सीट शेयरिंग पर कांग्रेस का अड़ंगा ! जाने क्या है वजह ?  

कांग्रेस इस साल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने उसके होने के बाद ही इस पर निर्णय लेगी। उसका मानना है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत दर्ज करेगी। जिससे कांग्रेस सीट बंटवारे के दौरान ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपना दावा कर सकती है।

सीट शेयरिंग पर कांग्रेस का अड़ंगा ! जाने क्या है वजह ?        

शुक्रवार को विपक्ष के “इंडिया” की तीसरी बैठक मुंबई में समाप्त हो गई। विपक्षी दल के नेता आये और मुंबई का वड़ा पाव खाकर चलते बने। लेकिन, इस बैठक में भी वही सब हुआ जो पिछली बैठक में हुआ था। बैठक को सफल नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि अभी तक कई बड़े मुद्दे ज्यों के त्यों विपक्ष के सामने बने हुए हैं। कहा जा रहा था कि इस बैठक में विपक्ष के “इंडिया” के “लोगो” को लांच किया जाएगा। मगर इस पर कोई प्रगति नहीं हुई है। न ही सीट शेयरिंग पर ही बात हुई। बताया जा रहा है कि सीट शेयरिंग का मुद्दा कांग्रेस की ओर से फंसा हुआ है। तो आइये जानते हैं कि यह मामला क्यों फंसा है और कांग्रेस क्या चाहती है।

पहले कुछ उदाहरण आपके सामने रख रहे हैं, ये  उदाहरण कांग्रेस के सीट बंटवारे से जुड़ा हुआ है। पहला उदाहरण, मानसून सत्र में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने यूपीए और मोदी सरकार के कामों की तुलना की थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि  कांग्रेस की सरकार में “काम हो जाएगा” का नारा दिया जाता था ,जबकि हमारी सरकार में काम हो गया। ” दूसरा उदाहरण चंद्रयान -3 के बाद जब पीएम मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों को संबोधित किया था। उसके कुछ समय बाद ही कांग्रेस ने अपने ट्वीटर हैंडल से जवाहर लाल नेहरू की  गाथा वाली एक वीडियो शेयर की थी। श्रेय लेने की होड़ को दर्शाता है।

पहला उदाहरण यह साबित करता है कि कांग्रेस ने आज तक केवल हीला हवाली ही करती आ रही है। उसने काम करने के नाम पर “हो जाएगा” और “चलता है “जैसे शब्दों से खेलती रही है। जिसका नतीजा सबके सामने है। जो काम बहुत पहले हो जाने चाहिए थे, वे काम अब किये जा रहे है। अब सवाल यह उठता है कि ऐसा क्यों? तो इसका सटीक जवाब कांग्रेस ही देगी, लेकिन राजनीति के साथ देगी। जैसा कि जब कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने चंद्रयान की सफलता पर इसरो को बधाई दी, तो उसमें पगार का मुद्दा घुसेड़ दिया था।

यानी कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने कभी, किसी मुद्दे को साफ तौर पर नहीं सुलझाया, बल्कि उस मुद्दे पर राजनीति करने के लिए आधा अधूरा छोड़ देती रही है। वही,कांग्रेस अब  भी कर रही है। इंडिया गठबंधन की पहली बैठक बिहार में जून में पहले या दूसरे सप्ताह में तय की गई थी, लेकिन कांग्रेस की वजह से उसे आगे बढाकर 23 जून को रखा गया था।  दरअसल, कांग्रेस का यही काम करने का कल्चर है। जिससे देश का केवल नाश हुआ है। आज भी कांग्रेस रसातल में मिलने के बाद भी “होगा”, और “हो जाएगा” पर ही अटकी हुई है। इससे बाहर निकलने का प्रयास नहीं कर रही है। सीट बंटवारा उसका ताजा उदाहरण है।

