बीजेपी का मुद्दा और कांग्रेस की कर्नाटक संजीवनी?    

बीजेपी का मुद्दा और कांग्रेस की कर्नाटक संजीवनी?    

कर्नाटक विधानसभा का परिणाम आ गया है। जिसमें कांग्रेस को लगभग 135 सीटों पर जीत दर्ज की है। इसके साथ ही कांग्रेस में ख़ुशी की लहर है और होना भी चाहिए आखिर लगभग 50 चुनाव हारने के बाद कांग्रेस को यह दूसरी जीत नसीब हुई है। सबसे बड़ी बता यह है कि कांग्रेस इस जीत के बाद अति उत्साहित नजर आ रही है। इसे राहुल गांधी की जीत बताते हुए एक वीडियो शेयर किया है जिसको भारत जोड़ो यात्रा की वीडियो और तस्वीर को जोड़कर बनाया गया।

इसके जरिये कांग्रेस राहुल गांधी को हीरो बता रही है। लेकिन, क्या यह सही है इस पर कांग्रेस की अपनी राय हो सकती है। वहीं अगर बीजेपी की हार हुई है तो पार्टी को जनता के आदेशों को सम्मान के साथ स्वीकार करना चाहिए। अब सवाल यह है कि आखिर इतने लावलश्कर के बावजूद बीजेपी की हार क्यों हुई? क्या यह पीएम मोदी और अमित शाह की हार मानी जाए? हर कोई अपनी तरह से व्याख्या कर सकता है।

पहले तो यह जान लेते हैं कि कर्नाटक में सत्ता के लिए कितनी सीटों की जरुरत होती है। तो कर्नाटक विधानसभा की कुल 224 सींटे हैं। जबकि बहुमत के लिए 113 सीटों की जरुरत होती है। जहां कांग्रेस लगभग 135 सीटों पर जीती है।कांग्रेस सत्ता पर काबिज होगी। यह चुनाव बाद यह रही सत्ता तक पहुंचने की चाबी।

अब यह जानते हैं कि बीजेपी कहां चूक की, जिसकी वजह से उसे दक्षिण का द्वार कहा जाने वाले कर्नाटक से हाथ धो बैठी। वैसे कहा यह भी जा रहा है कि 38 साल से यहां एक ट्रेंड है। हर पांच साल बाद यहां की सरकार बदल जाती है। यानी दूसरे राजनीति दल की सरकार आ जाती है। छह महीने में यह दूसरी बार है कि कांग्रेस ने ऐसे राज्य में अपनी सरकार बनाई है, इससे पहले हिमाचल प्रदेश में भी यही ट्रेंड था। यहां भी पिछली सरकार बीजेपी की थी लेकिन 37 सालों से चले आ रहे ट्रेंड की वजह से यहां कांग्रेस सरकार बनाई है।

बताया जा रहा है कि बीजेपी की हार के लिए सबसे बड़ा जो कारण है वह है कर्नाटक में मजबूत नेतृत्व का नहीं होना। यहां बीजेपी का ऐसा कोई मजबूत नेता नहीं है जो पार्टी की बात को सार्वजनिक मंच पर मजबूती के साथ रख सके। बसवराज बोम्मई से पहले बीएस येदियुरप्पा  मुख्यमंत्री थे। जिनके इस्तीफे के बाद बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया था। हालांकि, बोम्मई उतने लोकप्रिय नेता नहीं थे। जितने अन्य बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री लोकप्रिय हैं। यही वजह रही की बीजेपी को बीएस येदियुरप्पा को वापस चुनावी मैदान में उतरना पड़ा। इसके साथ ही बीजेपी बमन आंतरिक कलह भी थी।

बताया जाता है कि बीजेपी में कई गुट थे। जो हार के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार माने जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि इसमें पहला गुट येदियुरप्पा का था. तो दूसरा गुट बोम्मई का,तीसरा गुट बीएल संतोष का बताया जा रहा है। बीजेपी में ऐसे कुल छह गुट थे जो बीजेपी की नइया को डुबोने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। वहीं, कांग्रेस की बात करें डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया मजबूत नेता ने पार्टी के लिए जमकर पसीना बहाया। हालांकि इन नेताओं में भी छत्तीस का आंकड़ा था,लेकिन चुनाव के दौरान कांग्रेस एकजुट नजर आई। कई मौके पर इन दोनों नेताओं की अदावत खुलकर सामने आ चुकी है। चुनाव के दौरान ये नेता सार्वजनिक मंच पर आत्मविश्वास से भरे आये।

