ऑपरेशन सिंदूर के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक और सैन्य समीकरणों में हल्के-फुल्के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। कुछ पुराने समीकरणों के अर्थ बदल चुके हैं और कुछ नए समीकरण बनने लगे हैं। भारत की सैन्य सफलता से यूरोप और अमेरिका बहुत उत्साहित हों, ऐसी बात नहीं है। पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश का खतरनाक त्रिकोण पहले से अधिक मजबूत हुआ है, और भारत के भीतर के कुछ छिपे तत्व इस त्रिकोण का चौथा कोण बनते दिखाई दे रहे हैं।
ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने अपने सैन्य कौशल, तकनीकी ताकत और मारक क्षमता का परिचय दिया। इस अभियान में पाकिस्तान को सीधी चोट लगी और चीनी हथियारों की गुणवत्ता को लेकर वैश्विक बाजार में संदेह पैदा हो गया। चीन द्वारा निर्मित जे-10 लड़ाकू विमानों की निर्माता कंपनी एविक चेंगडू को भारी नुकसान हुआ है। इसके चलते चीन ने भारत को सबक सिखाने के उद्देश्य से बांग्लादेश को भड़काना शुरू कर दिया है।
दूसरी ओर, कांग्रेस भी केंद्र सरकार के विरोध में खड़ी हो गई है। राहुल गांधी ऐसी जानकारी सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं, जिसे जानने के लिए पाकिस्तान बेहद उत्सुक है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी दावे की हवा भारतीय वायुसेना ने निकाल दी थी। पाकिस्तान ने दावा किया था कि उसने तीन राफेल विमान गिराए हैं, मगर एयर मार्शल ए.के. भारती ने कहा था कि हमारे सभी पायलट सुरक्षित हैं।
पाकिस्तान द्वारा गिराए गए विमानों का दावा फर्जी निकला। असल में, भारत ने डमी विमान भेजकर पाकिस्तान की चीनी एयर डिफेंस प्रणाली को भ्रमित किया था, और फिर असली मिसाइल हमले किए थे।
ऑपरेशन सिंदूर समाप्त होने के बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बयान दिया कि आतंकवादी ठिकानों पर हमले से पहले पाकिस्तान को सूचित कर दिया गया था कि यह हमला केवल आतंकियों को निशाना बनाकर किया गया है, नागरिकों या सैन्य प्रतिष्ठानों पर नहीं। भारत का संदेश था—हमारा युद्ध सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ है।
इस बयान पर राहुल गांधी ने सवाल उठाए हैं—पाकिस्तान को हमले की जानकारी देने का अधिकार जयशंकर को किसने दिया? कितने लड़ाकू विमान तैनात किए गए और कौन जिम्मेदार था? इस पर आलोचना हो रही है कि राहुल गांधी की यह जिज्ञासा कहीं पाकिस्तान के हितों की पूर्ति तो नहीं कर रही।
भारत ने पहले दिन से स्पष्ट कर दिया था कि उसका उद्देश्य सिर्फ आतंकी ठिकानों को नष्ट करना है, युद्ध को बढ़ावा देना नहीं। यही स्पष्टता वैश्विक स्तर पर भारत के लिए समर्थन का कारण बनी। प्रधानमंत्री मोदी ने पुलवामा और पहलगाम हमलों के बाद भी ऐसा ही संदेश दिया था।
जहां एक ओर युद्ध में जीतने वाली पक्ष को भी कुछ हानि होती ही है, वहीं भारत को सावधानीपूर्वक अपनी कमजोरी नहीं दिखाने की रणनीति पर चलना पड़ता है। चीन की पी-15 मिसाइल हरियाणा में बिना फटे पाई गई, जिससे भारत को उसकी तकनीक की पूरी जानकारी मिल गई। तुर्की के ड्रोन्स के साथ भी ऐसा ही हुआ।
सेना की प्रेस कॉन्फ्रेंस में हमेशा सावधानी से शब्दों का चयन किया गया, ताकि संवेदनशील जानकारी लीक न हो। ए.के. भारती ने कहा था, “नुकसान युद्ध का हिस्सा होता है,” पर कितने विमान क्षतिग्रस्त हुए, इसका खुलासा नहीं किया।
ऐसी जानकारी लीक न हो, यही रणनीति होती है। लेकिन राहुल गांधी बार-बार इस तरह की जानकारी उजागर करने की मांग करते हैं। वे लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं, मगर उनके बयानों से लगता है कि वे देशविरोधी ताकतों को अप्रत्यक्ष मदद कर रहे हैं। पहले भी राफेल विमान की कीमतों को लेकर उन्होंने वही रुख अपनाया था। राहुल गांधी अब सिर्फ केंद्र सरकार पर नहीं, सेना पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं। यह केवल उनका व्यक्तिगत रुख नहीं, बल्कि कांग्रेस की व्यापक समस्या भी है।
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