सवाल बस इतना है कि क्या हिन्दुस्तान अब केवल भारत नाम से बुलाया जाएगा। क्या अंग्रेजों का दिया “इंडिया” नाम बीते दिनों की बात हो जाएगा। कई लोगों ने इस पर ख़ुशी जाहिर की है तो विपक्ष के नेताओं ने संविधान के नाम पर रोना शुरू कर दिया है। क्या “इंडिया” शब्द संविधान से हट जाएगा। क्या इससे पहले भी ऐसी आवाज उठी है।
पहले, यह जान लेते है कि मामला क्या है ? कहा जा रहा है कि जी 20 शिखर सम्मेलन के दौरान आयोजित होने वाले रात्रिभोज के लिए भेजे गए निमंत्रण पत्र पर”प्रेजिडेंट ऑफ़ इंडिया” की जगह “प्रेजिडेंट ऑफ़ भारत” लिखा गया है। जिस पर कांग्रेस सहित विपक्ष के नेताओं ने आपत्ति जताई है। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार संसद के विशेष सत्र में संविधान से “इंडिया” शब्द हटाने के लिए बिल ला सकती है। यह सत्र 18 से 22 सितंबर तक के लिए बुलाया गया है। अभी तक इस सत्र का एजेंडा साफ नहीं हो पाया है। इसलिए माना जा रहा है कि केंद्र सरकार यह बिल ला सकती है। इस बात को बल मिलने की वजह निमंत्रण पत्र पर “प्रेजिडेंट ऑफ़ भारत” लिखा जाना है। सोमवार को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी देशवासियों से अपील की थी वे “इंडिया” की जगह भारत शब्द का इस्तेमाल करें।
वैसे, पीएम नरेंद्र मोदी हमेशा चौकाने वाला निर्णय लेते रहते हैं। उनके 9 साल के कार्यकाल में ऐसे कई फैसले लिये गए जो उनके विरोधियों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया। इतना ही नहीं उनके विरोधी बने बनाये प्लान को बदल दिए। कांग्रेस ने बेंगलुरु की बैठक में कहा था कि विपक्ष के गठबंधन का नाम “इंडिया” राहुल गांधी ने सुझाया था। तब से लेकर अब तक विपक्ष यह मानकर चल रहा था कि बाजी उसके हाथ में है। लेकिन, अगर सरकार ने संविधान से “इंडिया” शब्द को हटाती तो विपक्ष को लेने के देने पड़ जाएंगे। क्योंकि बीजेपी ने “इंडिया” के खिलाफ यह नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो गई है कि यह नाम अंग्रेजों का दिया हुआ है और सरकार अब पूरी तरह से इस नाम को हटाना चाहती है। जो मोदी सरकार के पक्ष में जाता दिख रहा है। वैसे बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस को भारत बुलाने में क्या परेशानी है ?
बता दें कि संविधान के अनुसार देश को दो नामों से बुलाया जाता है। पहला भारत, दूसरा इंडिया। संविधान के अनुच्छेद 1 में लिखा है “इंडिया दैट इज भारत”. जिसका मतलब यह हुआ कि देश के दो नाम है। हम “भारत सरकार” भी लिखते है और गवर्मेंट ऑफ़ इंडिया भी लिखते या बुलाते हैं। वैसे अंग्रेजी में “भारत ” भी लिखा जाता है। इंडिया भी लिखा जाता है। ऐसे में यह सवाल उठाने लगा है कि आखिर संविधान निर्माताओं ने दो नाम क्यों रखा।
तो बताया जाता है कि आजादी मिलने के बाद, संविधान बनाने के लिए संविधान सभा बनाई गई। इस सभा में देश का नाम रखने के लिए जोरदार बहस हुई। अंबेडकर समिति ने देश का दो नाम सुझाया था पहला “भारत” और दूसरा “इंडिया “। जिस पर संविधान सभा के सदस्य एच वी कामथ ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने देश का एक ही नाम रखने की मांग की थी और उन्होंने भारतवर्ष, भारतभूमि, हिन्दुस्तान और हिंद जैसे नाम भी सुझाए थे।
वैसे देश के नाम पर आपत्ति जताने वालों में कामथ अकेले नहीं थे ,उनके साथ सेठ हरगोविंद दास भी थे, जो इंडिया और भारत को सुंदर नाम नहीं मानते थे। उन्होंने महाभारत और ह्वेनसांग के लेखों के हवाले से देश का मूल नाम “भारत” बताया था। उन्होंने महात्मा गांधी के नारे भारत माता की जय को भी कोट किया था। इसके अलावा भी और नेताओं ने दो नामों पर आपत्ति जताई थी, लेकिन बाद में संशोधन के लिए हुई वोटिंग में यह प्रस्ताव गिर गया। इस तरह से संविधान में जो दो नाम थे वही रहे।
ऐसे में यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या मोदी सरकार “इंडिया” शब्द को हटा पाएगी की नहीं। कहा जा सकता है कि नामुमकिन कुछ भी नहीं है। अगर सरकार यह शब्द हटाना चाहती है तो पहले संशोधन के लिए संसद में बिल लाना होगा। जिसकी जोरो पर चर्चा भी है कि मोदी सरकार विशेष सत्र में संविधान से “इंडिया” शब्द हटाने के लिए प्रस्ताव ला सकती है। इसके लिए सरकार को लोकसभा में कम से कम दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। यानी बीजेपी को इसके लिए तीन सौ छप्पन सांसदों के समर्थन की जरुरत होगी। जो लोकसभा में बीजेपी के पास है।
इसी तरह से राज्यसभा में भी एक सौ संतावन सांसदों का समर्थन जरुरी है। सरकार ने मानसून सत्र में दिल्ली सेवा बिल को संसद के दोनों सदनों में पास करा लिया था। इस तरह से कहा जा सकता है कि मोदी सरकार अगर “इंडिया” शब्द हटाने के लिए बिल लाती है तो पास कराने में कामयाब हो सकती है। फिलहाल अभी यह देखना होगा कि केंद्र सरकार क्या कदम उठाती है।
बहरहाल, यह पहला मौक़ा नहीं है, जब “इंडिया” शब्द को संविधान से हटाने की मांग की गई है। इससे पहले भी कांग्रेस नेता शांताराम नाइक ने 2010 और 2012 में दो प्राइवेट बिल संसद में लाये थे। जिसमें उन्होंने संविधान से “इंडिया” शब्द हटाने का प्रस्ताव रखा था। इसी तरह से 2015 में योगी आदित्यनाथ भी प्राइवेट बिल लाये थे। जिसमें उन्होंने “इंडिया दैट इज भारत” की जगह “इंडिया दैट इज हिन्दुस्तान ” करने का प्रस्ताव रखा था।
इतना ही नहीं यह मामला सुप्रीम कोर्ट के चौखट पर भी पहुंच चुका है। यह मामला 2016 में कोर्ट में पहुंचा था, जिसे ख़ारिज कर दिया गया था। इसके बाद 2020 में भी यह मामला शीर्ष अदालत में पहुंचा था। इसे भी खारिज कर दिया गया था। दोनों याचिकाओं में संविधान से “इंडिया” शब्द हटाने और “भारत” रखने की मांग की गई थी। ऐसे में यह देखना होगा कि क्या सही में सरकार “इंडिया” शब्द हटाएगी या केवल चर्चा है।
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