28 C
Mumbai
Friday, September 20, 2024
होमब्लॉगगायों की दुर्दशा पर हाईकोर्ट की टिप्पणी अहम

गायों की दुर्दशा पर हाईकोर्ट की टिप्पणी अहम

Google News Follow

Related

भारत की 80 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी हिंदू है जिनमें ज़्यादातर लोग गाय को पूजते हैं। लेकिन ये भी सच है कि दुनियाभर में ‘बीफ़’ का सबसे ज़्यादा निर्यात करनेवाले देशों में से एक भारत है। गौरक्षा का सारा विवाद 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ जब आर्य समाज की स्थापना हुई और स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसके के लिये अभियान चलाया। इसी के बाद साम्प्रदायिक तनाव भी होने शुरू हो गए।

भारत की आजादी के बाद नवंबर 1966 को गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने का कानून मांगने के लिए संसद के बाहर जुटी साधु-संतों की भीड़ पर गोलियां चलाई गई थीं। इस गोलीबारी में कितने साधुओं की मौत हुई थी, इस पर आज भी विवाद है। यह संख्या आठ-दस से लेकर सैकड़ों के बीच बताई जाती है, लेकिन यह भारतीय इतिहास की एक बड़ी घटना थी, जिसने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर दी थी। दरअसल, पचास के दशक के बहुत प्रसिद्ध संत स्वामी करपात्री जी महाराज लगातार गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक कानून की मांग कर रहे थे। लेकिन केंद्र सरकार इस तरह का कोई कानून लाने पर विचार नहीं कर रही थी। इससे संतों का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा था। उनके आह्वान पर सात नवंबर 1966 को देशभर के लाखों साधु-संत अपने साथ गायों-बछड़ों को लेकर संसद के बाहर आ डटे थे।

वहीं संतों को रोकने के लिए संसद के बाहर बैरीकेडिंग कर दी गई थी। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी सरकार को यह खतरा लग रहा था कि संतों की भीड़ बैरीकेडिंग तोड़कर संसद पर हमला कर सकती है। कथित रुप से इस खतरे को टालने के लिए ही पुलिस को संतों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया गया। तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा को इस बात का अहसास था कि वे बातचीत से हालात को संभाल लेंगे, लेकिन मामला हाथ से निकल गया और गोलीबारी तक पहुंच गई। नंदा को इस घटना के बाद इस्तीफा देना पड़ा था।

स्वामी करपात्री जी महाराज के इस आंदोलन को आरएसएस और जनसंघ का भी पूरा समर्थन हासिल था। हरियाणा के करनाल के सांसद स्वामी रामेश्वरानंद इस आंदोलन का पूरा समर्थन कर रहे थे। आंदोलन के बाद कई सालों तक संघ ने इस मुद्दे को उठाया भी, लेकिन यह एक बड़ा मुद्दा नहीं बन सका। इस घटना की जांच के लिए एक कमेटी भी बनाई गई थी। इस कमेटी में कई हिंदूवादी नेता शामिल थे, लेकिन इसका भी कोई बड़ा परिणाम नहीं निकला। बाद में इस कमेटी को भंग कर दिया गया।

आप सभी को ये वाकया बताने के पीछे की वजह है कि हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस शमीन अहमद ने गो हत्या को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। उन्होंने हिंदू धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि गो हत्या करने वाला नरक में सड़ता है। उन्होंने केंद्र सरकार से गो हत्या पर बैन लगाने और गाय को संरक्षित पशु घोषित करने के लिए कानून बनाने के लिए भी कहा है। उन्होंने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।

