दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के ऐलान के बाद केंद्र की राजधानी में सियासी हलचल तेज हो गयी है| इसी के साथ अब नया मुख्यमंत्री कौन होगा और किसे बनाया जाये ये दोनों प्रश्न एक यक्ष की तरह केजरीवाल के सामने खड़ा होता दिखाई दे रहा है| इसको लेकर उनके सामने काफी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है|
देश में उपजे इस राजनीतिक स्थिति को हल करने के लिए ‘आप’ मुखिया अरविंद केजरीवाल के समक्ष उत्तराधिकारी को लेकर बिहार और झारखंड की राह अख्तियार करने के सिवाय कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है|यदि बात करें बिहार की तो पहले लालू प्रसाद यादव ने चारा घोटाला में फंसने के बाद अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन इसके बाद पार्टी में फूट के बीज भी अंकुरित होने शुरू हो गए|क्योंकि राबड़ी से कही अधिक वरिष्ठ आरजेडी में कई नेता थे, जो लालू के इस फैसले से अंदर ही अंदर नाजुक नजर आ रहे थे|
दूसरी ओर बिहार की ही बात की जाये तो जेडीयू मुखिया नीतीश कुमार ने भी पार्टी में संतुलन बनाये रखने के लिए कुछ समय के लिए जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था| इसके बाद जब उनसे मुख्यमंत्री पद वापस लिये जाने पर वे नाराज हो गए| और पार्टी छोड़कर हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा नाम से अपनी स्वतंत्र पार्टी ही बना ली|
इसी तरह झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बात की जाये तो, जब ईडी ने भूमि घोटाला मामले गिरफ्तार किया तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ा| और इसके बाद अपने सबसे विश्वसनीय नेता चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री का पद भार सौंपा था|कोर्ट से दोषमुक्त होने और दोबारा झारखंड का मुख्यमंत्री बनने को लेकर हेमंत सोरेन और चंपई सोरेन के बीच दूरियां बढ़ गयी|
बाद में चंपई सोरेन पार्टी से अलग हो गए|मजे की बात यह है कि इन राज्यों के मुख्यमंत्री मॉडल को देखा जाये तो अब तक सफल नहीं रहे हैं| ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अरविंद केजरीवाल क्या करेंगे? क्योंकि उनके लिए भी सीएम का चयन करना इतना आसान नहीं है|
यदि इन तमाम विसंगतियों के बावजूद केजरीवाल अगर लालू मॉडल के सहारे मुख्यमंत्री का चयन करते हैं तो पार्टी के साथ-साथ सार्वजनिक तौर पर भी साख में बट्टा लग सकता है| त्याग की इमेज को भी झटका लगेगा| साथ ही कानूनी तौर पर भी दिल्ली के राज्यपाल पेच फंसा सकते हैं| वर्तमान में उनकी पत्नी सुनीता विधायक नहीं है| बता दें कि दिल्ली में सिर्फ 5 महीने बाद चुनाव प्रस्तावित हैं| इस स्थिति में राज्यपाल यह कहकर टाल दें कि किसी विधायक को मुख्यमंत्री बनाइए|
आम आदमी पार्टी के भीतर भी किसी नेता को मुख्यमंत्री चुनना आसान नहीं है| पार्टी में भी कई नेता मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं| तमाम राजनीतिक घटनाक्रम के बावजूद भी अभी तक पार्टी में कोई टूट नहीं हुई है, लेकिन विधानसभा चुनाव के करीब होने की वजह से टूट की संभावना बढ़ सकती है| वैसे में दिल्ली सीएम का नया चेहरा अरविंद केजरीवाल के लिए ‘बहुत कठिन है डगर पनघट की’ आसान राह नहीं दिखाई दे रहा है|
अरविंद केजरीवाल की पार्टी दिल्ली शराब घोटाले में पिछले दो वर्षों से बुरी तरह फंसी हुई है| इन दो साल में पार्टी के 3 बड़े नेताओं पर ईडी, सीबीआई की कार्रवाई में जेल जाना पड़ा|अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया इसका जिक्र भी कर चुके हैं| पार्टी के पक्ष में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दिल्ली में अब से 5 महीने बाद विधानसभा का चुनाव होना है| चुनाव से एक महीने पहले ही आचार संहिता लग जाएगी| ऐसे में नए मुख्यमंत्री को ज्यादा वक्त भी नहीं मिल पाएगा| सबसे बड़ी बात यह है कि केजरीवाल ने सरकार बनने के बाद फिर से मु्ख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की घोषणा भी कर चुके हैं|
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