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राजदंड के साथ नया संसद रचेगा इतिहास, सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक

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देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को देश के नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। संजोग से इसी दिन हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर की 140 वीं जयंती भी है। 862 करोड़ रुपए में बने नए संसद भवन का काम पूरा हो गया है। प्रधानमंत्री ने 10 दिसंबर 2020 को इसकी आधारशिला रखी थी। नए संसद भवन का निर्माण 15 जनवरी 2021 को शुरू हुआ था। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बनी ये बिल्डिंग प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसे 28 महीने में बनाया गया।

पुराना संसद भवन 47 हजार 500 वर्गमीटर में है, जबकि नई बिल्डिंग 64 हजार 500 वर्ग मीटर में बनाई गई है। यानी पुराने से नया भवन 17 हजार वर्ग मीटर बड़ा है। नया संसद भवन 4 मंजिला है। इसमें 3 दरवाजे हैं, इन्हें ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार नाम दिया गया है। सांसदों और VIPs के लिए अलग एंट्री है। इस पर भूकंप का असर नहीं होगा। इसका डिजाइन HCP डिजाइन, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने तैयार किया है। इसके आर्किटेक्ट बिमल पटेल हैं। नए संसद भवन को 60,000 श्रमयोगियों ने रिकॉर्ड समय में बनाया है। इसलिए पीएम इस मौके पर सभी श्रमयोगियों का सम्मान भी करेंगे।

वहीं उद्घाटन से पहले आज सुबह गृहमंत्री अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि नया संसद भवन हमारे इतिहास, सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का सुंदर प्रयास है। इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित हो रही है। दरअसल उन्होंने एलान किया है कि नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित किया जाएगा। इसके साथ ही अब सेंगोल को देश के पवित्र राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर जाना जाएगा। अमित शाह ने कहा कि सत्ता का हस्तांतरण महज हाथ मिलाना या किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना नहीं है। इसे आधुनिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए स्थानीय परंपराओं से जुड़ा रहना चाहिए।

अमित शाह ने कहा कि इसके 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है। शाह ने स्वतंत्रता के एक ‘महत्वपूर्ण ऐतिहासिक’ प्रतीक ‘सेंगोल’ (राजदंड) को फिर से शुरू करने की भी घोषणा की क्योंकि यह अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था। पीएम मोदी नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले तमिलनाडु से सेंगोल प्राप्त करेंगे और वह इसे नए संसद भवन के अंदर रखेंगे। सेंगोल स्पीकर की सीट के पास रखा जाएगा। यह अब तक इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था और अब इसे नए संसद भवन में ले जाया जाएगा। शाह ने बताया कि पीएम मोदी को जब इस परंपरा की जानकारी मिली तो गहन चर्चा-विमर्श के बाद उन्होंने सेंगोल को संसद में स्थापित करने का फैसला लिया। वहीं 96 साल के तमिल विद्वान जो 1947 में उपस्थित थे, नए संसद में सेंगोल की स्थापना के समय मौजूद रहेंगे।

क्या है सेंगोल का इतिहास आइए जानते है-
सेंगोल तमिल भाषा के शब्द ‘सेम्मई’ से निकला हुआ शब्द है। इसका अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा। सेंगोल राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था। चोल काल के दौरान, राजाओं के राज्याभिषेक समारोहों में सेंगोल का अत्यधिक महत्व था। यह एक भाले या ध्वजदंड के रूप में कार्य करता था जिसमें बेहतरीन नक्काशी और जटिल सजावट होती थी। सेंगोल को अधिकार का एक पवित्र प्रतीक माना जाता था, जो एक शासक से दूसरे शासक को सत्ता के हस्तांतरण के रूप में सौंपा जाता था।

चोल राजवंश वास्तुकला, कला, साहित्य और संस्कृति के संरक्षण में अपने असाधारण योगदान के लिए प्रसिद्ध थे। सेंगोल चोल राजाओं की शक्ति, सच्चाई और संप्रभुता के प्रतीक चोल शासनकाल के एक प्रतिष्ठित प्रतीक के रूप में उभरा।
सेंगोल जिसे दिया जाता है उससे न्यायसंगत और निष्पक्ष शासन प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है। भारत की स्वतंत्रता के समय इस पवित्र सेंगोल को प्राप्त करने की घटना को दुनियाभर के मीडिया ने व्यापक रूप से कवर किया था। भारत को स्वर्ण राजदंड मिलने के बाद कलाकृति को एक जुलूस के रूप में संविधान सभा हॉल में भी ले जाया गया था।