दरअसल न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने यह फैसला बाराबंकी के मोहम्मद अब्दुल खालिक की एक याचिका को 14 फरवरी 2023 को खारिज करते हुए पारित किया, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम, 1955 के संबंध में दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का अनुरोध किया गया था। हालांकि कोर्ट ने इस एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि गाय की हत्या करने के आरोपी को माफी नहीं दी जा सकती है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाय को भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा बताते हुए कहा कि हम में सभी धर्मों के लिए सम्मान होना चाहिए। हिंदू धर्म का यह मत है कि गाय दैवीय और प्राकृतिक भलाई की प्रतिनिधि है। इसलिए इसकी रक्षा और पूजा की जानी चाहिए। साथ ही हाईकोर्ट ने पुराणों और महाभारत आदि ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि पुराण कहते हैं कि गायों के दान/उपहार से अधिक धार्मिक और कुछ भी नहीं है। भगवान राम के विवाह में भी गायों को उपहार के रूप में दिया गया था। महाभारत में भीष्म पितामह का मानना है कि गाय जीवन भर मानव को दूध प्रदान करके एक सरोगेट माँ के रूप में कार्य करती है। इसलिए वह वास्तव में दुनिया की माँ है। कोर्ट ने यह भी कहा कि दुधारू गायों को ऋगवेद में ‘सर्वोत्तम’ बताया गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुद्धिकरण और तपस्या के उद्देश्यों के लिए गाय के महत्व पर भी ध्यान दिया, जिसमें पंचगव्य- गाय से प्राप्त पांच उत्पाद दूध, मक्खन, दही, मूत्र और गोबर शामिल हैं। उन्होंने कहा कि गाय के चार पैर चार वेदों के प्रतीक हैं। गाय का चेहरा सूर्य और चंद्रमा का प्रतीक है। गाय का कंधान अग्नि की प्रतीक है और गाय का सींग देवताओं का प्रतीक है। गाय को अन्य रूपों में भी वर्णित किया गया है, जैसे नंदा, सुनंदा, सुरभि, सुशीला और सुमना।

कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा ‘गाय विभिन्न देवी-देवताओं से भी जुड़ी हुई है। खास तौर से भगवान शिव (जिनकी सवारी है, नंदी), भगवान इन्द्र (कामधेनु गाय से जुड़े हैं) भगवान कृष्ण (जो बाल काल में गाय चराते थे) और सामान्य देवी-देवता। किंवदंतियों के अनुसार, गाय समुन्द्रमंथन के दौरान दूध के सागर से प्रकट हुई थी। उसे सप्त ऋषियों को दिया गया और बाद में वह महर्षि वशिष्ठ के पास पहुंचीं।

याचिका खारिज करने से पहले पीठ ने कहा कि 19वीं और 20वीं शताब्दी के अंत में भारत में गायों की रक्षा के लिए एक आंदोलन शुरू हुआ, जिसने भारत सरकार से देश में तत्काल प्रभाव से गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए नागरिकों को एकजुट करने का प्रयास किया। भारत में 80 प्रतिशत से ज्यादा हिन्दू आबादी रहती है, जिसमें अधिकतर आबादी गाय को पवित्र मानती है, लेकिन दूसरी तरफ भारत दुनिया के उन देशों मे शुमार है, जहां ‘बीफ़’ का रिकॉर्ड निर्यात होता है।

वैदिक काल से गोवंश का विवाद चला या रहा है, इतिहास के साथ स्वरूप बदला लेकिन मुद्दा नहीं। गो तस्करी करने के कई ऑप्शन है जैसे- छोटी कार में गोवंश, बड़ी जीप में गोवंश, बस में गोवंश, टेनकर में गोवंश, ट्रक में गोवंश, पैदल गोवंश, इसमें शामिल है। गौरक्षकों का दावा है कि देशभर में 2 लाख करोड़ रुपए की गौतस्करी होती है। पंजाब समेत गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, बिहार और झारखंड से जानवर चोरी होते है और उन्हें बांग्लादेश पहुंचाया जाता है। दावा है कि हर साल साढ़े तीन करोड़ गौवंश की तस्करी कर दी जाती है। भारत देश में आए दिन गौरक्षक और गोभक्षण की खबर सामने आती है। सवाल यह है गाय हिन्दू की आस्था का विषय है तो उनकी हत्या क्यों की जाती है। हिंदुओं की धार्मिक आस्था को आहात क्यों किया जाता है। सैकड़ों साल से गाय की रक्षा एक मुद्दा है क्या इसलिए क्यूंकी हिन्दू वोट को एकजुट करता है या सच में हिंदुस्तान के समाज में गाय का इतना महत्त्व है कि हिन्दू उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते है।

भारत के कानून में गोहत्या के खिलाफ कड़े प्रावधान हैं। लेकिन कुछ राज्य इसको लागू करते हैं और कुछ नहीं। देश के अलग अलग राज्यों में गोहत्या निरोधक कानून के तहत सजाओं के प्रावधान भी अलग अलग हैं। लेकिन आमतौर पर इन कानूनों का दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है।

