनकी फ्रीबी की नीतियां काफी लोकप्रिय रही और वो आज भी दिल्ली के ग़रीब लोगों में पॉपुलर है लेकिन, इसी फ़्रीबीस से ही तो टॅक्स भरने वाले मिडल क्लास और उप्पर मिड्ल क्लास को चिढ़ भी है। टूटी सड़के, जहरीला पानी, ख़राब व्यवस्था और मुख्यमंत्री का वहीं उपराज्यपाल के नाम से रोना धोना देखकर आम आदमी पार्टी के समर्थक भी बोर हो चुके थे।
तीसरा कारण रहा अरविन्द केजरीवाल का झूठ! केजरीवाल पिछले दो चुनावों से ये कहते आए थे की अगर हमनें सड़के अच्छी नहीं की, दिल्ली में सफाई नहीं रखी और यमुना को साफ़ नहीं किया तो हमें वोट मत देना … हर चुनाव में वो अगले पांच साल का वादा करते थे, लेकीन यमुना की सफाई के लिए उन्होंने एक कदम भी नहींबढ़ाया था। केजरीवाल ने इन्फ्लुएंसर्स के साथ इंटरव्यू किए जिसमें उन्होंने माना की उन्होंने यह काम नहीं किए और अगले पांच साल में करेंगे..उन्हें इसकी आइडिया नहीं थी की राजनीती में लोग आपके द्वारा किया विश्वासघात समझते ही हाथ पिछे खींच लेते है। हर चुनाव में एक जैसी मुफ्त की रेवड़ियों के मैनीफेस्टो, यमुना नदी में विषैले पानी पर झूठ इन्हीं कारणों से एंटी इंकम्बैंसी बढ़ती रही।
चौथा कारण था भाजपा विरोधियों का अलग-अलग लड़ना। लोकसभा चुनावों में जहां पूरा विपक्ष खासकर आम आदमी पार्टी, और कांग्रेस एक साथ लड़ रही थी। वही हरयाणा और दिल्ली के चुनाव में भाजपा विरोधी पार्टियां अलग अलग लड़ने लगी, ऐसी चीजें मतदाताओं को कन्फ्यूज करती है। और भाजपा की दिल्ली में जो जीत हुई उसमें कांग्रेस का बड़ा हात है इसीलिए भाजपा को कांग्रेस का कहीं तो आभार व्यक्त करना होगा ही। न्यू दिल्ली की केजरीवाल की सीट ही अगर आप देखें तो केजरीवाल खुद इस सीट से 3 हजार वोट से हारे जहां शिला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित खड़े थे। दिलचस्प बात ये है की उन्हें बस अपनी माँ के अपमान का बदला लेना था, जो केजरीवाल ने किया था। कांग्रेस भी दिल्ली चुनाव में इसीलिए लड़ रही थी की उन्हें हरयाणा का हिसाब बराबर करना था।
पांचवे सबसे बड़े और महत्वपूर्ण कारण पर जो है, भाजपा की मातृसंस्था का समाज से सीधा संपर्क… दोस्तों हरियाणा, महाराष्ट्र के बाद दिल्ली चुनावों में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस बार लोगों के बीच उतरकर काम कर रहा था। पढ़े लिखें वोटर से मिलकर उन्हें कुछ मिशन देकर काम करने का संघ जैसा तगड़ा अनुभव देश के किसी भी संघटन के पास नहीं है…वही हुआ संघ ने अपना काम किया… करीब 50 हजार छोटी बैठके की गई जिसमें पढ़े लिखे मतदाताओं को हिंदु हित के लिए मतदान करने की अपील की गई और नतीजे आप के सामने है।
नतीजों से भाजपा को कुछ बातें जरुर सीखनी चाहिए वो है की इस जीत से अहंकार को शक्ती न दें… आम आदमी पार्टी हारी भी हो तो भी उनका वोट शेयर 43 प्रतिशत है…आम आदमी पार्टी की हार निष्क्रियता, अहंकार, और झूठ के कारण हुआ है। तीसरी बात संघ आपकी मदद के लिए बार बार आए ऐसी परिस्थिती ही नहीं लानी है… और चौथी चीज मतदाताओं को गृहीत धरना छोड़ना होगा…केजरीवाल की तरह यह नहीं सोचना की कुछ टुकडे फेंकने से वोटर गुलाम बन जाते है।
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