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Friday, September 20, 2024
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बिहार में होली पर बदलेगा सत्ता का रंग!   

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बिहार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। एक बार फिर बिहार में उथल पुथल देखने को मिल रही है। एक ओर जहां नीतीश कुमार देश का नेतृत्व करने का सपना देख रहे हैं तो दूसरी ओर उनकी पार्टी टूट के कगार पर पहुंच गई है। खबर यहां तक है कि उपेंद्र कुशवाहा अगले माह बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। इस खबर से बिहार की राजनीति में भूचाल आया हुआ है। सबसे बड़ी बात यह है कि कुशवाहा ने जेडीयू और आरजेडी पर बड़ा आरोप लगा है। माना जा रहा है कि कुशवाहा की बगावत के बाद नीतीश कुमार की नैय्या मझधार में फंसती नजर आ रही है। जेडीयू में भगदड़ मचने की आशंका है।

दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा ने मंगलवार को कहा कि उन्हें और जेडीयू को कमजोर करने की साजिश रची जा रही है। अब ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर मामला क्या है। बताया जा रहा है कि कुछ दिनों से जेडीयू में सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है। जब से नीतीश कुमार ने अगला   विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ने का ऐलान किया है तभी से पार्टी में सबकुछ बिखरा बिखरा लग रहा है। भले नीतीश कुमार दावा कर रहे हैं कि पार्टी में सबकुछ सामान्य है, लेकिन देखने से ऐसा नहीं लग रहा है।

वर्तमान में नीतीश कुमार कमजोर हुए हैं। इसका सबूत है, जब उन्होंने कहा था कि 2005 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। कई बार कहा जा चुका है कि नितीश कुमार की सुशासन बाबू वाली छवि धूमिल हुई है। क्योंकि उन्होंने सत्ता के लिए पार्टी बदली, लेकिन बिहार के लोगों की तक़दीर और तस्वीर अभी वही है। ऐसे में जब उपेंद्र कुशवाहा  नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हैं तो जरूर अंदर खाने में कुछ पक रहा है। अब आने वाले समय में उपेंद्र कुशवाहा अगर जेडीयू से अलग होते हैं तो कोई नहीं बात नहीं होगी। क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार के ही साथी हैं जो मौक़ापरस्त है। सत्ता के लिए अच्छे बुरे का भान नहीं  होता है।

तो आइये जान लेते हैं उपेंद्र कुशवाहा के अतीत को। कुशवाहा ने अपनी राजनीति जेडीयू से ही शुरू की है। लेकिन 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में हारने के बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इसके बाद 2009 में नीतीश कुमार की अपील पर वे जेडीयू में वापस आ गए थे। मगर 2013 में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से दोबारा अलग होकर अपनी अलग पार्टी बना ली थी। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम राष्ट्रीय लोक समता पार्टी रखा था। जो 2014 में बीजेपी के गठबंधन में शामिल हो गई थी। लेकिन 2015 में हुए विधानसभा के बाद कुशवाहा अपनी पार्टी का जेडीयू में विलय कर दिया था। जिसकी वजह से वे राजग से अलग हो गए थे। अब कहा जा रहा है कि एक बार फिर कुशवाहा जेडीयू से अलग होकर अपनी पार्टी को ज़िंदा करेंगे।

कुशवाहा कोयरी जाति से आते हैं। बिहार में कोयरी 10 से 11 फीसदी हैं।यही वजह है कि कुशावाहा की राजनीति बिहार में खूब फलफूल रही थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में राजग की ओर से तीन सीटें मिली थी जिस पर उन्होंने जीत दर्ज की थी।  कुशवाहा नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में मंत्री भी रहे थे। अब के एक बार फिर कुशवाहा ने बिहार की राजनीति में उथल पुथल पैदा कर दी है। अब देखना होगा कि उनका अगला कदम क्या होता है। हालांकि कहा जा रहा है कि अगले माह वे बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। तो देखना होगा कि अब कुशवाहा नया क्या गुल खिलाते हैं।

कुशवाहा का आरोप है कि नीतीश कुमार का महागठबंधन में शामिल होने से पहले एक डील हुई थी। उन्होंने कहा कि पार्टी के नेता आगे आकर कार्यकर्ताओं को बताएं कि क्या डील हुई है। हालांकि कुशवाहा भी इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दिए। लेकिन माना जा रहा बिहार में होली के आसपास सत्ता का रंग बदल सकता है। अभी तक की जानकारी के अनुसार, महागठबंधन में आरजेडी का ही जलवा है। नीतीश कुमार की कोई सुन नहीं रहा है। नीतीश कुमार अपनी स्थिति को भांपकर ही समाधान यात्रा निकाल रहे हैं। लेकिन इसके भी कई मायने निकाले जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार समाधान यात्रा के जरिये अपनी इमेज और पार्टी की स्थिति  का जायजा ले रहे हैं। .

गौरतलब है कि इस यात्रा में आरजेडी के नेता शामिल नहीं हुए है। वे इस यात्रा से दूरी बनाये हुए हैं। इससे साफ़ हो गया है कि आने वाले समय में महागठबंधन में महाभारत होना तय है। यही वजह है कि पिछले दिनों आरजेडी के नेताओं ने रामचरित मानस को टारगेट करते रहे। लेकिन तेजस्वी यादव ने इन नेताओं को बेतुका बयान देने से रोका नहीं। फिर अपनी इमेज को सुधारने के लिए नीतीश कुमार आगे पड़ा था।

अंदर खाने से यह भी कहा जा रहा है कि तेजस्वी यादव भले नीतीश कुमार के सहयोग से उप मुख्यमंत्री बन गए हो लेकिन उनका विश्वास सुशासन बाबू पर रत्ती भर नहीं है। यही वजह है कि तेजस्वी यादव सरकार में रहकर अपनी अलग से छवि गढ़ने में लगे हुए हैं। पिछले दिनों राजद नेता सुधाकर ने नीतीश कुमार को भिखमंगा,शिखंडी तक कह डाला था। लेकिन तेजस्वी इन बयानों पर केवल मूकदर्शक बनकर टुकर टुकर देखते रहे। कहा जा रहा है कि आरजेडी अपने अगले मिशन को लेकर यह प्रपंच रच रही है।

बहरहाल, इस तमाशा के बीच बीजेपी किनारे खड़ा होकर ताली बजाने के आलावा कुछ नहीं कर सकती। क्योंकि,जिस तरह महागठबंधन के नेता फटी ढोल पीट रहे हैं। उसका नतीजा जगजाहिर है। कहा जाए कि आने वाले समय नीतीश कुमार अलग थलग पड़ जाए तो कोई नई बात नहीं है।यानी आगामी चुनाव में नीतीश कुमार के पास केवल दो ऑप्शन मिलने वाले हैं। एक विकल्प तो यह है कि भविष्व में नीतीश अकेले चुनाव लड़ते हुए देखे जाएं या दुसरा आप्शन यह कि एक बार फिर बीजेपी की ओर पलटी मारकर साथ हों लें। बहरहाल,यह केवल अनुमान है तो देखना होगा कि बिहार की राजनीति में नीतीश का क्या रोल होगा?
 

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