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Sunday, November 24, 2024
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बीआरएस बनी भाजपा की “बी” टीम?

भारत राष्ट्र समिति पार्टी को भाजपा की बी टीम कहा जाता है| इसके अलावा, बीआरएस पार्टी अगर एड. प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी के साथ समझौता होता है, तो ऐसा लगता है कि वोटों का बंटवारा महाविकास अघाड़ी के लिए घातक होगा|

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भारत राष्ट्र समिति पार्टी को भाजपा की बी टीम कहा जाता है| इसके अलावा, बीआरएस पार्टी अगर एड. प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी के साथ समझौता होता है, तो ऐसा लगता है कि वोटों का बंटवारा महाविकास अघाड़ी के लिए घातक होगा|तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर को लेकर, जी हां, जैसे-जैसे आगामी राज्यों खासकर महाराष्ट्र में विधानसभा और लोकसभा चुनाव को लेकर तेलंगाना और महाराष्ट्र से सटे जिलों में जनसंपर्क मुहीम शुरू की हुई है|
चंद्रशेखर द्वारा बनायीं गयी बीआरएस को जानने से पहले हम महाराष्ट्र के सोलापुर के बारे में जानते है? कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री को सोलापुर राजनीतिक हिसाब से इतना महत्वपूर्ण स्थान माना जा रहा है|सोलापुर महाराष्ट्र के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है, जो कर्नाटक के साथ इसकी सीमा के करीब है। सोलापुर मुंबई, पुणे, बैंगलोर और हैदराबाद के बीच प्रमुख राजमार्ग, रेल मार्गों पर स्थित है, जिसकी एक शाखा पड़ोसी राज्य कर्नाटक के कालाबुरागी और विजयपुरा शहरों तक है।​ दोस्तों आपको बता दूँ कि यह महाराष्ट्र का सातवां सबसे बड़ा महानगरीय शहरी समूह और 11वां सबसे अधिक आबादी वाला शहर है, साथ ही यह भारत का 43वां सबसे बड़ा शहरी समूह और 49वां सबसे अधिक आबादी वाला शहर है।
वही दूसरी ओर ​बीड़ी उत्पादन में सोलापुर महाराष्ट्र में​ सबसे​ आगे​| ​सोलापुरी चादरें और तौलिये न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रसिद्ध हैं​, सोलापुरी चादर” भौगोलिक संकेत टैग पाने वाला महाराष्ट्र का प्रसिद्ध और पहला उत्पाद ​के रूप में जाना जाता ​है​| ​यह महाराष्ट्र में कपास मिलों और पावरलूम के लिए एक अग्रणी केंद्र रहा है। सोलापुर में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी और एशिया की सबसे बड़ी कताई मिल थी।भारत का राष्ट्रीय अनार अनुसंधान केंद्र (एनआरसीपी) सोलापुर में स्थित है। और सोलापुर जिले में अनार की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।​ ​केगांव (सोलापुर) में विज्ञान केंद्र महाराष्ट्र में तीसरा सबसे बड़ा और प्रमुख वैज्ञानिक संघ है।
 
