आज (27 जनवरी) से उत्तरखंड में समान नागरिक संहिता यानि UCC लागू हो चुकी है। भारत में सभी पंथ के लोगों को बिना किसी ममत्व भाव या द्वेष से एक समान न्याय दिलवाने के लिए इस कानून की आवश्यकता बरसों थी। इसकी आवश्यकता कितनी थी बस इसी बात से समझिए की UCC को लागू करना संविधान के भाग 4 के निर्देशक तत्वों में भी शामिल किया गया है। धामी सरकार के इस साहसी कदम की सरहाना करते हुए, हम समझेंगे की इस कानून से क्या कुछ बदलने जा रहा है।
भारत के संविधान में जो प्रस्तावना है वो भारत की आत्मा कही जाती है अर्थात, इसी प्रस्तावना के तहत भारत किस प्रकार से चलने के लिए बना है यह बात स्पष्ट होती है। इसी प्रस्तावना के अनुसार भारत एक सार्वभौम, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, उसके सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय दिलाने के लिए, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, देने वाले संविधान को स्वीकृत किया गया है।
भारत एक सार्वभौम देश होगा यानि इसके निर्णय किसी अन्य देश के अनुसार नहीं लिए जाएगें, अर्थात किसी का अंधानुकरण करना भी एकप्रकार से सार्वभौमत्व और स्वाभिमान का हनन करता है। इसमें ऐसे संविधान की बात भी हो रही है जो नागरिकों को राजनीतिक न्याय देगा, इसमें प्रतिष्ठा और अवसर की समता भी उल्लेखित है और वामपंथियों के चहीते लाडले शब्द समाजवादी, पंथनिरपेक्ष का भी उल्लेख आया है।
इसी संविधान के भाग 4 के 44 वे अनुच्छेद में नागरिकों को समान न्याय सुनिश्चित हो इसीलिए UCC लाने का निर्देशक तत्व दिया गया है। लेकीन तुष्टिकरण की राजनीति ने भारतीय नेताओं के कर्तव्य पथ पर कीलें पिरोदी। भारत की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले मुस्लिम समाज को मुख्यधारा में लाना समाजवाद और पंथ-निरपेक्षता के तहत जरुरी है। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक, निकाह हलाला जैसी कुरीतिओं से बाहर निकालना, उन्हें तलाक के बाद निर्वाह भत्ता, पिता के संपत्ति में हिस्सा दिलवाना भी जरुरी है।
मुस्लिम कुरीतियों का तुष्टिकरण कर वोट बैंक से सत्ता की रोटियां खाने में लगी कांग्रेस ने सभी हदें पार कर चुकी है, उन्हें UCC मंजूर नहीं। निर्वाह भत्ता तो दूर, मुस्लिम महिलाओं को उनके पति, पिता के हवाले छोड़ दिया। ऐसे मुस्लिम वैयक्तिक कानून को बल देते रहे, जिसमें केवल मुस्लिम पुरषों को ४, ४ शादीया करने का अधिकार दिया है। आज देश में बाल विवाह की जो दुष्प्रवृत्ति है उसमें सबसे ज्यादा मुस्लिम लड़कियों की हानि होती है, इसमें भी मुस्लिम परसनल लॉ शामिल है, लेकीन मज़ाल है एक वामपंथी, एक कोंग्रेसी इस सच का सामना करें।
इन्हीं कुरीतिओं के जंजाल से मुस्लिम महिलाओं को बचाने के लिए UCC की जरूरत है। 2022 के जो उत्तरखंड के चुनाव हुए उनमें पुष्कर सिंह धामी ने वादा किया था, की भाजपा चुनकर आते ही वो UCC पर कानून बनाएगे उसे लागू करेंगे। उत्तराखंड में चुनकर आने के बाद अपनी पहली कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री धामी और अन्य मंत्रियों ने UCC के प्रस्ताव को पारित किया। इसपर समिती गठीत की, कानून बनाया और कानून को पारित कर आज से इसे लागू किया।
