बता दें कि महाराष्ट्र में लोकसभा की कुल 48 सीटें हैं। जिसमें से ठाकरे गुट को 21 सीट, एनसीपी को 19 और कांग्रेस को 8 सीट पर चुनाव लड़ने की बात कही गई है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस फॉर्मूले में सभी दल अपने मित्र दलों को अपने हिस्से से सीट देंगे। जैसे कुछ माह पहले ठाकरे गुट का प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन अघाड़ी से गठबंधन हुआ है। तो ठाकरे गुट अपने हिस्से की 21 सीटों में से सीट देगी। ठाकरे गुट का संभाजी ब्रिग्रेड पार्टी से भी गठजोड़ हुआ है। उसे भी ठाकरे गुट अपने हिस्से से खुश करेगा।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सभी दलों के मित्र दल इस फॉर्मूले पर सहमत हैं। यह भी बड़ा सवाल है। क्योंकि,इस प्लान के तहत ठाकरे गुट को मुंम्बई में चार सीटें मिली हैं। जबकि एक एक सीट एनसीपी और कांग्रेस को दी गई हैं। तो क्या इस पर भी सहमति बनेगी ? माना जा रहा है कि इस फार्मूले के तहत हर ओर असहमति के स्वर सुनाई देंगे। क्योंकि प्लान के तहत कांग्रेस को केवल आठ सीटें ही दी गई हैं। जिससे माना जा रहा है कि कांग्रेस के सभी नेता इस प्लान से खुश नहीं होंगे। इस प्लान पर आने वाले समय में तू तू -मै मै होना तय है।
इतना ही नहीं, प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले की मुश्किलें और बढ़ेंगी। क्योंकि अभी ही कई नेता उन्हें अध्यक्ष पद से हटाने की मांग कर रहे हैं। ऊपर से लोकसभा चुनाव के लिए मात्र आठ सीट मिलना कांग्रेस को नकारने जैसा है। कहा जा रहा है कि नाना पटोले से नाराज चल रहे नेता उनकी मुश्किलें बढ़ा सकते हैं और टूट फूट भी हो सकती है। पिछले दिनों बाला साहेब थोराट ने कांग्रेस विधायक दल के नेता के पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके अलावा भी कई नेताओं ने भी नाना पटोले के कार्य प्रणाली पर सवाल खड़ा किया था।
वहीं, बताया जा रहा है कि इस फार्मूले के तहत पांच से छह ऐसी सीटें हैं जिस पर तीनो दलों की आम सहमति नहीं बन पाई है। यानी तीनों दलों का विरोधाभास बना हुआ है या यूँ कह सकते है कि इन सीटों को लेकर अभी भी समस्या है। ये वे सीटें हैं जिस पर तीनों दल अपना अपना दावा ठोंकते रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि इन सीटों पर महाविकास अघाड़ी के दल अपने विरोधाभास को कैसे खत्म करेंगे। क्या इन सीटों पर अदला बदली का खेल होगा? ऐसा होगा तो क्या जीत सुनिश्चित होगी। ये तमाम सवाल हैं जो महाविकास अघाड़ी के दलों के सामने मुंह फाड़े खड़ा है।
अब बात इन दलों की चुनौतियों की, दरअसल 2024 का लोकसभा चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव से बहुत ही अलग होने वाला है। क्योंकि, बीजेपी और शिवसेना दोनों मिलकर चुनाव लड़ा था। अब शिवसेना में दो फाड़ होने की वजह से इस बार बीजेपी शिंदे गुट की शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। जबकि, ठाकरे गुट की शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ेगी। यानी ठाकरे गुट का इस बार अस्तित्व दांव पर है। पार्टी के बिखराव के बाद से जिस तरह से ठाकरे गुट पर हिंदुत्व को छोड़ने का आरोप लगता रहा है। इससे साफ है कि ठाकरे गुट अपने वजूद की लड़ाई लड़ेगी।
ठाकरे गुट को ही नहीं, बीजेपी के लिए भी इस बार का लोकसभा चुनाव जंग जीतने के बराबर है। बीजेपी को हिन्दू वोटरों का ही भरोसा है। ऐसे में बीजेपी हर हाल में चाहेगी की हिन्दू वोटों का बंटवारा न हो। क्योंकि, पिछली बार बीजेपी और शिवसेना साथ लड़े थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 23 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि शिवसेना 18 सीटों पर जीती थी । वहीं एनसीपी को चार सीटें मिली थीं और कांग्रेस को एक सीट से संतोष करना पड़ा था।
जानकारों का कहना है कि महाराष्ट्र में इस बार हिन्दू वोट बंटेगा। इसी मुद्दे को लेकर शिवसेना का भी दो फाड़ हुआ है। इस चुनाव से पता चलेगा कि ठाकरे गुट कितने पानी में है। क्योंकि ठाकरे गुट पर अस्तित्व का संकट है। बीजेपी भी नहीं चाहेगी की हिन्दू वोटों का बंटवारा हो। इस बार ठाकरे गुट के पास बाला साहेब ठाकरे का नाम नहीं है, बावजूद इसके शिंदे गुट और ठाकरे गुट खुद को असली शिवसेना का दावा करते रहे हैं। शिंदे गुट की शिवसेना खुद को बाला साहेब ठाकरे के विचारो पर चलने वाली पार्टी बताती है। तो ठाकरे गुट के पास केवल ठाकरे नाम है। ऐसे में देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि आगामी लोकसभा में जनता किसे अपना मत देती है।
एनसीपी और कांग्रेस के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती यह कि पहली बार हिंदुत्व का मुद्दा उठाने वाली पार्टी के साथ जाकर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में ठाकरे गुट के भी सामने बड़ी चुनौती है। ठाकरे गुट को दो स्तर पर लड़ाई लड़नी है। एक यह कि उन्होंने हिंदुत्व को छोड़ दिया है। दूसरा यह कि हिंदुत्व का विरोध करने वाली पार्टी से ठाकरे गुट का गठबंधन है। ऐसे में देखना हो कि ठाकरे गुट कमाल कर पाता है या नहीं। यही समस्या एनसीपी और कांग्रेस की भी है।
क्योंकि वे पहली बार एक हिंदुत्व वाली पार्टी से गठजोड़ कर चुनाव में उतर रहे हैं। एनसीपी की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह कुछ ही इलाकों में प्रभाव रखती है। फार्मूले के अनुसार, यह दिखता है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस की क्या हैसियत है। क्योंकि, उसे मात्र आठ सीटें दी गई है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस को दस सीटें भी मिल सकती हैं। ऐसे में देखा होगा कि माविआ के दल साथ में आगामी लोकसभा चुनाव लड़ते हैं तो क्या विधानसभा चुनाव में भी साथ लड़ेंगे ?