राजनीति के धुरंधर,चाणक्य और न जाने कितने नामों से शरद पवार को नवाजा जाता रहा है। कहा जाता है कि कभी कभी बड़े बड़े ओहदे गले की फांस बन जाते हैं। जिससे छुड़ाना पाना मुश्किल हो जाता है। क्या महाराष्ट्र के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार अब अपने ही जाल में फंस गए हैं या कोई रणनीति है ? फ़िलहाल घर में सत्ता संघर्ष की हलचल तेज है।
दरअसल आजकल एनसीपी के नेताओं को भावी मुख्यमंत्री बताने का चलन जोरो पर है। जिसको लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर एनसीपी में चल क्या रहा है। क्या पवार परिवार में मुख्यमंत्री पद को लेकर आपसी खींचतान है? ऐसी कई बातें मीडिया की सुर्खियां बटोर रही हैं। वैसे एक और कहावत है कि गांव बसा नहीं और लुटेरे आ गए तो अभी 2024 का विधानसभा चुनाव होने में लम्बा समय है, लेकिन इस तरह पोस्टरबाजी से एनसीपी में आपसी कलह चौक चौराहों पर आ गई है।
कहा जा रहा है कि इस तरह से एनसीपी उद्धव गुट और कांग्रेस को बड़ा संदेश देने की कोशिश में है। वैसे दोनों पार्टी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही हैं। जिसका फ़ायदा शरद पवार उठाने की जुगत में हैं। शिवसेना में दो फाड़ होने से उद्धव गुट अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। उद्धव गुट को चुनाव आयोग ने झटका दिया था, जबकि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी राहत नहीं दी। दरअसल, चुनाव आयोग ने शिवसेना पार्टी और चुनाव चिन्ह धनुष बाण पर शिंदे गुट का हक बताया था।
इसके बाद उद्धव ठाकरे गुट आयोग के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसके बाद कोर्ट ने बुधवार को आयोग के फैसले को बरक़रार रखते हुए दोनों गुटों को नोटिस भेजा था और दो सप्ताह में जवाब मांगा है। जिससे साफ़ है कि उद्धव गुट को आगामी चुनाव में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। जबकि कांग्रेस खुद आंतरिक कलह से जूझ रही है। पार्टी के नेता प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले के नेतृत्व पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। कहा जा सकता है कि दोनों पार्टियों की हालत खराब है। और आगामी चुनाव से पहले ही बिखरी हुई हैं। जिसका फ़ायदा शरद पवार उठाने की कोशिश कर रहे है।
इस संबंध में मैंने अपनी वीडियो ‘शिवसेना के आपदा में एनसीपी को अवसर” में विस्तार से बात की है। जिसमें कहा गया है कि कैसे एनसीपी शिवसेना में उपजे संकट को भुनाने की कोशिश में है और उसका प्लान क्या है। यह सच्चाई है कि शरद पवार अपने परिवार को ही सत्ता सुख के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाते रहे हैं। शरद पवार का पिछ्ला ट्रैक इस ओर इशारा करता है। उनकी राजनीति केवल अपने परिवार के इर्दगिर्द घूमती रहती है। यही वजह है कि उन्होंने 2019 में डबल स्टैंड रखा था। जिसके बारे में कई बार कहा सुना जा चुका है।
तो बात एनसीपी के भावी मुख्यमंत्रियों की। इसका कनेक्शन महाविकास अघाड़ी से मजबूती के साथ है। शिवसेना में फूट के बाद एनसीपी नेता इसे अवसर के रूप में देख रहे हैं। जिस तरह से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व पर उनके ही नेता सवाल खड़ा कर अलग हो गए। उसी का फ़ायदा अब एनसीपी उठा रही है। एनसीपी यह साबित करने में कामयाब हो गई है कि उद्धव ठाकरे कमजोर है और उनमें राजनीति कौशल नहीं है। इसका उदाहरण पुणे में हो रहे दो उपचुनाव है। कसबा और चिंचवड़ में होने वाले उपचुनाव में क्रमशः कांग्रेस और एनसीपी ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। लेकिन चिंचवड़ में एनसीपी उम्मीदवार के साथ उद्धव गुट का नेता भी निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरा है। जिसको उद्धव ठाकरे मना चुके थे, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ।
तो महाराष्ट्र में बीजेपी और शिंदे गुट यानी शिवसेना के सामने एनसीपी ताल ठोंकने की तैयारी में है। लेकिन इससे पहले ही एनसीपी में मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी को लेकर खींचतान शुरू हो गई है। गौरतलब है कि पुणे के एनसीपी कार्यालय के बाहर लगा पोस्टर चर्चा का विषय है। जिसमें शरद पवार के साथ सुप्रिया सुले की तस्वीर लगी हुई है। जिसमें सुले को भावी मुख्यमंत्री बताया गया है। इससे पहले अजित पवार और जयंत पाटिल के ऐसे ही पोस्टर शहर के शोभा बढ़ा चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये पोस्टर कौन लगा रहा है और किसके कहने पर यह पोस्टर लगाए जा रहे हैं।
दो दिन पहले ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल के पोस्टर शहर में लगाए गए थे। उनके जन्मदिन पर पाटिल को भविष्य का मुख्यमंत्री बताया गया था। इसके बाद ऐसा ही पोस्टर अजित पवार का भी देखने को मिला था। जब इस मामले में शरद पवार से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ये सब कार्यकर्ताओं की भावनाएं है। शरद पवार इस बात को बड़ी आसानी से निपटा दिए।
लेकिन क्या ऐसा कोई कार्यकर्ता कर सकता है ? यह बड़ा सवाल है ? उन्होंने यह भी कहा कि एनसीपी ने किसी को सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। शरद पवार हर सवाल के जवाब पहले ही सोच लिए होते हैं और पत्रकारों को सीधा जवाब देकर टरका देते है। यहां भी शरद पवार ने ऐसा हीं किया। लेकिन शरद पवार की फितरत कहती है कि वे एक तीर से कई निशाना साध रहे हैं। वे अपने प्रतिद्व्न्दियों को मात दे रहे हैं।
कहा जा रहा है कि सुले का पोस्टर इसलिए लगाया गया है कि वे अजित पवार से पिछड़ न जाए। जानकारों का कहना है कि अजित पवार को सुप्रिया सुले से चुनौती मिल रही है। यही वजह है कि अजित पवार के बाद सुप्रिया सुले का पोस्टर लगाया गया। कहा तो यह भी जाता है कि शरद पवार की वजह से अजित पवार मुख्यमंत्री बनने से कई मौके गंवा दिए। यह बात महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी विधानसभा में कही थी। तो इसकी ठोस वजह यह है कि शरद पवार ने अजित पवार को शुरू में राज्य की राजनीति में उतारा है। जबकि सुप्रिया सुले सांसद बनी यानी उनके लिए केंद्र की राजनीति तय की गई है। लेकिन कुछ समय से शरद पवार ने अपनी रणनीति चेंज की है।
बताया जा रहा है कि शरद पवार पिछले कुछ समय से एक बयान बार बार दोहरा रहे है। वे कहते है कि महाराष्ट्र का नेतृत्व किसी महिला के हाथ में होनी चाहिए। चर्चा यह भी है कि शरद पवार नहीं चाहते है कि अजित पवार की राज्य में लोकप्रियता बढ़े। यही वजह है कि वे आज भी राजनीति में अपनी सक्रियता बनाये हुए हैं। और समय समय पर प्रेस को सम्बोधित करते रहते हैं। अब अजित पवार के सामने जयंत पाटिल को खड़ा कर दिया गया है।
सवाल उठ रहे हैं कि क्या जयंत पाटिल और अजित पवार के आपसी दावपेंच में सुप्रिया सुले के लिए राज्य में नई भूमिका देने की तैयारी है ? क्या शरद पवार का महिला कार्ड भविष्य में काम करेगा। यह तो आने वाला समय बताएगा। फिलहाल तो एनसीपी में सीएम चेहरों की भरमार है। लोग यह भी पूछ रहे हैं कि आखिर एनसीपी के बड़े बड़े पोस्टर कौन लगा रहा है। वह रहस्यमयी चेहरा और गुट कौन है ?
ये भी पढ़ें