शाहरूख खान के बेटे आर्यन खान एक समुद्री जहाज पर सप्ताहांत की रेव पार्टी के लिए दोस्तों के साथ रवाना हुए थे। एनसीबी दल ने नशीले पदार्थ लेने और उसकी खरीद-बिक्री के आरोप में उन्हें पकड़ा था, आरोपों की सत्यता का पता समुचित जांच से ही लगेगा। पर इस चर्चित गिरफ्तारी और शाहरुख के घर पर बाद में पड़े छापे ने युवाओं में बढ़ती लत की समस्या की ओर ध्यान खींचा है। बीते कुछ महीनों से धनवान लोगों में नशे का उपभोग सुर्खियों में है। ब्यूरो ने दर्जन से ज्यादा जाने-अनजाने अभिनेताओं-अभिनेत्रियों से पूछताछ की है या हिरासत में लिया है, इनमें कुछ बड़े कारोबारी हैं या प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षित हैं। क्या हम उड़ता भारत में रह रहे हैं? तीन करोड़ से अधिक भारतीय नशे की लत में होने के तौर पर आधिकारिक रूप से पंजीकृत हैं।
अचानक भारत अपने युवाओं के पतंग की तरह उड़ने और उन्हें सतर्क सरकारी बाजों द्वारा जमीन पर लाने की वजह से खबरों में है। नशीले पदार्थों के उपभोग में आये सामाजिक बदलाव ने ड्रग्स को चर्चित अपराध बना दिया है। पहले नशे के आदी बहुत से लोग निम्न और मध्य वर्ग से होते थे, जो सस्ते पदार्थ लेते थे। अब कई तरह के उत्पादों के कारण ड्रग्स कारोबार बड़ा और कुशल हो गया है, जहां ऊंची कीमतों पर इनकी आपूर्ति घरों तक की जाती है। जांच एजेंसियों के अनुसार, हमारे महानगरों में हर दिन सौ से अधिक रेव पार्टियां होती हैं, जहां दस लाख डॉलर से अधिक के पदार्थ खप जाते हैं। सात सौ अरब डॉलर से अधिक के कारोबार के साथ हथियारों और पेट्रोलियम के बाद नशे का व्यापार तीसरे पायदान पर है, बीते दशक में जब्त हुई मात्रा में 500 फीसदी की वृद्धि नशीले पदार्थों की बढ़ती मांग को इंगित करती है. वास्तविक मात्रा के 15 फीसदी से कम ही एजेंसियों के हाथ लगते हैं, इसका मतलब यह है कि कुछ साल पहले की अपेक्षा आज कहीं अधिक शहरों व कस्बों में इनकी खपत हो रही है।
अफगानिस्तान और लातिनी अमेरिका से 70 फीसदी से अधिक ऐसे पदार्थ आते हैं, पर इनमें से अधिकांश भारत समेत एशिया में खपाये जाते हैं। हर जगह ड्रग्स सिंडिकेट का निशाना युवा होते हैं। अत्यधिक पैसा और पसंद की आजादी बच्चों एवं युवाओं को पाश्चात्य बना रहे हैं तथा विकासशील दुनिया को पतनशील. कुछ आदी आत्महत्या भी कर रहे हैं। सामाजिक और आर्थिक जटिलताओं के कारण भारत इस ड्रग्स महामारी का शिकार हो सकता है। पंजाब में तो यह बड़ी समस्या बन चुकी है, जहां हर पांचवां व्यस्क रोजाना नशीले पदार्थों का सेवन करता है, लेकिन आज लगभग हर राज्य जोखिम में है। बच्चे के जीवन से माता-पिता का जुड़ाव कम हो गया है।
कई शहरी परिवारों में माता और पिता दोनों कामकाजी होते हैं और वे बच्चों के साथ बहुत कम समय बिता पाते हैं. अध्ययन बताते हैं कि अभिभावकों की जीवनशैली का बच्चों की आदतों पर बहुत असर पड़ता है। कभी-कभी तो वे बड़े बच्चों के सामने भी नशा करते हैं। ऐसे में बच्चा भी आजादी की मांग करता है। कुछ अध्ययन बताते हैं कि ध्यान न देनेवाले माता-पिता बच्चों को वैकल्पिक साहचर्य खोजने के लिए विवश करते हैं और इस प्रक्रिया में वे नशे में फंस जाते हैं। प्रभावशाली लोग अपने बच्चों को कानून से भी बचाने में सक्षम होते हैं। ऐसे आकलन हैं कि बड़े शहरों का हाई स्कूल या कॉलेज जानेवाला हर दसवां बच्चा सप्ताह में कम-से-कम एक बार नशा करता है।