अब सवाल यह है कि विपक्ष के गठबंधन की तीन बैठक आयोजित होने के बाद भी ,विपक्ष अभी तक कोई ठोस नतीजे पर क्यों नहीं पहुंचा। एक ओर जहां, विपक्ष में पीएम उम्मीदवारों की लंबी लाइन लगी हुई है। तो दूसरी ओर “इंडिया” गठबंधन सीट शेयरिंग को लेकर सभी राजनीति दल फिक्रमंद नजर आ रहे है। इसकी वजह भी विपक्ष के नेता बता रहे हैं। कुछ दिन पहले ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दावा किया था कि केंद्र सरकार समय से पहले चुनाव करा सकती है, इसलिए हमें तैयार रहना चाहिए।

इसी तरह से वेस्ट बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पहले चुनाव कराये जाने की भविष्यवाणी की थी। उन्होंने कहा था कि बीजेपी सरकार समय से पहले चुनाव करा सकती है इसलिए विपक्ष को संयुक्त रूप से प्रमुख बिंदुओं की पहचान कर संयुक्त घोषणा पत्र 2 अक्टूबर यानी की महात्मा गांधी की जयंती तक जारी कर देना चाहिए। इस संबंध में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी अपनी बात रखी थी। उन्होंने कहा कि विपक्ष को सीट बंटवारे पर प्रयास तेज कर देना चाहिए। 30 सितंबर तक विपक्ष अपना संयुक्त उम्मीदवार घोषित कर दे।

ऐसे में सवाल यह है कि आखिर सीट शेयरिंग का मुद्दा क्यों फंसा हुआ है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने ही सीट बंटवारे में रुचि नहीं ले रही है। कहा जा रहा है कि इस साल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने उसके होने के बाद ही इस पर निर्णय लेगी। दरअसल, कर्नाटक का चुनाव जीतने के बाद से कांग्रेस का जोश हाई है। उसका मानना है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत दर्ज करेगी। जिससे कांग्रेस सीट बंटवारे के दौरान ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपना दावा कर सकती है। कहा जा रहा है कि मौजूदा स्थिति में अगर सीट बंटवारा होता है तो कांग्रेस को बड़े पैमाने पर अन्य पार्टियों के साथ समझौता करना पड़ सकता है।

जैसे यूपी में अगर समाजवादी पार्टी कांग्रेस को सीट देती है तो उसे  राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी सीट देना पड़ेगा। जो कांग्रेस नहीं चाहती है। उसी तरह से दिल्ली पंजाब में अगर आम आदमी पार्टी के साथ सीट बंटवारा होता है तो हरियाणा राजस्थान गुजरात जैसे राज्यों भी कांग्रेस को  सीट देनी होगी। पिछले दिनों कहा जा रहा था कि कांग्रेस मोदी का विजय रथ रोकने के लिए बड़ा “त्याग” कर सकती है। लेकिन अभी तक कांग्रेस ने कोई बड़ा दिल नहीं दिखाया है। पीएम उम्मीदवारी के लिए कांग्रेस पहले से ही राहुल गांधी का नाम आगे कर रखी है।

यानी कहा जा सकता है कि कांग्रेस किसी भी कीमत पर न पीएम पद की दावेदारी छोड़ेगी और न ही कम सीटों के साथ लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहेगी। कांग्रेस हर चीज पर अपनी दावेदारी ठोंक रही है। इससे विपक्ष के नेताओं में खलबली है। बताया जा रहा है कि इंडिया की बैठक में राहुल गांधी द्वारा अडानी का मुद्दा उछाले जाने से ममता बनर्जी नाराज हो गई। बताया जा रहा है कि वेस्ट बंगाल में अडानी ग्रुप ने निवेश किया है जिससे लगभग 5 लाख राज्य में रोजगार मिलने की संभावना जताई जा रही है।

यह भी कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी का अडानी से बहुत अच्छे संबंध हैं। हालांकि, ममता बनर्जी ने नाराजगी वाली बात से इंकार किया है। बहरहाल, कांग्रेस और राहुल गांधी हर मुद्दे का राजनीतिकरण करते है और श्रेय लेते रहते हैं। बता दें कि बेंगलुरु की बैठक में भी नीतीश कुमार के नाराजगी की बात सामने आई थी। और वे बैठक से सबसे पहले चले गए थे। इस बार भी ममता बनर्जी सबसे पहले निकली थी। राम जाने! विपक्ष के गठबंधन का कौन मालिक होगा ?

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