आप पार्टी के कई मंत्री अलग-अलग मामले में जेल की हवा खा रहे हैं या खा चुके हैं। केजरीवाल की महत्वकांक्षा ही पार्टी को ले डूबी है। कहा जा रहा है कि केजरीवाल पार्टी में बुरी तरह से अकेले पड़ गए है।और वे किसी पर विश्वास नहीं करते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि केजरीवाल का चिंतन किस चीज को लेकर किया जा रहा है? या केजरीवाल का कोई नया राजनीति स्टंट है।
दरअसल, शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी से अरविंद केजरीवाल बुरी तरह से अकेले हो गए हैं। जिस तरह से केजरीवाल तेजी से राजनीति की सीढ़ियां चढ़ रहे थे। फिसलना तय था। हालांकि यह उनकी महत्वकांक्षा का जीता जागता उदाहरण भी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर जन्मी आम आदमी पार्टी की स्थिति खासी डंवाडोल है। एक ओर जहां पार्टी लगातार अपना राज्यों में विस्तार कर रही थी, लेकिन करप्शन के मामले में फंसे मंत्री और नेता आप की किरकिरी ही करा रहे हैं।
पार्टी से जनता का भरोसा उठ रहा है। लोगों का कहना है कि बिना आग के धुंआ नहीं होता है। पर केजरीवाल ने अपने मंत्रियों और नेताओं का बचाव कर बड़ी दुविधा में फंसे हुए हैं कि आख़िर वे करें तो क्या करें। यही वजह है कि केजरीवाल पार्टी में बुरी तरह अकेले पड़ गए हैं। उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि अब आगे क्या किया जाए। आगे का रास्ता कैसे निकाला जाए ?
और उसका रोड मैप क्या होना चाहिए?
गौरतलब है कि दिल्ली की सरकार चला रहे केजरीवाल के पास एक भी विभाग नहीं है। उनके पास कोई विभाग नहीं होने की चर्चा हमेशा होती रहती है। नियम के अनुसार दिल्ली में केवल मुख्यमंत्री सहित सात मंत्री हो सकते हैं। 33 विभागों वाले कैबिनेट में से 18 विभाग मनीष सिसोदिया के पास थे। बाकी 15 विभाग 5 मंत्रियों के पास थे। इस 5 में सत्येंद्र जैन के जेल जाने के बाद उनका भी विभाग सिसोदिया ही देख रहे थे। यानी दिल्ली सरकार में सिर्फ चार ही मंत्री थे।
लेकिन जब सिसोदिया के शराब घोटाले में जेल जाने के बाद सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि आखिर केजरीवाल अब क्या करेंगे? क्या वे कोई विभाग अपने पास रखेंगे या नहीं। मगर केजरीवाल ने पार्टी के संकट काल में भी कोई विभाग अपने पास नहीं रखा। ऐसे में यह सवाल है कि केजरीवाल अपने पास कोई विभाग क्यों नहीं रखते। समय समय में पर विपक्ष के नेता इस बात को लेकर सवाल उठाते रहते हैं। बावजूद इसके केजरीवाल ने किसी विभाग की जिम्मेदारी नहीं ली।
कहा जाता है कि केजरीवाल जल्द किसी पर विश्ववास नहीं करते हैं। इसके अलावा केजरीवाल भारत सरकार में अधिकारी रह चुके हैं और वह भी आयकर विभाग में। इसलिए उन्हें इस बात की जानकारी अच्छी तरह है कि किसी कागज़ पर साइन करने का क्या मतलब होता है। केजरीवाल अच्छी तरह जानते हैं कि गड़बड़ी पकड़ी जाती है तो सबसे पहले विभाग या मुखिया संबंधित कागज़ पर साइन करने वाला सबसे पहले पकड़ा जाता है। संभवतः यह माना जाता है कि केजरीवाल इसी वजह से कोई मंत्रालय या विभाग अपने पास नहीं रखते हैं।
