27 C
Mumbai
Thursday, September 19, 2024
होमब्लॉगकल्याण सिंह मतलब बीजेपी और हिंदुत्व!

कल्याण सिंह मतलब बीजेपी और हिंदुत्व!

Google News Follow

Related

कल्याण सिंह बीजेपी के वे नेता थे जो बीजेपी के बिना नहीं रह सके। दो बार बीजेपी से अलग होने के बावजूद कल्याण सिंह की अपनी ही बनाई राष्ट्रवादी क्रांति पार्टी में ज्यादा दिन नहीं रहे और बीजेपी में पार्टी का विलय हो गया। वही हाल बीजेपी का रहा, जब-जब कल्याण सिंह बीजेपी से अलग हुए तब-तब बीजेपी उत्तर प्रदेश में जमींदोज होती चली गई। कल्याण सिंह के रगो में हिंदुत्व कूट-कूटकर भरा था। कल्याण सिंह, हिंदुत्व और बीजेपी को अलग-अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि तीनों एक-दूसरे के पूरक हैं। अगर बीजेपी का नाम लिया जाएगा तो हिंदुत्व पहले जोड़ा जाएगा,अगर हिंदुत्व का नाम लिया जाएगा तो कल्याण सिंह को हमेशा याद किया जाएगा। पिछड़ी जाति के नेताओं में शुमार कल्याण सिंह किसानों ,गरीबों के लिए हमेशा काम किया। यादों के झरोखों में झांकने पर यह याद आता है कि पिताजी कहा करते थे कि कल्याण सिंह की सरकार है बड़े बाल मत रखो, हाथ में रक्षासूत्र बांधों, लेकिन कम, शाम होते ही बाजार के चौराहे सुने हो जाते थे, चोर उचके गायब हो जाते थे। अपनी पहचान बस इतनी थी कि अपना नाम और घर-परिवार का नाम याद था। राजनीति क्या है यह नहीं जानते थे।

कल्याण सिंह बीजेपी के बड़े नेता थे, लेकिन उतने अक्खड़ भी थे,सबके प्रिय थे, राम के शायद ज्यादा करीब थे, इसलिए उन्होंने सरकार कुर्बान कर दी। अलीगढ़ की अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में 5 जनवरी 1932 को चौधरी तेजपाल सिंह लोधी और सीता देवी के यहां जन्मे कल्याण सिंह राजनीति बड़ा मुकाम हासिल किया, बीजेपी से जुड़ने और बिछड़ने की हमेशा एक कहानी होती और दूसरे पल बीजेपी से मिलन पर गिले-शिकवे दूर कर माफी मांग लेते थे। कल्याण पढ़ाई कर शिक्षक बन गए।

कल्याण सिंह को 1967 में जनसंघ ने अतरौली से उम्मीदवार बनाया। उन्होंने कांग्रेस के अमर सिंह को पराजित कर चुनाव जीत लिया और पहली बार विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे। और लगातार 1980 तक इसी सीट से जीतते रहे। अतरौली से विधानसभा के 12 चुनाव लड़कर दस बार विधायक और दो बार सांसद (लोकसभा सदस्य) रहे। इससे पहले कल्याण सिंह वर्ष 1962 में अतरौली से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ाया, लेकिन वह चुनाव हार गए।

आगे चलकर जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। 1977 में उत्तर प्रदेश में जनता दल पार्टी जब सत्ता में आई तो कल्याण सिंह को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। जब भारतीय जनता पार्टी का 1980 में गठन हुआ तो कल्याण सिंह को प्रदेश का महामंत्री बनाया गया। कल्याण सिंह बीजेपी के जुझारू नेता थे। राम मंदिर आंदोलन के बाद कल्याण सिंह ने पार्टी में के कार्यकर्ताओं में नई जान फूंकी और 1991 में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की अगुआई में सरकार बनाई।
यह वह दौर जब पूरी राजनीति में उथल-पुथल थी।

एक ओर जहां मंडल आयोग के समर्थन विरोध प्रदर्शन देश में जारी था, तो दूसरी तरफ मंदिर आंदोलन के लिए भी बीजेपी सक्रिय थी। वजह साफ थी 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों पर गोली चली थी। उस समय समाजवादी पार्टी सत्ता में थी और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे। कल्याण सिंह ने इस मुद्दे की हाथों हाथ लिया और प्रदेश के कार्यकर्ताओं में नई जान फूंकी। इसकी परिणति यह हुई कि 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने राम मंदिर का ढाचा गिरा दिया। कल्याण सिंह भी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के बाद कल्याण सिंह ने कहा था कि भगवन राम के लिए ऐसी सौ सरकारें कुर्बान। ऐसे में सरकार राम मंदिर के नाम पर कुर्बान। राम मंदिर के लिए एक क्या सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूं। केंद्र सरकार कभी भी मुझे गिरफ्तार करवा सकती है।

इस बीच बीजेपी ने कई उतार चढ़ाव देखे। राजनीति की खिचड़ी पकती रही और कल्याण सिंह 2002 में अपने समर्थकों के साथ मिलकर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन किया। 2002 के विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह की पार्टी को चार सीटें मिली। राक्रांपा विधानसभा चुनाव 2002 में तमाम सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए। कल्याण के अलग होने के कारण भाजपा को लगभग 72 सीटों पर सीधा नुकसान उठाना पड़ा। वह 174 से 88 सीटों पर आ गई। इस चुनाव की खास बात यह थी कि जिन 72 सीटों पर भाजपा हारी थी। दो साल बाद यानि 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी ने कल्याण सिंह की बीजेपी में फिर वापसी कराई। 2007 में बीजेपी ने उन्हें सीएम का चेहरा बनाया।

लेकिन इस चुनाव में बीजेपी को करारी मात मिली जिसका ठीकरा कल्याण सिंह पर फूटा और एक बार फिर उन्होंने 20 जनवरी 2009 में बीजेपी को अलविदा कह दिया। 2014 में कल्याण सिंह की बीजेपी में वापसी के लिए ऐसी पटकथा लिखी गई कि उन्हें कहना पड़ा कि अब बीजेपी से कहीं नहीं जाऊंगा। इसके बाद कल्याण सिंह को राजस्थान का राज्य पाल बनाया गया। कहा जा रहा है कि कल्याण सिंह की ख्याइस थी कि मरूं तो मुझे भाजपा के झंडे में ले जाया जाय। बीजेपी ने कल्याण सिंह की अंतिम इच्छा पूरी की उनके निधन के बाद उनके शव को बीजेपी के झंडे में रखकर पार्टी कार्यालय लाया गया।

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

हमें फॉलो करें

98,382फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
177,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें