मैनपुरी में लोकसभा उपचुनाव होनेवाला है हालांकि उससे पहले सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें खूब वायरल हो रही हैं। यह तस्वीरें सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव की है। ये तस्वीरें खास इसलिए है क्यूंकी पिछले 5 साल से दोनों के बीच काफी मतभेद रहे हैं। मतभेद के चलते शिवपाल ने सपा छोड़कर अपनी नई पार्टी प्रसपा का गठन कर लिया था। हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले दोनों फिर साथ आएं थे, परंतु दूरियाँ फिर भी कम नहीं हुई। चुनाव प्रसार में साथ रहे लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म हुआ नतीजे आ गए उसके बाद शिवपाल यादव फिर से दूर हो गए।
बरहाल मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अब अखिलेश और शिवपाल यादव के बीच बढ़ती नजदीकियाँ चर्चा का विषय बन चुकी है। सवाल उठ रहा है? क्या दोनों के बीच सारे गीले सिकवे दूर हो गए है। क्या अब पूरी तरह से सत्ता में शिवपाल की वापसी होगी? हालांकि इन सवालों ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी हैं। माना जाता है कि मैनपुरी का उपचुनाव यादव परिवार के लिए हमेशा से ही प्रतिष्ठा का विषय रहा हैं।
1989 से यह सीट मुलायम सिंह यादव और उनके करीबियों के पास ही हैं। ऐसे में अब उनके ना रहने पर अगर ये सीट सपा हारती है तो इसका बड़ा सियासी संदेश जाएगा। अखिलेश यादव के नेतृत्व पर भी सवाल खड़े होंगे, यही कारण है कि वो किसी भी हालत में ये उपचुनाव जितना चाहते है। अखिलेश यादव जानते है कि अब तक पिता मुलायम सिंह यादव ने ही पूरे परिवार को एकजुट रखा है। हालांकि कई बार परिवार में विवाद भी हुआ है और कुछ लोगों ने अलग रास्ता भी पकड़ लिया। लेकिन मुलायम के नाम पर पूरा परिवार एकजुट रहा हैं। शिवपाल सिंह यादव भी मुलायम का ही सम्मान करते थे। अब उनके ना रहने पर अखिलेश को कोई ऐसा शख्स चाहिए जो परिवार को एकजुट रख पाए। वहीं अखिलेश यादव को पता है कि ये काम शिवपाल के अलावा कोई नहीं कर सकता है। यहीं कारण है कि मुलायम सिंह यादव के निधन पर अखिलेश और शिवपाल के बीच दूरियाँ खत्म होती दिखाई दी हैं।
कुछ ऐसा ही इस बार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले भी देखने को मिला। शिवपाल को अखिलेश ने गठबंधन में शामिल किया था हालांकि तब अखिलेश ने शिवपाल के अलावा उनके पार्टी से किसी और को टिकट नहीं दिया। सपा के ही टिकट पर जसवंतनगर से शिवपाल यादव चुनाव लड़े थे और सबसे बड़ी जीत हासिल किए थे। हालांकि मुमकिन यह भी है कि सिर्फ मैनपुरी उपचुनाव के लिए अखिलेश ने शिवपाल के साथ दूरियाँ कम की हो और बाद में दोनों के बीच वापस रिश्ते खराब हो जाएंगे।
