तीन हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी ने सीएम चेहरा क्या बदला सभी दल एक के बाद एक बदलाव में जुट गए है। बीजेपी के फैसले के बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। अब बताया जा रहा है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को मुख्यमंत्री बनाएंगी। यानी कहा जा सकता है कि भारतीय राजनीति को परिवारवाद की बेल और मजबूती से जकड़ने जा रही है। वर्तमान में यह चर्चा तेज हो गई है कि ममता बनर्जी अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को टीएमसी का उत्तराधिकारी घोषित कर सकती है। इस बात का संकेत टीएमसी नेता और प्रवक्ता कुणाल घोष ने दिया है। उन्होंने कहा कि अभिषेक बनर्जी ममता बनर्जी की जगह सीएम पद को संभालेंगे।
यानी परिवारवाद की एक और अमरबेल भारतीय राजनीति को दबोचने के लिए तैयार है। बीजेपी आम कार्यकर्ताओं को मुख्यमंत्री बनाकर नया इतिहास लिख रही है। मध्य प्रदेश के आम कार्यकर्ता मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर सभी को अचंभित कर दिया। इसी तरह से राजस्थान में भी बीजेपी ने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया है। वहीं, बाकी राजनीति पार्टियां परिवार की दलदल में फंसी जा रही है। चाहे वह कांग्रेस हो, बसपा हो,सपा हो, टीएमसी हो आदि पार्टियां अपने परिवार के ही लोगों को बड़े बड़े पदों पर बैठा रही है।
कांग्रेस के नेता 2014 के लोकसभा चुनाव से राहुल गांधी को पीएम उम्मीदवार बनाये हुए है। इसी तरह से सपा में भी अखिलेश यादव के अलावा कोई दूसरा नेता सीएम का दावेदार दिखाई नहीं देता है। मायावती ने अपने भतीजे को पार्टी की बागडोर सौंपकर यह जता चुकी हैं कि उनकी जगह केवल उनके परिवार का ही सदस्य ले सकता है। भारतीय राजनीति में गिरावट और भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी वजह परिवारवाद है। जो फलफूल रहा है और देश की ताकत को कम कर रहा है। इन नेताओं के पास अकूत सम्पत्ति है। अभिषेक बनर्जी कोयला घोटाले में ईडी की रडार पर हैं। इसी तरह हेमंत सोरेन भी परिवारवाद का नमूना है, उनके पिता शिबू सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके है। उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा है। हेमंत सोरेन पर भी जमीन घोटाले का आरोप है। इसी तरह से बिहार में लालू यादव वंशवाद की जीती जागती मिसाल है। इस परिवार ने भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा पार कर दी है। इस परिवार के लगभग सभी सदस्यों पर भ्रष्टाचार के आरोप है। जो इस देश के लिए अति दुर्भाग्यपूर्ण है। इसी तरह से महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे गुट भी परिवारवाद का उदाहरण है।
कुणाल घोष ने यह भी कहा कि ममता बनर्जी 2036 तक बंगाल की मुख्यमंत्री रहेंगी। अगर, घोष के बयान पर बात करें तो बड़ा घालमेल वाला बयान है। मंगलवार को इंडिया गठबंधन की बैठक हो रही है और ममता बनर्जी इसमें शामिल होने के लिए बंगाल से दिल्ली पहुंच चुकी है बैठक में शामिल भी हुई है। एक ओर जहां टीएमसी के ही नेता ममता बनर्जी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग कर रहें है तो, दूसरी ओर उनके ही पार्टी के नेता ममता बनर्जी को 2036 तक सीएम रहने का दावा कर रहे हैं। पार्टी का यह बड़ा ही भ्रामक बयान है।
इसके कई मतलब निकाला जा सकता है। पहला यह कि टीएमसी यह मान चुकी है कि 2024 का लोकसभा चुनाव इंडिया गठबंधन नहीं जीतेगा। और दूसरा यह कि ममता बनर्जी पीएम उम्मीदवार नहीं हो सकती हैं। तीसरा यह कि ममता बनर्जी अब अपने उम्र का हवाला देकर अभिषेक बनर्जी को मुख्यमंत्री बना सकती है। इसके भी कई कारण हो सकते हैं, जैसे पहला अब नई पीढ़ी को ममता आगे करने का प्लान बना रही हो ताकि आगे आने वाली चुनौतियों को अभिषेक बनर्जी फेस कर सकें। साथ ही पार्टी का मेकओवर किया जा सके। या ऐसा भी हो सकता है कि ममता बनर्जी अपने लिए एक माहौल तैयार कर रही हों कि अब वह अपना उत्तराधिकारी चुन लिया है। राष्ट्रीय राजनीति में दो दो हाथ करने को तैयार हैं। जैसा कि नीतीश कुमार ने कुछ समय पहले ऐसा किया था।
नीतीश कुमार ने कहा था कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव का नेतृत्व तेजस्वी यादव करेंगे। उन्होंने तेजस्वी यादव को अपना उत्तराधिकारी बताया था। जिसकी वजह से पार्टी में घमासान शुरू हो गया था। इसी वजह से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा अलग हो गए थे। दोनों नेता अपने आप को ज़िंदा करने में जुटे हुए हैं और बीजेपी के साथ गठबंधन में शामिल हैं।
इस एलान के साथ ही यह माने जाने लगा था कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति की दूसरी पारी खेलने को तैयार हैं। इससे पहले वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री थे। हालांकि, कुछ समय के लिए इंडिया गठबंधन पर कांग्रेस ने कब्जा जमा लिया था। मगर तीन राज्यों में हुई हार के बाद कांग्रेस के सुर नरम पड़े हैं और अन्य सहयोगी दलों के सुर तेज हुए हैं। बहरहाल, भारत की राजनीति हमेशा जातिवाद, परिवार पर होती रही है। जब कोई दलराजनीति हाशिये पर होता है तो वह जातिवाद के जरिये राजनीति करता है। और जब राजनीति में पकड़ बना लेता है तो अपने परिवार को मजबूत करता है। बिहार में इसका लालू यादव् उदाहरण है।
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