इससे यह जाहिर होता है कि केजरीवाल कितने इनसिक्योर हैं। पार्टी में भी वे सबसे ज्यादा मनीष सिसोदिया पर ही भरोसा करते थे.इसी भरोसे की वजह से केजरीवाल मनीष सिसोदिया के पास 18 विभाग दे रखे थे। कहा जाता है कि केजरीवाल सिसोदिया पर पूरी तरह भरोसा जताते थे। आम आदमी पार्टी बनाने से पहले दोनों साथ में काम कर चुके हैं। यही वजह है कि केजरीवाल सिसोदिया पर विश्वास करते थे और अन्य चीजों के लिए उन पर निर्भर रहते थे। लेकिन जब सिसोदिया शराब घोटाले के आरोप में जेल गए तो केजरीवाल और उनकी पार्टी पर आफत आ गई।
सबसे बड़ा सवाल यह था कि आखिर इन 18 विभागों को कौन संभालेगा। केजरीवाल ने पार्टी के संकट में भी खुद को बचाये रखा और उन्होंने किसी विभाग की जिम्मेदारी नहीं ली। और तेजी के साथ सिसोदिया और सत्येंद्र जैन का इस्तीफा मंजूर कर लिया। जिस मंत्री का उन्होंने आठ से दस महीने तक इस्तीफा नहीं लिया था, लेकिन सिसोदिया के जेल जाते ही उनका इस्तीफा ले लिया गया । इतना ही नहीं, उन्होंने फटाफट दो नेताओं को कैबिनेट में शामिल भी कर लिया।
खबर यह भी है कि एक समय आप नेता राघव चड्डा को भी दिल्ली बुलाने की बात कही जा रही थी। बता दें कि आप नेता राघव चड्डा फिलहाल भगवंत मान की सरकार चला रहे हैं। यानी केजरीवाल ने राघव चड्डा को सरकार को रीति नीति की देखरेख के लिए उन्हें पंजाब भेज रखा है।एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि मान सरकार का रिमोट कंट्रोल राघव चड्डा के हाथ में है जिसे वे कंट्रोल करते रहते हैं। बताया जाता है कि राघव पंजाब चुनाव में काफी अहम कड़ी रहे।
कहा तो यह भी जा रहा है कि पंजाब सरकार में दो सत्ता के केंद्र है। लेकिन, ऐसा निर्णय लेने से पहले ही केजरीवाल ने अपने कैबिनेट में सौरभ भारद्वाज और आतिशी को शामिल कर है। कहा जाता है कि राजनीति में माहिर सिसोदिया को पार्टी और सरकार में दो नंबर का नेता माना जाता रहा है। किसी राज्य में विस्तार अन्य मसाला पर सिसोदिया से केजरीवाल चर्चा जरूर करते थे।
लेकिन अब सवाल यह कि सिसोदिया के बाद केजरीवाल का इस समय सबसे करीबी नेता कौन है। क्या गोपाल राय है? या कोई और नेता है। मीडिया में आप नेता और सांसद संजय सिंह की खूब चर्चा है। कहा जा रहा है कि सिसोदिया के बाद संजय सिंह केजरीवाल मशविरा करते रहते हैं। बताते चले कि जब केजरीवाल महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे से मिलने आये थे तो उनके साथ भगवंत मान, राघव चड्डा और संजय सिंह साथ थे।
बहरहाल, वर्तमान में कई राज्यों में चुनाव होने है, तो देखना होगा कि केजरीवाल आगे की क्या रणनीति बनाते हैं। क्या राघव चड्डा को पंजाब से बुलाएंगे। हालांकि, केजरीवाल कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव का प्रचार करना शुरू भी कर दिया है। लेकिन क्या सिसोदिया के बिना केजरीवाल अकेले दम पर दमदार पारी खेल पाएंगे ? क्या केजरीवाल आप का विस्तार रोक देंगे ? एक सवाल यह भी है कि सिसोदिया के बाद अब आप पार्टी में दूसरे नबंर का नेता कौन है? वह कौन नेता है जो केजरीवाल के करीब हैं।
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