हिंदी के बिना किसी का काम नहीं चलता

हिंदी के बिना किसी का काम नहीं चलता

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हिंदी की स्वीकार्यता को लेकर विवाद चलते रहे हैं और चलते रहेंगे, मगर मनोरंजन से लेकर व्यापार तक हिंदी के बिना किसी का काम नहीं चलता। हिंदी संपर्क भाषा है और संचार माध्यमों के जरिये सब तरफ पसरी हुई है। किसी तमिल या तेलुगू भाषी के हिंदी शिक्षक बनने पर कोई रोक नहीं है। भाषाएं ही रोजगार का जरिया हैं।

दुनियाभर के आइटी विशेषज्ञों का ध्यान हिंदी समेत अनेक भारतीय भाषाओं पर है। हिंदी भारत की ही नहीं, दुनियाभर के भारतवंशियों व हिंदुस्तानियों की संपर्क भाषा है। इसका अहसास भारत में कम, विदेश जाने पर ज्यादा होता है। हिंदी का महत्व उसे बोलने और समझनेवालों की संख्या से जुड़ा है, भारत जैसे बहुभाषी देश में चीन वाला पैमाना लागू नहीं हो सकता, जहां करीब एक अरब से भी ज्यादा लोग चीनी बोलते हैं, मगर वहां बहुभाषिकता नहीं है।

भारत जैसा भाषाई विविधता वाला दूसरा कोई देश दुनिया में नहीं है। अंग्रेजी केवल मेट्रो शहरों में अथवा कार्यस्थल पर सहारा बनती है, बाकी जगह तो लोग स्थानीय भाषा ही बोलते हैं। ऐसे में हिंदी मददगार बनती है। हमारा मानना है कि आज हिंदी का रथ अपनी स्वयं की रफ्तार से दौड़ रहा है।

उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक देश और दुनिया को जोड़नेवाली संपर्क भाषा के तौर पर जो बढ़त हिंदी को हासिल है, वह उसके अल्पवय को देखते हुए अभूतपूर्व है। इसका महत्व इस बात में है कि हिंदी व अन्य भाषाओं का प्राकृतों से अंतरसंबंध है। भारतीय भाषाओं में एकता का जो सूत्र संस्कृत के जरिये नजर आता है।  वही सूत्र आज हिंदी के रूप में समूचे भारतीय भाषिक परिदृश्य को जोड़े हुए है।

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