उत्तराखंड के UCC के तहत, विवाह और तलाक में सभी धर्मों के लिए एक समान कानूनी ढांचा होगा। यानि आप विवाह किसी भी धार्मिक पद्धती से करें लेकिन इसे केवल सरकारी दफ्तरों में रजिस्ट्रेशन से ही वैध माना जाएगा। किसी भी धर्म और जाति की लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल होगी। संपत्ति में लड़के और लड़कियों की बराबरी की हिस्सेदारी होगी। इसी के तहत अब सभी दम्पत्तियों को बच्चा गोद लेने का अधिकार भी मिलेगा लेकीन, दूसरे धर्म का बच्चा गोद नहीं ले सकते।
इस UCC के तहत धामी सरकार ने 26 मार्च, 2010 से पहले या राज्य के बाहर किए गए विवाहों के पंजीकरण के लिए छह महीने की अवधि निर्धारित की है।
लिव-इन रिलेशनशिप के लिए भी रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी होगा। लिव-इन रिलेशनशिप वालों की उम्र 18 और 21 साल से कम है तो माता-पिता की सहमति लेनी होगी। लिव इन से पैदा होने वाले बच्चे को विवाहीतों के बच्चों की तरह अधिकार मिलेगा।
इस कानून के लागू होने से मुस्लिम पर्सनल लॉ पर जबरदस्त असर पड़ने वाला है। सबसे पहले तो UCC लागू होने के बाद निकाह का रजिस्ट्रेशन सरकारी दफ्तरों में कराना अनिवार्य हो जाएगा। काज़ी के पास होने वाले पंजीकरण का सरकार की नजर में कोई महत्व नहीं होगा। इस्लामी तीन तलाक की प्रथा अमान्य होगी, तलाक भी अन्य सभी की तरह न्यायलय में समान कानून से मंजूर होंगे। निकाह हलाला और इद्दत जैसी प्रथाएं बंद होंगी। और सबसे बड़ी बात पति और पत्नी के जीवित होने पर दूसरा विवाह करना पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा।
UCC के विरोधकों ने हमेशा से प्रतिवाद किया है की इससे जनजातियों के सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन होगा, लेकीन उत्तरखंड के UCC में जनजातीय समुदायों को इस कानून से अलग रखा गया है। दोस्तों, उत्तराखंड UCC को लागू करने वाला पहला राज्य है और असम जैसे कई और राज्यों ने UCC अधिनियम को एक मॉडल के रूप में अपनाने की इच्छा जताई है।
हर स्टेज पर खड़े होकर संविधान लहराकर कोंग्रेसी नेता संविधान बचाने का दावा करते है। खोखलें जातीवादी भाषण देकर समान न्याय दिलवाने की बातें करते है। वहीं धामी सरकार ने संविधानिक प्रक्रियांओं को और अधिक मजबूत करने के लिए किसी भी भय, द्वेष, प्रेम के बिना UCC लाकर इतिहास रच दिया है। उत्तराखंड की इस उपलब्धी पर हम बस इतना ही कहेंगे की मान गए धामी सरकार। वहीं कांग्रेस अगर अपने सर से तुष्टिकरण का दाग मिटाना चाहती है, अगर अपने को संविधान की रक्षक सिद्ध करना चाहती है, तो उत्तराखंड के तर्ज पर कर्नाटक और हिमांचल में UCC लाकर दिखाए। देशभर में अपने उदार स्वाभाव के लिए माना गया राज्य महाराष्ट्र है। महाराष्ट्र में इस समय भाजपा-शिवसेना जैसी प्रो-UCC पार्टियां भरी बहुमत के साथ सत्ता में है। ऐसे में यह अधिनियम महाराष्ट्र में लाना भी अत्यावश्यक है।
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https://youtu.be/bu3Ln19mwWc