कुल मिलकर अखिलेश और शिवपाल के बीच लड़ाई बहुत पुरानी है अगर इसके अतीत में जाएंगे तो देखने मिलता है कि शिवपाल की सपा से दूरियाँ कैसे हुई? हालांकि सपा से सिर्फ दूरियाँ ही नहीं हुई थी बल्कि शिवपाल से सपा पूरी तरह से छिन ली गई थी। लेकिन इससे दोनों का ही नुकसान है शिवपाल यादव का कोई बड़ा फायदा नहीं हो रहा है, अलग पार्टी बनाकर बीजेपी में भी जाने को लेकर उनकी बातें स्पष्ट नहीं है क्योंकि शिवपाल कुछ न कुछ उम्मीद रखते है राजनीतिक के इस पड़ाव पर इतने अनुभव के बाद में और बीजेपी किसी को भी जब साथ में लेती है उन्हें कोई दिक्कत नहीं कोई भी आ जाएं लेकिन एक कार्यकर्ता के तौर पर किसी भी पद की अपेक्षा के इरादे से ना आएं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अपर्णा यादव है, बीजेपी में शामिल हुई पर कुछ भी नहीं मिला। दरअसल मैनपुरी उपचुनाव में सोचा जा रहा था कि उनका नाम आगे आएगा पर बाद में स्पष्ट हो गया कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगी।
वहीं उपचुनाव के बाद साफ हो जाएगी कि दोनों के बीच संबंध कैसा चलता है ये भी पता चल जाएगा कि शिवपाल यादव वापस सपा में शामिल होंगे या अखिलेश से उनकी लड़ाई और तेज जाएगी। हालांकि इस समय वह अखिलेश यादव के करीब जरूर दिख रहे हैं। साथ ही मैनपुरी उपचुनाव में डिम्पल यादव को लेकर खूब प्रचार भी कर रहे है। शिवपाल ने हाल ही में एक ट्वीट में अखिलेश के साथ एक तस्वीट शेयर करते हुए लिखा था कि हम सब में है नेताजी लो सब हो गए एक। यह बात वह अपने भाषणों में भी कह रहे है।
अब आपको बता देते है मैनपुरी लोकसभा में समीकरण क्या है? मैनपुरी में अभी करीब 17 लाख वोटर्स है। इनमें 9 लाख 70 हजार पुरुष है, 7 लाख 80 हजार महिलायें हैं। बता दें कि 2019 में इस सीट पर 58.5 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। मुलायम सिंह यादव को कुल 5 लाख 24 हजार 926 वोट मिले थे जबकि दूसरे नंबर पर बीजेपी के प्रत्याशी प्रेम सिंह शाह के रहे थे। मुलायम सिंह यादव के खिलाफ उनको कुल 4 लाख 30 हजार 537 वोट मिले थे। मुलायम सिंह यादव को 94 हजार 389 मतों के अंतर से जीत मिली थी।
इस बार डिम्पल यादव समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी है। इसलिए परिवार के लोगों को एकजुट होना पड़ा। और शिवपाल यादव को भी मैदान में उतरना पड़ा है। जातीय समीकरण की बात करें तो यहाँ सबसे ज्यादा यादव मतदाता है इनकी संख्या करीब साढ़े तीन लाख है, शाक्य, ठाकुर, जाटव मतदाता भी अच्छे तरह से है इनकी संख्या इस तरह से है 1 लाख 60 हजार शाक्य है, 1 लाख 50 हजार ठाकुर है, 1 लाख 40 हजार जाटव है, 1 लाख 20 हजार ब्राहमण है, 1 लाख राजपूतों के वोट हैं। वैश्य और मुस्लिम मतदाता भी 1 लाख के करीब है। मैनपुरी लोकसभा सीट में विधानसभा की 5 सीटें आती है। मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के लिए 10 नवंबर को अधिसूचना जारी हुई, 17 नवंबर नामांकन दाखिल हुए। 21 नवंबर को नाम वापस लेने की अंतिम तारीख थी। 5 दिसंबर को मतदान होना है, मतों की गिनती 8 दिसंबर को होगी। जब हिमाचल और गुजरात के नतीजे आ रहे होंगे। मैनपुरीन उपचुनाव में 6 प्रत्याशी मैदान में है। और डिम्पल यादव और रघुराज सिंह शाक्य के बीच में जो मुकाबला है ये किसी बड़े चुनाव से कम नहीं होनेवाला है। बेहद दिलचस्प होने वाला है वहीं हिमाचल और गुजरात इसमें सरकार किसकी बनती है ये तो बड़ा सवाल रहेगा, तो वहीं मैनपुरी में परिवार वाद बचेगा या नहीं भी बड़ा सवाल हैं।
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