इस सेंगोल का इतिहास जवाहर लाल नेहरू से भी जुड़ा है। इतना ही नहीं इसका तमिलनाडु से भी खास कनेक्शन है। सेंगोल संस्कृत शब्द “संकु” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “शंख”. शंख हिंदू धर्म में एक पवित्र वस्तु थी, और इसे अक्सर संप्रभुता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक था। यह सोने या चांदी से बना था, और इसे अक्सर कीमती पत्थरों से सजाया जाता था। सेंगोल राजदंड औपचारिक अवसरों पर सम्राट द्वारा ले जाया जाता था, और इसका उपयोग उनके अधिकार को दर्शाने के लिए किया जाता था। संसद भवन में जिस सेंगोल की स्थापना होगी उसके शीर्ष पर नंदी विराजमान हैं।

आजाद भारत में इस सेंगोल का बड़ा महत्व है। 14 अगस्त 1947 में जब भारत की सत्ता का हस्तांतरण हुआ, तो वो इसी सेंगोल द्वारा हुआ था। एक तरह कहा जाए तो सेंगोल भारत की आजादी का प्रतीक है। आजादी के समय जब लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित नेहरू से पूछा कि सत्ता हस्तांतरण के दौरान क्या आयोजन होना चाहिए? नेहरूजी ने अपने सहयोगियों से चर्चा की सी गोपालाचारी से पूछा गया। गोपालाचारी ने सेंगोल प्रक्रिया के बारे में बताया। इसके बाद इसे तमिलनाडु से मंगाया गया सबसे पहले लॉर्ड माउंट बेटन को ये सेंगोल दिया गया और फिर उनसे हत्तांतरण के तौर पर इसे वापस लेकर नेहरू के आवास ले जाया गया। जहां गंगाजल से सेंगोल का शुद्धिकरण किया गय। उसके बाद मंत्रोच्चारण के साथ नेहरू को इसे सौंप दिया गया। और आधी रात को पंडित नेहरु ने इसे स्वीकार किया। इसका तात्पर्य था पारंपरिक तरीके से ये सत्ता हमारे पास आई है।

सेंगोल राजदंड का पहला ज्ञात उपयोग मौर्य साम्राज्य द्वारा किया गया था। मौर्य सम्राटों ने अपने विशाल साम्राज्य पर अपने अधिकार को दर्शाने के लिए सेनगोल राजदंड का इस्तेमाल किया। गुप्त साम्राज्य चोल साम्राज्य और विजयनगर साम्राज्य द्वारा सेनगोल राजदंड का भी इस्तेमाल किया गया था। सेंगोल राजदंड आखिरी बार मुगल साम्राज्य द्वारा इस्तेमाल किया गया था। मुगल बादशाहों ने अपने विशाल साम्राज्य पर अपने अधिकार को दर्शाने के लिए सेनगोल राजदंड का इस्तेमाल किया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत पर अपने अधिकार के प्रतीक के रूप में सेनगोल राजदंड का भी उपयोग किया गया था।

परंपरा में सेंगोल को “राजदण्ड” कहा जाता है। जिसे राजपुरोहित राजा को देता था। वैदिक परंपरा में दो तरह के सत्ता के प्रतीक हैं. राजसत्ता के लिए “राजदंड” और धर्मसत्ता के लिये “धर्मदंड। राजदंड राजा के पास होता था और धर्मदंड राजपुरोहित के पास।

वहीं समकालीन समय में, सेंगोल को अत्यधिक सम्मानित किया जाता है और गहरा सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह विरासत और परंपरा के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित है, जो विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, त्योहारों और महत्वपूर्ण समारोहों के अभिन्न अंग के रूप में कार्य करता है। वहीं नए संसद भवन के उद्घाटन और सेंगोल की स्थापना इसे राजनीतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि परंपरा के रूप में देखा जाना चाहिए। जो लोग इसका विरोध कर रहे है उन्हें राजनीति से ऊपर उठ कर इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनना चाहिए।

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