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Monday, November 25, 2024
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यूसीसी का समर्थन कर केजरीवाल “आप” को “बीजेपी” की बी टीम बनाएंगे!

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वर्तमान में एक बहस चल रही है कि अरविंद केजरीवाल किसके साथ जाएंगे। जब कश्मीर से धारा 370 हटाई गई तो उन्होंने केंद्र की बीजेपी सरकार का समर्थन किया था। अब केजरीवाल ने समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी का समर्थन कर एक नई बहस छेड़ दी है। सवाल किया जा रहा है कि आखिर केजरीवाल का प्लान क्या है ? न तो वे बीजेपी के साथ जाना चाहते है और न ही कांग्रेस के साथ जा रहे हैं। 23 जून को पटना में हुई विपक्ष की बैठक के बाद से उनके तेवर  गरम हैं। उनके इस तेवर को देखकर कहा जा सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में   केजरीवाल विपक्ष की खटिया खड़ी करने वाले हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि केजरीवाल के विपक्ष के साथ नहीं जाने से कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है।

दरअसल, केजरीवाल के राजनीति की गुत्थी को विपक्ष सुलझाने में इसलिए नाकाम हो रहा है कि आम आदमी पार्टी एक सोच और एक रणनीति के तहत आगे बढ़ रही है। भले आम आदमी पार्टी बीजेपी का पुरजोर विरोध कर रही है, लेकिन उसकी रणनीति में हिन्दू वोटर सर्वोपरि है। केजरीवाल यह अच्छी तरह से जान गए हैं कि अगर राजनीति में लंबी पारी खेलनी है तो केवल मुस्लिम वोटों से कुछ नहीं होने वाला है। वे कांग्रेस का हश्र देख रहे हैं। जैसा कि बीजेपी को छोड़कर, गांधी परिवार की कांग्रेस, ममता बनर्जी की टीएमसी, नीतीश कुमार की जेडीयू, लालू यादव की आरजेडी , शरद पवार की एनसीपी और भी राजनीति दल है जो मुस्लिम वोटरों को लुभाते रहे हैं।

लेकिन, केजरीवाल ने दस साल के राजनीति करियर में कभी खुलकर मुस्लिम समुदाय की तरफदारी नहीं की न ही आलोचना की है। यही वजह है कि आप आदमी पार्टी ने दस सालों में दो राज्यों में सत्ता काबिज की। लेकिन, कांग्रेस और बीजेपी को छोड़ दें तो अन्य कोई पार्टी अपने राज्य से बाहर नहीं निकल पाई। आज कांग्रेस की चार राज्यों में सरकार है ,तो आप की दो राज्यों पंजाब और दिल्ली में सरकार है। 2020 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय केजरीवाल ने सीएए कानून का न तो खुलकर विरोध किया था और नहीं समर्थन किया था।

सबसे बड़ी बात यह है कि, केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेता इस कानून पर चुप्पी साध रखे थे। लेकिन, कांग्रेस इस कानून के खिलाफ मुखर थी। इसका विरोध कर रही थी। इसे छोटी बात कहकर नाकारा नहीं जा सकता है। क्योंकि, आम आदमी पार्टी या यूँ कह लें कि केजरीवाल की यह रणनीति थी। कि वे इस कानून के संदर्भ में कुछ भी नहीं बोलेंगे। हां, कुछ ऐसी खबरें आई थीं कि इस कानून का विरोध कर रही शाहीन बाग़ की महिलाओं की आप ने मदद की थी। हालांकि, यह बीजेपी की आरोप था, लेकिन सच्चाई सामने नहीं आ पाई। जिसका नतीजा रहा कि 2020 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की पार्टी को 70 में से 62 सीट मिली। कहने का मतलब यह कि केजरीवाल को इस चुनाव में हिन्दुओं और मुस्लिमों दोनों के वोट मिले थे। इस चुनाव में बीजेपी आठ सींटें जीती थी, जबकि कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई थी।

23 जून को जब विपक्षी एकता के लिए पटना में बैठक हुई थी। उससे पहले ही केजरीवाल ने  विपक्ष को अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। बैठक से पहले केजरीवाल ने राजस्थान एक रैली को संबोधित किया था। जिसमें कांग्रेस की जमकर धज्जियां उड़ाई थी। उन्होंने गहलोत सरकार की योजनाओं पर जमकर हमला बोला था और अपनी योजनाओं का बखान किया था। लेकिन जब विपक्ष की बैठक में जब उन्होंने केंद्र सरकार के अध्यादेश का मुद्दा उठाया तो किसी भी राजनीति दल ने उनका समर्थन नहीं किया बल्कि उनका विरोध ही किया।

उमर अब्दुल्ला ने धारा 370 का जिक्र कर केजरीवाल के घाव पर नमक ही छिड़का। केजरीवाल को 2011 में ही यह अहसास हो गया था कि जनता, देश के नाम वोट देती है, देश के नाम पर अपनी जान देने के लिए भी तैयार हो जाएगी। अन्ना हजारे के साथ केजरीवाल को भ्र्ष्टाचार के मुद्दे पर आपार समर्थन मिला और उसको बाद में केजरीवाल ने भुनाया भी. लेकिन आज उनकी पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगा हैं। उनके नेता भ्रष्टाचार के मामले में जेल की हवा खा रहे हैं। कहने का मतलब है की केजरीवाल की ईमानदारी पर अब बट्टा लग गया है।

अब केजरीवाल भ्रष्टाचार पर शायद ही बोलते हैं। वे आजकल संविधान, लोकतंत्र की बातें ज्यादा करते हैं। केजरीवाल भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बात करने से कतराते हैं। वे शहीदों की बात करते है तो जय हिन्द और भारत माता की जय के नारे लगवाते है। यही वह बात है जो अन्य विपक्षी दलों से उन्हें अलग करती है। जिसका फ़ायदा केजरीवाल उठाने को बेताब हैं।  2011 में आंदोलन के समय मंच पर भारत माता की तस्वीर लगी हुई थी।

इसके अलावा केजरीवाल खुद को हनुमान भक्त बताते रहे हैं।  सबसे बड़ी बात यह है कि, केजरीवाल विशुद्ध रूप से पॉलिटिशियन नहीं है। और उनके संस्कार में पूजा पाठ जैसी चीजें शामिल रही हैं। इसलिए केजरीवाल का मुस्लिम वोटर पर ज्यादा फोकस नहीं होता है। हां राजनीति के लिए हिन्दू मुस्लिम, जाति पाती शब्द यूज करते हैं, लेकिन केजरीवाल राजनीति रूप से वे केवल हिन्दू वोटरों पर फोकस किये हुए। हालांकि, समय बीतने के बाद केजरीवाल हिन्दू मुस्लिम के दांव पेंच पर खेलना शुरू करेंगे, मगर अभी उसमें समय है। इसके लिए अभी धीमी रफ़्तार रखना चाहते हैं। और मुस्लिम बहुल प्रदेशों में धर्म का कार्ड खेंलेंगे। केजरीवाल यह तब करेंगे जब उन्हें लगेगा की अब कोई विकल्प नहीं है, तब धर्म कार्ड खेलेंगे। अभी कांग्रेस का वोट काटकर राजनीति में कदम बढ़ा रहे रहे है।

जब केजरीवाल की पार्टी ने यूसीसी का समर्थन किया तो यह साफ़ हो गया कि विपक्ष का गेम बिगड़ने वाला है। जबकि विपक्ष अपने प्रस्ताव में यह साफ कर चुका है कि  वह बीजेपी के किसी भी एजेंडे का समर्थन नहीं करेगा। जैसे उसने नई संसद का विरोध किया था। यूसीसी के मुद्दे पर खुद केजरीवाल ने नहीं बोला है। जैसे सीएए कानून के समय उन्होंने अपने मुंह में दही जमा ली थी। लेकिन, उनके नेता कभी कभार बोल दिया करते थे, इस बार भी कुछ ऐसा ही है। इस बार  आप के महासचिव संदीप पाठक ने यूसीसी पर अपनी बात रखते हुए कहा है कि आप पार्टी सैद्धांतिक रूप से यूसीसी के पक्ष में है। वैसे यूसीसी के पक्ष में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू  और उद्धव ठाकरे कीभी पार्टी है। लेकिन, सभी पार्टियां इस पर चर्चा कर लागू करने की बात कर रही हैं।

बहरहाल, केजरीवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में एकतरफा जीत हासिल करने के मकसद से मुख्यमंत्री का पद छोड़ा था। उनकी महत्वकाक्षां जगजाहिर है। वह किसी से छिपा नहीं है।  आज केजरीवाल उसी राह पर आगे बढ़ रहे हैं। केजरीवाल को विपक्ष की पार्टी में उनको उतना महत्त्व नहीं दिया गया ,जिसकी उन्हें टीस है। कहा जा रहा है कि केजरीवाल अपने दम पर बीजेपी को राष्ट्रीय स्तर पर टक्कर देने की तैयारी कर रहे है। यही वजह है कि, केजरीवाल उन मुद्दों को नहीं छूटे हैं, जिससे पार्टी को नुकसान हो और उनकी छवि पर आंच आये। केजरीवाल कभी भी हिंदुत्व को लेकर बीजेपी की आलोचना नहीं की, लेकिन दूसरे एंगल से बीजेपी को घेरते रहे है।

कहा जा सकता है कि, आप, बीजेपी की “बी”टीम बनने की कोशिश में है। वह बीजेपी से छिटके हिन्दू वोटरों को अपने पाले में करने की कोशिश में है। रही बात, मुस्लिम वोटरों की तो दिल्ली और पंजाब में आप पर इसका असर नहीं पड़ने वाला है। क्योंकि दोनों जगहों पर मुस्लिम वोटरों का प्रभाव ज्यादा नहीं है। वैसे केजरीवाल सबसे अलग होने का दावा करते रहे हैं,ऐसे में देखना होगा कि उनकी रणनीति आगे क्या रंग दिखाती है।

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