दूसरी ओर राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी सोलापुर अपना एक विशेष स्थान रखता है| हाल ही में महाराष्ट्र की राजनीति में आये भूचाल के बाद से राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुमानों दौर देखने को मिल रहा है| कयास यह भी लगाया जा रहा है कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर भी एनडीए का एक हिस्सा होने में कोई परहेज नहीं करेंगे| दोस्तों यहां बात बताना आवश्यक है कि राजनीतिक विभिन्न विषमताओं, मान्यताओं और विभिन्न विचारों के बाद भी उसमें एक असीम संभावनाओं को जन्म देती है और सही समय पर लिया गया निर्णय काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है| वही दूसरी ओर राजनीतिक के के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार की एनसीपी पार्टी में भतीजे अजित पवार द्वारा एक बड़ी बगावत की गयी है  इसके बाद एनसीपी में बड़ी टूट के कारण अजित पवार के गुट के राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी में शामिल होने से राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं| इससे पहले, एकादशी वारी के अवसर पर, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ विट्ठल को देखने पंढरपुर आये।
यह पूरे राज्य में राजनीतिक और सामाजिक बहस का विषय बन गया। इसी पृष्ठभूमि में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) पार्टी ने राज्य में अपने हाथ-पैर फैलाना शुरू कर दिया है| इसका असर भी सोलापुर में दिख रहा है|सत्तारूढ़ भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस और एनसीपी के कुछ बड़े और छोटे नेता बीआरएस पार्टी में शामिल हो गए हैं| सोलापुर शहर में बहुसंख्यक तेलुगु भाषी बुनकर समुदाय को लुभाने की बीआरएस पार्टी की कोशिश साफ दिख रही है| इसकी शुरुआत कांग्रेस के पूर्व सांसद धर्मन्ना सादुल से हुई| सादुल लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुने गए। वह हाल के वर्षों में राजनीति में बहुत सक्रिय नहीं रहे हैं।बुढ़ापे और बीमारी के दौरान बीआरएस में उनका प्रवेश बहुत ध्यान देने योग्य नहीं था और उनकी वित्तीय स्थिति को देखते हुए उनकी राजनीतिक उपयोगिता लगभग समाप्त हो गई थी। इससे पहले आंध्र प्रदेश के तत्कालीन नेता एन.टी. रामा राव की तेलुगु देशम पार्टी ने भी सोलापुर में पैर जमाने की कोशिश की थी| वह सफल नहीं रहा| हाल ही में बीआरएस पार्टी के विस्तार प्रयासों को इसी दृष्टि से देखा गया।
जबकि इस पार्टी का नेटवर्क धीरे-धीरे सोलापुर और नांदेड़ और मराठवाड़ा के अन्य हिस्सों के साथ-साथ विदर्भ के कुछ हिस्सों में फैल रहा है, पंढरपुर वारी के अवसर पर केसीआर की छह सौ कारों के बेड़े के साथ अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ विठ्ठला की यात्रा हुई। धार्मिक या आध्यात्मिक मामलों के बजाय राजनीतिक वारी के रूप में चर्चा।वहीं, पंढरपुर में एनसीपी के दिवंगत नेता पूर्व विधायक भरत भालके के बेटे भागीरथ भालके ने एनसीपी से नाता तोड़ लिया और केसीआर की मौजूदगी में बीआरएस पार्टी में शामिल हो गए|​ ​यहां सोलापुर में सत्तारूढ़ भाजपा में गुटबाजी और उसके अंत की पृष्ठभूमि में, इस पार्टी के चार असंतुष्ट पूर्व नगरसेवक और लगभग पांच सौ कार्यकर्ता हैदराबाद में मुख्यमंत्री केसीआर की उपस्थिति में बीआरएस पार्टी में शामिल हो गए। इनमें नागेश वाल्याल दिवंगत पूर्व सांसद लिंगराज वाल्याल के बेटे हैं, जिन्होंने 30 साल पहले सोलापुर में जमीनी स्तर पर भाजपा की नींव रखी थी|उनके साथ इसी पार्टी के पांच पूर्व नगरसेवकों सुरेश पाटिल, संतोष भोसले, जुगनबाई अंबेवाले, राजश्री चव्हाण आदि ने भी भाजपा से इस्तीफा दे दिया। इनमें से सुरेश पाटिल को छोड़कर बाकी चार ने बीआरएस कार में बैठना पसंद किया। इसके अलावा सौ साल पुराने पद्मशाली शिक्षा संस्थान के सचिव दशरथ गोप भी बीआरएस में शामिल हो गये हैं| वाल्याल और गोप दोनों तेलुगु भाषी हैं।इसके जरिए बीआरएस पार्टी को शहर के पूर्वी हिस्से में उभरने में मदद मिल रही है, जो तेलुगु भाषियों से प्रभावित है। धर्मन्ना सादुल ने दावा किया है कि पांच और पूर्व नगरसेवक भाजपा छोड़कर बीआरएस में शामिल होंगे। कहा जा रहा है कि उस दिशा में आंदोलन शुरू हो गया है|
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सत्ता पर काबिज होने के बाद भाजपा अगर सीमा पर सोलापुर में प्रयास करेगी तो कांग्रेस को मजबूत होने का मौका मिल सकता है|संयोग से भाजपा के पूर्व नगर अध्यक्ष प्रो. अशोक निम्बर्गी ने भाजपासे इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए|  उसके बाद सुरेश पाटिल, नागेश वाल्याल और अन्य असंतुष्टों के भी भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन जब सुरेश पाटिल ने अपना निर्णय लंबित रखा, तो वाल्याल, दशरथ गोप और अन्य ने कांग्रेस में शामिल होने का विकल्प चुना और बीआरएस के लिए सीधे हैदराबाद चले गए। दरअसल देखा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी इन सभी चर्चों को अपने पास लाने में नाकाम रही है|

खासतौर पर अगर वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे ने इसे थोड़ा गंभीरता से लिया होता तो वल्याल, कांग्रेस के शहर अध्यक्ष चेतन नरोटे ने दावा किया है कि भाजपा के तेलुगु भाषी नेताओं का बीआरएस में जाना भाजपा के लिए नुकसानदेह और कांग्रेस के लिए फायदेमंद है|  शहर के अधिकांश तेलुगु भाषी समुदाय पर संघ परिवार का प्रभाव है और इस समुदाय के अधिकांश मतदाता भाजपा के प्रति वफादार हैं। इनमें से कांग्रेस यह हिसाब लगा रही है कि भाजपा में फूट के कारण कम से कम कुछ हजार वोटों का नुकसान भाजपा को हो सकता है|अगर इस गणित को मान भी लिया जाए तो दूसरी ओर पंढरपुर में एनसीपी के युवा नेता भागीरथ भालके बीआरएस में शामिल हो गए हैं, ऐसे में संभावना यही लग रही है कि उन्हें मानने वालों के करीब 15 से 20 हजार वोट महाविकास अघाड़ी से छिटक सकते हैं| सोलापुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए, पंढरपुर और पूर्वी सोलापुर के बीच वोटों का संभावित विभाजन वास्तविक लोकसभा चुनावों में ही स्पष्ट हो जाएगा।

बीआरएस पार्टी को भाजपा की बी टीम कहा जाता है|इसके अलावा, बीआरएस पार्टी अगर एड. प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी के साथ समझौता होता है, तो ऐसा लगता है कि वोटों का बंटवारा महाविकास अघाड़ी के लिए घातक होगा| पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में इसी सोलापुर सीट पर प्रकाश अंबेडकर को करीब 170,000 वोट मिले थे और कांग्रेस के सुशील कुमार शिंदे को दूसरी बार 158,000 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था| इसे बीआरएस के रूप में दोहराया नहीं जाना चाहिए, इसलिए कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने इसे हासिल कर लिया है| चूंकि एनसीपी में बड़ी फूट के कारण महाविकास अघाड़ी की ताकत कमजोर होने की संभावना है, इसलिए कांग्रेस को सोलापुर में लगातार तीसरी हार से बचने के लिए विशेष रूप से सुशील कुमार शिंदे और उनकी बेटी विधायक प्रणीति शिंदे को परखना होगा।

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