दूसरा सबसे बड़ा कारण बीजेपी के हार में भ्रष्टाचार है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने पहले ही से  राज्य में भ्र्ष्टाचार का मुद्दा उठाती रही है। जो धीरे धीरे बड़ा मुद्दा बन गया। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी कांग्रेस नेताओं इसे जोर शोर से उठाया था और अकसर देखा जाता है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर  जनता एक साथ आ जाती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने मनमोहन सरकार में हुए भ्रष्टाचार को जोर शोर से उठाया था। जिसका नतीजा है कि दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कारारी हार मिल रही है। सबसे बड़ी बात यह कि इसमें शामिल नेताओं के ऊपर लगा आरोप सिद्ध हो जाता है तो काफी नुकसान होता है। भ्रष्टाचार के मामले में बीजेपी के एक विधायक को  जेल भीं जाना पड़ा। जबकि एक मंत्री को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। बीजेपी इस मुद्दे की  काट  नहीं खोज पाई और सत्ता कांग्रेस के पाले में चली गई।

तीसरा मुद्दा जातीय समीकरण था, जिसे बीजेपी साधने में नाकाम रही है। कहा जा रहा है कि  बीजेपी ने अपना कोर वोट लिंगायत को जोड़े रखने में पिछड़ गई। यहां लिंगायत वोट चालीस प्रतिशत है। इसके अलावा दलित  आदिवासी और ओबीसी सहित अन्य समुदाय में अपनी पैठ बनाने में नाकाम रही। जबकि कांग्रेस बीजेपी का वोट बैंक कहा जाने वाला लिंगायत समुदाय में पार्टी ने सेंध लगा दी ,जिसका खामियाजा बीजेपी को हार से चुकाना पड़ा। सिद्धारमैया का दलित और आदिवासीवासी  वोटरों में अच्छी पकड़ है। चौथा मुद्दा उत्तर बनाम दक्षिण देखा गया। दरअसल पिछले कुछ समय से कन्नड़ और हिंदी भाषा को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। इस मुद्दे को सिद्धारमैया जब तब उठाते रहे हैं। चुनाव के समय भी नंदिनी और अमूल्य दूध को लेकर विवाद देखा गया। दरअसल, नंदिनी दूध कर्नाटक का लोकल दूध है। जिसको लेकर खूब विवाद देखा गया।

इसके अलावा भी कई ऐसे मुद्दे है जो बीजेपी के लिए घातक साबित हुए। जिसमें मुस्लिम आरक्षण को खत्म करना, टिकट बंटवारा, ध्रुवीकरण ऐसे मुद्दे रहे जो बीजेपी के खिलाफ गए। इस चुनाव में लगभग 128 राष्ट्रीय नेताओं को उतारा गया था। ये नेता तीन हजार से ज्यादा रैलियां और संभायें  की। लेकिन पार्टी ने स्थानीय नेताओं को तवज्जो नहीं दी थी। माना जा रहा है कि यह भी एक मुद्दा हो सकता है। लगभग सभी बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने कर्नाटक कैंपन में शामिल हुए थे। लेकिन उनको इसका फायदा मिलने के बजाय नुकसान ही हुआ। हालांकि, पहले से ही कहा जा रहा था कि कर्नाटक में बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है।

बहरहाल, सबसे बड़ी बात यह कि क्या जीत को कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव तक कायम रख पाएगी। क्योंकि दो सालों में कुल 13 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है। जिसमें कांग्रेस शासित राज्य छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि शामिल है। तो क्या इसे कांग्रेस के लिए संजीवनी मानी जाए. क्या इसी प्लान पर कांग्रेस लोकसभा के चुनाव जीत दर्ज कर सकती है। क्योंकि, तमाम नेताओं का कहना है कि इस चुनाव में पीएम मोदी का जादू नहीं चला। शरद पवार, संजय राउत सहित कई नेताओं ने कहा कि “मोदी है तो मुमकिन है के नारे को जनता ने नकार दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्ष मुद्दा सेट करेगा?

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