केरल पलक्कड़ में रहने वाली नर्स निमिषा प्रिया को यमन की सरकार ने फांसी की सज़ा मुक़र्रर की है। और यह फांसी दो दिन बाद 16 जुलाई को दी जानी है। निमिषा के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाकर कोशिश की के भारत सरकार इस मामलें में फिर से कोशिश करें—मगर भारत सरकार कह चुकी है की वो हर स्तर तक जा चुकी है—हर रास्ता चुनकर देख चुकी है मगर यमन की सरकार और पीड़त के परिजन निमिषा प्रिया को माफ़ी देने के लिए तैयार नहीं है।
दरअसल निमिषा प्रिया केरल की रहने वाली एक आम नर्स थी, जिसने 2008 में बेहतर अवसरों की तलाश में यमन का रुख किया। यमन के सना शहर के एक सरकारी अस्पताल में निमिषा नर्स के रूप में काम करना शुरू करती है। धीरे धीरे निमिषा मेहनत ने अच्छी खासी रकम जुटाकर एक निजी क्लिनिक खोलने की योजना बनाई। लेकिन यमन के कानून के अनुसार उसे यह क्लीनिक एक स्थानीक साझेदार की आवश्यकता थी। इसके लिए उसने यमन के एक व्यवसायी तालाल अब्दो महदी के साथ साझेदारी की और 2018 में एक क्लिनिक खोला।
महदी ने निमिषा का पासपोर्ट जब्त कर लिया, उसका शारीरिक और मानसिक शोषण करना शुरू किया। क्यूंकि निमिषा का पासपोर्ट महदी के पास था—वो भारत लौट नहीं सकती थी। इसीलिए मौका पाते ही निमिषा ने तलाल महदी को एक सिडेटिव का इंजेक्शन दिया, जिससे उसे पासपोर्ट ढूँढ़ने का समय मिलें, लेकिन सीडेटिव के ओवरडोज़ के कारण महदी मर गया। इसके बाद निमिषा ने कथित रूप से स्थानीय महिला की मदद से शव के टुकड़े किए और उसे पानी की टंकी में फेंक दिया।
जून 2018 में उसे यमन सरकार ने हत्या का दोषी पाया और मौत की सजा सुनाई। 2020 की दोबारा सुनवाई में भी यही फैसला बरकरार रहा। 2023 में यमन की सुप्रीम जुडिशियल काउंसिल ने दया की अपील खारिज की और 2024 में यमनी राष्ट्रपति ने फांसी की पुष्टि कर दी।
इसमें भी निमिषा का जान बचाई जा सकती है, इस्लामी कॉन्सेप्ट के अनुसार अगर मेहदी का परिवार रक्तमुल्य स्वीकार करे और निमिषा की दया याचिका स्वीकार करें तो निमिषा भारत लौट भी पाएगी। इसके लिए 10 लाख डॉलर्स यानि साडे-आठ करोड़ रूपए महदी के परिवार को देने होंगे, लेकीन महदी का परिवार यह पैसे लेने के लिए तैयार नहीं है—उनका कहना है की बात इज्जत की है।
आज जब भारत के सुप्रीम कोर्ट तहत यह याचिका जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ के सामने पेश की गई, उस वक्त सरकार की ओर से बताया गया, “एक सीमा तक ही भारत सरकार कुछ कर सकती है। और सरकार उस सीमा तक पहुँच चुके हैं। और यमन के साथ कोई औपचारिक कूटनीतिक संबंध नहीं हैं और अब व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास हो रहे हैं” यमन के पब्लिक प्रॉसिक्यूटर और प्रभावशाली शेखों के साथ बातचीत भी जारी है।
अदालत ने स्वीकार किया कि यह एक अंतरराष्ट्रीय मामला है और आदेश पारित करना व्यावहारिक नहीं होगा। सरकारी रुख और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत सरकार के पास अब बहुत कम विकल्प हैं। आख़िरी क्षण में कोई चमत्कार न हुआ — जैसे कि पीड़ित का परिवार रक्त मूल्य स्वीकार नहीं करता और सारे कूटनीतिक प्रयास असफल होते है— तो फांसी की संभावना बनी हुई है। मामले की बात करें तो महादी ने निमिषा प्रिया का पासपोर्ट जब्त किया था उसका मानसिक और शारीरिक शोषण किया था, यानि महादि ने निमिषा को सिडेटिव के जरिए खुदका बचाव करने के लिए मजबूर किया था। ऐसे में यमन की सरकार को निमिषा पर दया दिखानी चाहिए थी फांसी के अलावा कोई आजीवन कारावास जैसी सजा भी बेहतर विकल्प थी, मगर इस्लामी देशों में ऐसे बेगुनाहों के लिए कोई सहानुभूति और संवेदनशीलता नहीं होती जो काफ़िर है।
यह मामला दर्शाता है कि संघर्षशील क्षेत्रों में भारतीय नागरिकों की रक्षा कितनी कठिन है, खासकर जब वहां औपचारिक राजनयिक संबंध मौजूद न हों। इस मामले से भारतीयों को भी यह सीख लेनी होगी की क्या वह ऐसे देशों में काम करने के लिए जा सकते है, जहां उनके साथ न्याय नहीं हो सकता। केरल से बड़े पैमाने पर नर्सेस खाड़ी देशों में काम करने जाती है —क्या ऐसे देशों के लिए वह काम कर सकती है–जहां उनकी जान-माल को खतरा हो।
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