भारत के 11 राज्य जहां गो-हत्या पर प्रतिबंध है आइए जानते है- सिक्किम देश का पहला राज्य माना जाता है, जिसने गोहत्या पर प्रतिबंध का कानून बनाया है। सिक्किम के अलावा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में गोहत्या पर प्रतिबंध है। दिल्ली और चंडीगढ़ में भी गोहत्या प्रतिबंधित है।
उत्तर प्रदेश में गोहत्या के दोषी को कड़ी सजा का प्रावधान है, दोषी पाए जाने पर आरोपी को 10 साल तक की जेल और 5 लाख तक जुर्माना भरना पड़ता है। सिर्फ गोहत्या नहीं बल्कि तस्करी में भी कड़ी सजा का प्रावधान है। गाय को चोट पहुंचाने या उसकी जान को खतरे में डालने वाला कोई भी काम करना सजा की वजह बन सकता है। यही नहीं तस्करी या चोट पहुंचाने जैसे मामलों में पीड़ित गाय का एक साल तक का खर्च भी दोषी को उठाना पड़ता है। अगर कोई दोबारा गोहत्या कानून के तहत दोषी पाया गया तो सजा डबल हो जाती है यहाँ तक की गो तस्करी में ड्राइवर और गाड़ी मालिक को भी सजा मिलती है।

गुजरात में गो हत्या करने वालों को उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है। गुजरात सरकार ने गुजरात पशु संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2011 को कुछ साल पहले पारित किया था। गुजरात में कानून में नए संशोधनों के तहत इससे जुड़े सभी अपराध ग़ैर ज़मानती हो गए। सरकार उन गाड़ियों को भी ज़ब्त कर लेती है, जिनमें बीफ़ ले जाया जाता है।
जबकि हरियाणा में लाख रुपए का जुर्माना और 10 साल की जेल की सज़ा का प्रावधान है। वहीं महाराष्ट्र में गो-हत्या पर 10,000 रुपए का जुर्माना और पांच साल की जेल की सज़ा है।

इन 10 राज्यों में गो हत्या को लेकर नहीं है कोई प्रतिबंध- इन दस राज्यों केरल, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम और केंद्र शासित लक्षद्वीप में गो-हत्या पर पर कोई रोक नहीं है। यहां गाय, बछड़ा, बैल, सांड और भैंस का मांस खुले बाजार में बिकता और खाया जाता है।

वहीं कुछ राज्यों में है गो हत्या को लेकर आंशिक प्रतिबंध- आंशिक प्रतिबंध से आशय है कि गाय और बछड़े की हत्या पर पूरा प्रतिबंध लेकिन बैल, सांड और भैंस को काटने और खाने की इजाज़त है। आंशिक प्रतिबंध वाले आठ राज्यों में बिहार, झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा और चार केंद्र शासित राज्य दमन और दीव, दादर और नागर हवेली, पांडिचेरी, अंडमान ओर निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं।

इतने लंबे विरोध और हंगामे के बावजूद ये तस्कर गाय का पीछा क्यों नहीं छोड़ते। इसके पीछे धन है, धर्म है या क्राइम या गौ वंश के चमड़े और मांस का बड़ा इंटरनेशनल मुनाफा। हालांकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्यों को गायों और बछड़ों की हत्या को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया गया है। 26 मई 2017 को, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पूरे देश में पशु बाजारों में वध के लिए मवेशियों की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगाया था। लेकिन जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मवेशियों की बिक्री पर प्रतिबंध को निलंबित कर दिया था। हालांकि केंद्र सरकार ने ‘कामधेनु आयोग’ का गठन किया है जिसका काम दुधारु पशुओं की रक्षा और संवर्धन करना है। केंद्र की वर्तमान भाजपा सरकार ने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिये अपने घोषणा-पत्र में भी गौ-संरक्षण के लिये कदम उठाने का वादा किया था।। हालांकि गौहत्या के इन विवादों के बीच राष्ट्रीय स्तर गौहत्या को रोकने और गौ-माँस तथा इससे बने उत्पादों के आयात-निर्यात या बिक्री को प्रतिबंधित करने के लिये केन्द्र सरकार की तरफ से एक राष्ट्रीय कानून बनाए जाने की संभावना है।

ये भी देखें 

ठाकरे की रैली कोंकण में ही क्यों?

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

हमें फॉलो करें

98,380फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
178,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें